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25 सालों में खत्म हुई आधी मूंगे की चट्टानें
टाउन्सविले की ऑस्ट्रेलियाई रिसर्च काउंसिल के सेंटर फॉर कोरल रीफ स्टडीज के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया के पास स्थित दुनिया भर में प्रसिद्ध मूंगे की चट्टाने या कोरल रीफ ने पिछले 25 सालों में आधे मूंगे गंवा दिए हैं. इस अध्ययन में साल 1995 और साल 2017 के बीच के कोरल समुदाय का आंकलन किया और पाया कि छोटे, बड़े और विशाल मूंगे की चट्टानों में 50 प्रतिशत तक कि कमी आई है.
ये है इस खात्मे की वजह
इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता एंड्रियाज डाइटजेल ने बताया कि मूंगों के दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से खत्म होने की वजह इंसानी गतिविधियों के कारण पदा हुए जलवायु परिवर्तन हैं जिससे इनके लिए अनुकूल वातावरण को बुरी तरह से प्रभावित किया है.
बढ़ता तापमान हुआ जानलेवा
इस कारण के बारे में समझाते हुए डाइटजेल ने कहा, "हम साफ तौर पर देख सकते हैं कि कैसे बढ़ता तापमान इन मूंगे की चट्टानों के लिए जानलेवा साबित हुआ है और इससे ग्रेट बैरियर रीफ की ब्लीचिंग हो रही है."
2020 के आंकड़ों को शामिल किए बिना है ये हाल
डाइटजेल ने यह भी बताया कि इस अध्ययन में साल 2020 में हुई ब्लीचिंग के प्रभाव को शामिल नहीं किया गया है जिसका साफ मतलब है कि रीफ का स्वास्थ्य बताए जा रहे प्रमाणों की तुलना में कहीं ज्यादा खराब हैं.
ब्लीचिंग की घटनाएं
इस अध्ययन के सहलेखक और जेम्स कुक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर टेरी ह्यूज का कहना है कि उनकी टीम ने विशाल मात्रा में ब्लीचिंग की घटनाएं देखी हैं जो साल 2016 से 2107 तक के बीच पानी का तापमान तेजी से बढ़ने से हुई हैं. इसका मूंगे की खात्मे में बहुत अहम योगदान है.
क्या होती है ये ब्लीचिंग
मूंगे में ब्लीचिंग या उसका रंग उड़ जाने की प्रक्रिया तब होती है जब मूंगे अपने चमकीले रंग खोने लगते हैं और उनमें पीलापन सा आने लगा है. मूंगे के चमकीले रंग की वजह एक सूक्ष्म शैवाल (Algae) के कारण होते हैं जिसे जूऑक्सएनथोले (zooxanthellae) कहा जाता है. दोनों ही एक साथ रहकर एक दूसरे के असतित्व को बनाए रखने के लिए योगदान देते हैं.
यूं खत्म होता है दोनों का रिश्ता
जब तापमान बढ़ने लगता है तो कोरल इसके दबाव में आकर इस शैवाल को अपने बाहर निकाल देते हैं. इससे मूंगे में फीकापन आने लगता है और ऐसा लगता है कि उसकी ब्लीचिंग हो गई है. ऐसे में अगर तापमान सामान्य नहीं होता है को मूंगे अपने अंदर शैवाल को आने नहीं देते हैं और अंततः खत्म हो जाते है.
जलवायु का यह अकेला संकट नहीं हैं. बहुत से जीवों को बढ़ते तापमान के कारण अपनी जीवन शैली में बदलाव करने पड़ रहे हैं जो उनके या फिर उन पर निर्भर दूसरे जीवों के लिए अस्तित्व का संकट तक बन रहा है. ऐसे में जल्दी कुछ नहीं किया गया तो कुछ प्रजातियां विलुप्त ही हो जाएंगी.