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विशेषज्ञों की चेतावनी
यूरोपीय यूनियन के अर्थ ऑबजर्वेशन कार्यक्रम का कहना है कि अंटार्कटिका के ऊपर स्थित ओजोन परत का छेद पिछले कुछ सालों में आकार के लिहाज से अब तक का सबसे बड़ा हो गया है. कॉपरनिकस एट्मॉस्फिरिक मॉनिटरिंग सर्विस के विशेषज्ञों ने बताया एक मजबूत स्थायी और ठंडा ध्रुवीय भंवर इसके विस्तार का कारण है. इसके साथ ही उन्होंने ओजोन खत्म करने वाले रसायनों को कम करने की दिशा में हुए अंतरराष्ट्रीय समझौते से जुड़े देशों से अपनी की है कि वे प्रयास तेज करें.
पिछले 15 सालों में सबसे बड़ा छेद
इस सेवा के प्रमुख विंसेंट हेनरी पेउच ने एक बयान में कहा कि पिछले 15 सालों में ओजोन छेद निश्चित तौर पर सबसे बड़ा था. अंटार्कटिका महाद्वीप के ऊपर ओजोन परत का खत्म होने का सिलसिला पहली बार साल 1985 में देखा गया था.
WMO ने बताई यह बात
जिनेवा में वर्ल्ड मेटयोरोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन की प्रवक्ता क्लैयर नॉलिस ने कहा कि हर साल अगस्त के महीने में ओजोन परत का छेद बढ़ने लगता है और अक्टूबर के दौरान यह सबसे बड़ा हो जाता है.
Ozone hole, Ozone layer, South Pole, Pollutionओजोन परत (Ozone layer) के कम होने के प्रमुख कारण मानवीय गतिविधियों (Human Activity) का प्रदूषण (Pollution) है.
इस समय वहां हवा का तापमान माइनस 78 डिग्री सेल्सियस है और इस तापमान पर संतापमंडलीय बादल (stratospheric clouds) बनते हैं. यह बहुत ही जटिल प्रक्रिया है. इन बादलों में मौजूद बर्फ एक प्रतिक्रिया की शुरुआत करती है जिससे ओजोन परत खत्म होने लगती है. इसी वजह से हम ओजोन पर में इस साल इतना बड़ा छेद देख रहे हैं."
कैसे बनता है यह छेद
कॉपरनिकस सर्विस ने बताया कि सूर्य से आने वाली ऊर्जा जब ध्रुव पर बढ़ती है तो वह रासायनिक रूप से सक्रिय क्लोरीन और ब्रोमीन परमाणुओं को ध्रुवीय भंवर में छोड़ देती है, जो बहुत ही तेजी से ओजोन अणुओं को खत्म करने लगते हैं जिससे परत में एक छेद बन जाता है.
Earth, Gravity, Gravitational forceओजोन परत (Ozone layer) में यह छेद (Hole) इंसान के लिए बहुत खतरनाक है.
फिर भी इस सुधार से उम्मीद
नॉलिस का कहना है कि छेद के बड़े होने के बाद भी विशेषज्ञों का लगता है कि मॉन्ट्रियॉल प्रोटोकॉल को अपनाने के बाद से ओजोन परत में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है. मॉन्ट्रियॉल प्रोटोकॉल साल 1987 में लागू किया गया था जिसका लक्ष्य ओजोन खत्म करने वाले पदार्थों का हटाना था. उन्होंने बताया कि जलवायु के आंकलन बता रहे हैं कि ओजोन परत का 1980 का स्तर साल 2060 तक ही लौट सकेगा. फिर भी काफी कुछ आने वाले में समय इंसानी गतिविधियों पर निर्भर करेगा.
ओजोन परत में छेद होने की वजह से सूर्य से पृथ्वी की ओर आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर पहुंचने लगी हैं जो इंसानों के लिए बहुत ही नुकसानदायक होती हैं. इस सतह को नुकसान पहुंचाने वाले क्लोरीन और ब्रोमीन मानव गतिविधियों के जरिए वायुमंडल में पहुंचते हैं. इसी लिए मॉन्ट्रियाल प्रोटोकॉल का इतना अधिक महत्व है.