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संयुक्त राष्ट्र संस्था आईपीसीसी की ताजा रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि धरती को बचाने के लिए अब सिर्फ 8 साल ही बचे हैं।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। धरती के बीते 2000 वर्षों के इतिहास की तुलना में अब बीते कुछ सालों में पृथ्वी का तापमान बेहद तेजी से बढ़ रहा है। पिछले कई दशकों से लगातार वैज्ञानिक बता रहे हैं कि जीवाश्म ईंधन के जलने से ग्लोबल वार्मिंग की आग तेजी से धधक रही है। तमाम वैज्ञानिक प्रमाणों के बावजूद जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल दुनिया से खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। जीवाश्म ईंधन खत्म होना तो दूर इसको कम करने के भी आसार साफ नहीं नजर आ रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संस्था आईपीसीसी की ताजा रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि धरती को बचाने के लिए अब सिर्फ 8 साल ही बचे हैं।
अंतर-सरकारी समिति (आईपीसीसी) ने इसी उदासीनता के चलते जलवायु परिवर्तन के आंकलन के लिए अपनी चार अप्रैल 2022 को जारी रिपोर्ट में चेताया गया है। इसमें कहा गया है कि अगले आठ सालों में यानी 2030 तक दुनिया अगर अपने उत्सर्जन में कटौती को आधा यानी 50% कम नहीं करती है तो साल 2050 तक उसे नेट जीरो यानी अपने उत्सर्जन स्तर को शून्य पर लाना होगा। अगर ऐसा नहीं किया तो उसे तबाह होने से कोई नहीं रोक सकता है। आईपीसीसी की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2019 में 1990 के मुकाबले 54 प्रतिशत अधिक कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन हुआ लेकिन उत्सर्जन के बढ़ने की दर पिछले एक दशक में घटी है।
सबसे अमीर देश ही अकेले कुल उत्सर्जन के आधे के लिए जिम्मेदार
आईपीसीसी ने चेतावनी दी है कि धरती के तापमान वृद्धि को डेढ़ डिग्री तक रोकने के लिए कार्बन उत्सर्जन में 43% की कटौती करनी होगी। साल 2010-2019 में दुनिया का औसत वार्षिक ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन, मानव इतिहास में सबसे उच्चतम स्तर पर था। ऐसे में जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाली ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए हमें अपने उत्सर्जन को जीरो पर लाना होगा। इस काम के लिए ऊर्जा क्षेत्र में बड़े बदलाव की आवश्यकता है और जीवाश्म ईंधन के उपयोग में भारी कमी लानी होगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अक्षय ऊर्जा स्रोतों जैसे सौर और पवन ऊर्जा, साथ ही स्टोरेज बैटरी की लागत में भारी गिरावट आई है। इससे वह लगभग गैस और कोयले के बराबर (और कुछ मामलों में सस्ते) हो गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 2010 के बाद से लागत में '85% तक की निरंतर कमी' देखी गई है। ग्लोबल CO2 उत्सर्जन बढ़ने की रफ्तार कम हुई है पर उत्सर्जन अब भी 54 प्रतिशत अधिक है। वास्तविकता यह है कि दुनिया के सबसे अमीर देश ही अकेले विश्व के कुल उत्सर्जन के आधे के लिए जिम्मेदार हैं, जबकि दुनिया के सबसे गरीब देशों का हिस्सा सिर्फ 12% है। वर्तमान में हम वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस या 2 डिग्री सेल्सियस तक भी सीमित करने से बहुत दूर हैं।
दुनिया में 846 गीगा टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होना तय
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा नीतीयां सफल भी होती हैं तो वो हमें सदी के अंत तक 2.7 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक वार्मिंग की ओर ले जाएगी। रिपोर्ट के मुताबिक अगर कोई नया जीवाश्म ईंधन विस्तार न भी किया जाए, फिर भी मौजूदा ढांचे की वजह से 2025 तक वैश्विक उत्सर्जन 22% अधिक होगा और 2030 तक 66% अधिक होगा। साथ ही, मौजूदा ढांचे के चलते दुनिया में 846 गीगा टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होना तय है। फिलहाल हालात ऐसे हैं कि कोयले में नए निवेश न करने के साथ ही सभी कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को 2040 तक बंद करने की आवश्यकता है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का कहना है कि जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए 2040 तक एक वैश्विक ऊर्जा क्षेत्र का नेट ज़ीरो होना ज़रूरी है। जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को हटाना होगा।
ग्लोबल वार्मिंग में कहां खड़ा है भारत
भारत मोटे तौर पर ग्रीन हाउस गैसों के कुल वैश्विक उत्सर्जन में से 6.8 प्रतिशत का हिस्सेदार है।
वर्ष 1990 से 2018 के बीच भारत के ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में 172 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है।
वर्ष 2013 से 2018 के बीच देश में प्रतिव्यक्ति उत्सर्जन भी 17 फीसद बढ़ा है।
अभी भी भारत का उत्सर्जन स्तर जी20 देशों के औसत स्तर से बहुत नीचे है।
भारत की कुल ऊर्जा आपूर्ति में जीवाश्म ईंधन आधारित प्लांट्स का योगदान 74 प्रतिशत है।
भारत में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी 11 फीसद है।
भारत ने कार्बन उत्सर्जन को कम करने के तेज किए प्रयास
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की वर्तमान नीतियां वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के अनुरूप फिलहाल नहीं हैं। इसके लिए भारत को वर्ष 2030 तक अपने उत्सर्जन को 1603 मिलियन टन कार्बन डाई ऑक्साइड के बराबर (एमटीसीओ2ई) (या वर्ष 2005 के स्तरों से 16 प्रतिशत नीचे) रखना होगा।
भारत सरकार का लक्ष्य वर्ष 2027 तक 275 गीगावाट और 2030 तक 450 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का है।
अगस्त 2021 तक भारत में 100 गीगावाट स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता है।
एक और 50 गीगावाट क्षमता अभी निर्माणाधीन है और 27 गीगावाट क्षमता के संयंत्र अभी निविदा के दौर में है।
भारतीय रेलवे वर्ष 2023 तक अपने नेटवर्क के विद्युतीकरण की योजना बना रही है और वह वर्ष 2030 तक नेट शून्य कार्बन उत्सर्जक बनने की राह पर आगे बढ़ रही है।
पेट्रोल में 20 प्रतिशत एथेनॉल मिलाने संबंधी वर्ष 2030 तक के लिए निर्धारित लक्ष्य को अब 2025 तक के लिये कर दिया गया है।
कार्बन प्राइसिंग: सरकार ने 400 रुपये प्रति टन की दर से कोयला उत्पादन पर जीएसटी मुआवजा उपकर की शुरुआत की है।
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