विज्ञान

हवन से वातावरण शुद्ध होता है और बैक्टीरिया होते हैं खत्म

Rani Sahu
23 Jun 2021 8:26 AM GMT
हवन से वातावरण शुद्ध होता है और बैक्टीरिया होते हैं खत्म
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आकाश मंडल में सूर्य व पृथ्वी के भ्रमण से ऋतुएं बदलती हैं

आकाश मंडल में सूर्य व पृथ्वी के भ्रमण से ऋतुएं बदलती हैं, भिन्न वायुमंडल निर्मित होते रहते हैं. जिससे सर्दी, गर्मी, नमी, वायु का भारीपन, हलकापन, धूल, धुंआ, इत्यादि वातावरण को प्रभावित करते रहते हैं. विभिन्न प्रकार के कीटाणुओं की उत्पत्ति, वृद्धि एवं समाप्ति का क्रम चलता रहता है. इसलिए समय-समय पर वायुमण्डल स्वास्थ्यकर होता है और कभी अस्वास्थ्यकर हो जाता है. आज समूचा विश्व कोरोना महामारी से त्राहि-त्राहि कर रहा है, कोरोना का विषाणु वातावरण से ही शरीर में प्रवेश कर रहा है. इस प्रकार के विषाणुओं की विकृतियों को दूर करने और अनुकूल वातावरण उत्पन्न करने के लिए हमारे पूर्वज प्राचीन ऋषि-मुनियों ने हवन के द्वारा वातावरण की शुद्धि की एक अप्रतिम युक्ति हमें प्रदान की है. हवन में ऐसी औषधियां, जड़ी-बूटियां और अन्न आहुति के रूप में प्रयुक्त की जाते हैं, जो इस उद्देश्य को भली प्रकार पूरा करती हैं. हवन के कई अन्य लाभ भी हैं.

