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कभी नारियल के पेड़ से गिरे हो या छत से गिरकर टूटी हो रीढ़ की हड्डी, अब डाटा होगा तैयार
दिल्ली: अक्सर कई लोग अपनी रीढ़ की हड्डी तुड़वा बैठते है। जिसमें कई बार लोग छत से गिर जाते है, कभी नारियल के पेड़ से या कभी ऐसा एक्सीडेंट हो जाता है, जिसमे वह अपनी रीढ़ की हड्डी खो बैठते हैं, परंतु अब आपके लिए एक खुशखबरी है। देश में रीढ़ की हड्डी टूटने पर उपचार के लिए अब भटकने की जरूरत नहीं होगी। स्पाइनल कॉर्ड सोसाइटी ऐसे मामलों का डाटा तैयार कर रही है। जिसमे चोट की सही वजह के हिसाब से सटीक इलाज करना संभव होगा। अगर किसी की कैंसर से गाड़ी टूटती है तो अलग इलाज और छत से गिरने से होती है उसका अलग इलाज। स्पाइनल कॉर्ड सोसाइटी और इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर के 22वें अंतर्राष्ट्रीय स्पाइन और स्पाइनल इंजरी कॉन्फ्रेंस में विशेषज्ञों के बीच इस विषय पर बातचीत हुई है। इन सोसाइटी ने अपनी रिपोर्ट बनाकर केंद्र सरकार को भेजी है और इस रिपोर्ट में कहा गया है, "यदि देशभर में रीढ़ की हड्डी टूटने के सही आंकड़े मिलते हैं, तो उसके आधार पर इलाज की विधि, प्राथमिक उपचार व बचाव की रणनीति बनाई जा सकेगी।" वही आपको बता दे कि देश में अभी स्पाइनल कॉर्ड को लेकर कोई नीति नहीं है।
देश में रीढ़ की हड्डी टूटने पर उपचार के लिए अब भटकने की जरूरत नहीं होगी। स्पाइनल कॉर्ड सोसाइटी ऐसे मामलों का डाटा तैयार कर रही है। इसकी मदद से मरीज को चोट की प्रकृति के हिसाब से सटीक इलाज देना मुमकिन हो सकेगा। अगर कोई छत से गिरता है, तो उसको एक इलाज मिलेगा और कैंसर से हड्डी टूटती है तो उसे दूसरा।
स्पाइनल कॉर्ड सोसाइटी और इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर के 22वें अंतर्राष्ट्रीय स्पाइन और स्पाइनल इंजरी कॉन्फ्रेंस में विशेषज्ञों के बीच इस पर सहमति बनी है। सोसाइटी ने अपनी रिपोर्ट बनाकर केंद्र सरकार को भेजी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि देशभर में रीढ़ की हड्डी टूटने के सही आंकड़े मिलते हैं, तो उसके आधार पर इलाज की विधि, प्राथमिक उपचार व बचाव की रणनीति बनाई जा सकेगी। देश में अभी स्पाइनल कॉर्ड को लेकर कोई नीति नहीं है।
सम्मेलन में आए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली के डॉ. संजय वधवा ने कहा कि देश में सबसे ज्यादा रीढ़ की हड्डी ऊंचाई से गिरने से टूटती है। देखा गया है कि दक्षिण भारत में नारियल के पेड़ से और उत्तर भारत में छत से गिरने के मामले ज्यादा आते हैं, लेकिन इसके बचाव को लेकर लोगों में जागरूकता नहीं है। यदि लोगों को पता होगा तो काफी मामले गंभीर होने से बच जाएंगे। इससे लोगों की जान भी बचेगी, साथ ही समस्याएं भी कम होंगी।