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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। जलवायु परिवर्तन (Climate change) के कारण ध्रवीय भालू की जनसंख्या (Population of Polar Bear) कम हो रही है. लेकिन हाल ही में वैज्ञानिकों ने ग्रीनलैंड (Greenland) में ही इन भालुओं की ऐसी जनसंख्या का पता लगाया है जो उनके लिए एक तरह का असंभव आवास माना जा रहा था. इस इलाके में बहुत सारे समय में तैरती बर्फ नहीं होती है जो ध्रुवीय भालुओं का शिकार करने का सबसे प्रिय इलाका होता है. वैज्ञानिक अब तक इस समूह को दूसरी जनसंख्या का हिस्सा मान रहे थे सैंकड़ों सालो से फ्यॉड्स (fjords) यानि लंबे और सकरें तटीय इलाके में जहां ग्लेशियर और महासागर मिलते हैं, वहां रह रहे थे.
इस अध्ययन के नतीजे सुझा रहे हैं कि ध्रुवीय भालू (Polar Bear) जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के कारण गायब हो रही समुद्री बर्फ के माहौल में खुद को ढालने की कोशिश कर रहे हैं. वाशिंगटन यूनिवर्सिटी की वन्य जीव वैज्ञानिक और अध्ययन की प्रमुख लेखक क्रिस्टीन लेडरे का कहना है कि ग्लेशियर की बर्फ कुछ भालुओं को लंबे समय तक ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के साथ जिंदा रहने दे सकती है. लेकिन ऐसा बहुत से भालुओं के साथ नहीं हो सकता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि ऐसी स्थिति बहुत की भालू जनसंख्या के पास होती है. हाल तक 19 ऐसे समूह आर्कटिक वृत मे रहते पाए गए थे.
ग्रीनलैंड (Greenland) के 3200 किलोमीटर लंबे पूर्वी तटीय क्षेत्र ऐसी ही जनसंख्या का इलाका था, लेकिन शोधकर्ताओं ने पाया कि यहां वास्तव मे दो अलग अलग ध्रुवीय भालुओं (Polar Bear) की जनसंख्या रह रही हैं. शोधकर्ताओं ने 36 साल के निगारनी आंकड़ो का विश्लेषण किया जिसमें उन्होंने भालुओं की जीपीएस ट्रैकर लगाया और पाया कि दक्षिण पूर्व ग्रीनलैंड के भालू कभी 64 डिग्री उत्तरी अक्षांश के ऊपर नहीं गए और उत्तर पूर्व के भालू कभी उससे नीचे नहीं गए. यानि दोनों अलग अलग जनसंख्याएं थीं. इसकी पुष्टि जीनोम सीक्वेंसिंग (Genome Sequencing) में भी पाई गई. शोधकर्ताओं ने पाया कि दक्षिणपूर्वी जनसंख्या (जिसमें करीब 300 सदस्य हैं.) 200 सालों से उत्तरपूर्वी जनसंख्या से अलग रह रही थी.
ध्रुवीय भालू (Polar Bear) विलुप्त होने का खतरे का सामना कर रहे हैं और वे संकटग्रस्त प्रजाति (Endangered Species) की सूची में हैं. कई वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के कारण यह प्रजाति इस सदी के अंत तक विलुप्त हो सकती है. दुनिया में धरती का सबसे बड़ा शिकारी जानवर होने के बाद भी ध्रुवीय भालू को समुद्री स्तनपायी जीवों की श्रेणी में रखा गया है क्योंकि यह समुद्री भोजन मुख्य रूप से सील के शिकार पर जिंदा रहता है. लेकिन इनके शिकार के लिए ये भालू समुद्री बर्फ पर निर्भर होते हैं जिसके ऊपर खड़े होकर वे सील का इंतजार करते हैं
बढ़ते तापमान के कराण सुमुद्री बर्फ (Sea Ice) ही कम उपलब्ध है जिससे ध्रुवीय भालुओं (Polar Bear) का आवास ही घट रहा है. समुद्री बर्फ की चादर पतझड़ केमौसम में अस्थाई रूप से बनती है और वसंत में पिघल भी जाती है. ध्रुवीय भालू सामान्यतः 100 से 180दिन तक बिना खाए पिए रह सकते हैं, लेकिन आर्कटिक (Arctic) में गर्म तापमान का कारण समुद्री बर्फ जल्दी पिघल रही है और देर से जम रही है इससे ध्रुवीय भालुओं के भूखे मरने की नौबत आ गई है
फ्यॉड्स (fjords) जो दक्षिणपूर्वी ध्रुवीय भालुओं (Polar Bear) का घर है, आर्कटिक वृत (Arctic) के दक्षिणी किनारे पर पड़ता है जिससे यह इलाका एक साल में 250 दिनों तक समुद्री बर्फ विहीन रहता है. समुद्री बर्फ के हालात वैसे ही हैं जैसा कि बहुत से लोग 21वीं सदी के अंत में आर्कटिक की स्थिति का अनुमान लगाया है. तब शायद फ्यॉड्स ध्रुवीय भालुओं के लिए उपलब्ध नहीं रहेंगे. लेकिन दक्षिणपूर्वी भालुओं ने बिना समुद्री बर्फ के चौंकाते हुए खुद को बचाया है. शोधकर्तओं का कहना है कि अब ध्रुवीय भालू पिघलते ग्रेशियर का फायदा उठा रहे हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
दक्षिणपूर्वी ध्रुवीय भालुओं (Polar Bear) की जनसंख्या किसी इंसानी आबादी के पास भी नहीं रहते हैं. यह इलाका बहुत से शिकारियों की पहुंच के लिहाज से बहुत मुश्किल इलाका माना जाता है. इससे इस समूह को अतिरिक्त सुरक्षा मिली है. लेकिन फ्यॉड्स (fjords) की खड़ी चढ़ाई भालुओं के लिए दूसरे इलाकों में जाना मुश्किल बनाता है. शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन में उत्तरपूर्वी जनसंख्या से आए दो भालुओं की पहचान करने का प्रयास किय. उन्होंने ग्लेशियर के हालातों में शिकार करना सीख लिया है. उम्मीद है कि दूसरे भालू समूह भी ग्लेशियर हात के लिए खुद को तैयार करने लगेंगे.
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