अन्नों के हवन से मेघ-मालाएं अधिक अन्न उपजाने वाली वर्षा करती हैं, सुगन्धित द्रव्यों से विचार शुद्ध होते हैं, मिष्ट पदार्थ स्वास्थ्य को पुष्ट एवं शरीर को आरोग्य प्रदान करते हैं, इसलिए सभी प्रकार के हव्यों को समान महत्व दिया जाना चाहिए. यदि अन्य वस्तुएं उपलब्ध न हों, तो केवल तिल, जौ, चावल से भी हवन किया जा सकता है. गाय का घी सर्वोत्तम हवि है, गाय के घी से हवन करने से शुद्ध ऑक्सीजन की प्राप्ति होती है व स्वास्थ्य उत्तम रहता है.
हवन अथवा यज्ञ हिंदू धर्म में शुद्धीकरण का एक कर्मकांड है. हवनकुण्ड में अग्नि के माध्यम से ईश्वर की उपासना करने की प्रक्रिया को यज्ञ कहते हैं. वेदों में उल्लेख है कि देवताओं को भोजन अग्नि में दी गयी आहुतियों से पहुंचता है. हवि, हव्य अथवा हविष्य वह पदार्थ हैं जिनकी अग्नि में आहुति दी जाती है (जो अग्नि में डाले जाते हैं). हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित करने के पश्चात इस पवित्र अग्नि में फल, शहद, घी, नारियल, अन्न इत्यादि पदार्थों की आहुति प्रमुख होती है. वायु प्रदूषण को कम करने के लिए विद्वान ऋषि मुनि लोग यज्ञ किया करते थे और तब हमारे देश में कई तरह के रोग नहीं होते थे. कालांतर में गुलामी के समय हवन यज्ञ इत्यादि बहुत सीमित हो गए जिसके परिणाम स्वरुप देश ने कई महामारियों का सामना किया, लाखों जीवन काल-कलवित हो गए.
शुभकामना, स्वास्थ्य एवं समृद्धि इत्यादि के लिए भी हवन किया जाता है
अग्नि किसी भी पदार्थ से उसके गुणों को वायुमंडल में मुक्त कर देता है जिससे उसके गुणों में कई गुना वृद्धि होती है. एक सर्वे से ज्ञात हुआ है कि जिस घर में प्रतिदिन हवन होता है वह घर कोरोना महामारी के भीषण प्रकोप से भी अछूता रहा है. समृद्धि के यज्ञों में नवग्रहों के लिए अलग-अलग लकड़ी का माहात्म्य है. सूर्य की समिधा मदार की, चन्द्रमा की पलाश की, मंगल की खैर की, बुध की चिड़चिडा की, बृहस्पति की पीपल की, शुक्र की गूलर की, शनि की शमी की, राहु को दूर्वा की और केतु की कुशा की समिधा शास्त्रों में कही गई है.
मदार की समिधा रोग का नाश करती है, पलाश की सब कार्य सिद्ध करने वाली, पीपल की प्रजा (सन्तति) के काम कराने वाली, गूलर की स्वर्ग देने वाली, शमी की पाप नाश करने वाली, दूर्वा की दीर्घायु देने वाली है. अलग-अलग ऋतुओं के अनुसार समिधा भी अलग प्रयोग करना चाहिए, ऋतु अनुसार लकड़ी की उपयोगिता सिद्ध है. वसन्त के लिए शमी, ग्रीष्म के लिए पीपल, वर्षा ऋतु में ढाक या विल्व की लकड़ी, शरद ऋतु में पाकड़ या आम की लकड़ी, हेमंत में खैर व शिशिर ऋतु में गूलर या बड़ की लकड़ी विशेष उपयोगी सिद्ध होती है. गाय के गोबर के उपलों को जलाने पर भी वातावरण से जीवाणुओं का नाश होता है.
हवन से वातावरण शुद्ध होता है और बैक्टीरिया खत्म होते हैं
एक अनुसंधानिक रिपोर्ट के अनुसार फ़्रांस के ट्रेले नामक वैज्ञानिक ने हवन पर शोध के दौरान पाया, जब आम की लकड़ी जलती है तो फार्मिक एल्डिहाइड गैस उत्पन्न होती है जो खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओं को मारती है तथा वातावरण को शुद्ध करती है. इस रिसर्च के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस और इसे बनाने का तरीका ध्यान में आया. प्रायः गुड़ को जलाने पर भी ये गैस उत्पन्न होती है. आम की लकड़ी को इसी कारण मुख्यतः हवन में उपयोग किया जाता है. टौटीक नाम के वैज्ञानिक ने हवन पर की गयी रिसर्च में पाया, आधे घंटे हवन में बैठने पर अथवा हवन के धुएं से शरीर का सम्पर्क होने पर टाइफाइड जैसे खतरनाक रोग फैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते हैं और शरीर एवं वातावरण दोनों शुद्ध हो जाते हैं.
राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी शास्त्रों में वर्णित हवन सामग्री से प्रयोग कर पाया कि ये विषाणुओं का नाश करती हैं. उन्होंने विभिन्न प्रकार के धुएं पर भी काम किया और देखा कि एक किलो आम की लकड़ी जलने से हवा में उपस्थित विषाणु कम हुए परन्तु जैसे ही उसके ऊपर आधा किलो हवन सामग्री डाल कर जलायी गयी, एक घंटे के भीतर ही कक्ष में मौजूद बैक्टीरिया का स्तर 94 फीसदी कम हो गया. यही नहीं उन्होंने कक्ष की हवा में उपस्थित जीवाणुओं का परीक्षण किया और पाया की कक्ष के दरवाज़ा खोले जाने और सारा धुआं निकल जाने के 24 घंटे बाद भी जीवाणुओं का स्तर सामान्य से 96 % कम था. बार-बार परीक्षण करने पर ज्ञात हुआ एक बार के धुएं का असर एक माह तक रहा और उस कक्ष की वायु में विषाणु स्तर 30 दिन बाद भी सामान्य से बहुत कम था. यह रिपोर्ट एथनो फार्माकोलोजी के शोध पत्र (Resarch Journal Of Ethnopharmacology 2007) में दिसंबर 2007 में छप चुकी है. रिपोर्ट में लिखा गया की हवन के द्वारा न सिर्फ मनुष्य बल्कि वनस्पतियों, फसलों को नुकसान पहुचाने वाले बैक्टीरिया का भी नाश होता है, जिससे फसलों में रासायनिक खाद का प्रयोग कम हो सकता है.
उपरोक्त तथ्यों का अवलोकन करने पर ज्ञात होता है कि हमारे प्राचीन कर्म-कांड मूलतः वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित और समाजोपयोगी हैं. प्रतिदिन घर में हवन करने से अनेक रोगों से बचा जा सकता है. हवन करने की विधि एकदम आसान है, केवल 10 मिनट में यह कार्य संपन्न हो जाता है एवं इसमें अत्यधिक धन की भी आवश्यकता नहीं होती. कर्म कांडों का उपहास न कर उनका वैज्ञानिक आधार ढूंढें एवं अपने जीवन उपयोग में लाकर जीवन को सरल व शरीर को स्वस्थ रख अपना जीवन सफल बनायें.


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