विज्ञान

ठंडे खून के जानवरों को बहुत बड़े खतरे मे डाल रही है ग्लोबल वार्मिंग

Subhi
8 Dec 2022 3:15 AM GMT
ठंडे खून के जानवरों को बहुत बड़े खतरे मे डाल रही है ग्लोबल वार्मिंग
x

ठंडे खून के जानवरों (Cold Blooded Animals) की खास बात यह होती है कि वे बाहरी तापमान पर बहुत ज्यादा निर्भर होते हैं. वे गर्म खून के जानवरों की तरह अपने शरीर का तापमान बाहरी तापमान के अनुकूल नहीं कर सकते हैं. इसलिए जाहिर सी ही बात है कि ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ने (Increasing Global Warming) से इन ठंडे खून के जानवरों को बहुत ज्यादा परेशानी होने वाली है. ऐसा देखने में भी आया है कि लेकिन जो नतीजे देखने को मिल रहे हैं वे उम्मीद से कहीं ज्यादा चौंकाने वाले हैं. नए अध्ययन में पाया गया है कि ठंडे खून वाले जानवरों में अब ऊष्मा आघात (Heat Injury) की घटनाएं हर डिग्री तापमान बढ़ने से दोगुनी होने लगी हैं.

सीमा हो रही है पार

ठंडे खून वाले जानवरों के शरीर का तापमान और उनके जैवरासायनिक प्रक्रियाएं आसपास के तापमान और सूर्य की रोशनी पर निर्भर करती हैं. लेकिन जिस तरह से आपसास के तापमान बढ़ने से इन जानवरों की तापमान सहनशीलता की सीमा को पार कर रही है, इससे शोधकर्ता भी हैरान हैं. आरहूस यूनिवर्सिटी के पांच जूफिजियोलॉजिस्ट ने नेचर जर्नल में प्रकाशित अपने अध्ययन में पिछले अध्ययनों के आंकड़ों का उपयोग किया था.

खास वातावरण में रह सकते हैं ऐसे जानवर

ठंडे खून के जानवर के भौगोलिक वितरण और उनकी आसपास के तापमान के हालात का गहरा संबंध होता है. वे केवल उन्हीं तापमान में रह सकते हैं जिसमें वे विकसित हो कर प्रजनन कर सकते हैं और चरम गर्मी या सर्दी में तभी रह सकते हैं जब उस मौसम में क्रमशः लंबे समय तक बहुत ज्यादा गर्मी या सर्दी ना हो.

क्या होता है ऐसी स्थिति में

जानवरों में घाव कायम रहता है यदि तापमान एक निश्चित सीमा के पार चला जाए क्योंकि वे उसी तापमान तक उसे सहन कर सकते हैं. ये घाव समय के साथ जमा हो जाते हैं और अंत में इसी से तय होता है कि क्या वे तत्कालीन तापमान की परिस्थितियों में खुद को जीवित रख पाएंगे या फिर नहीं. इतना ही नहीं सहनशीलता की सीमा से तापमान जितना ज्यादा बढ़ेगा और और ज्यादा तेजी से ज्यादा घाव पाते रहेंगे.

सौ से ज्यादा जानवरों पर विश्लेषण

शोधकर्ताओं ने 112 बाह्यऊष्मीय जानवरों के ऊष्मीय दबाव के लिए संवेदनशलीता के विश्लेषण किया है. इस विश्लेषण से पता चला है कि ऊष्मीय घाव के जमा होने की दर हर एक डिग्री सेंटिग्रेड तापमान इजापे से दो गुना से ज्यादा हो जाएगी और चूंकि यह घातांकी इजाफा होगा, दो डिग्री तापमान का इजाफे से घाव चार गुना ज्यादा तेजी से जमा होने लगेंगे और तीन डिग्री बढ़ने से 8 गुना ज्यादा तेजी से बढ़ने लगेंगे.

वर्तमान स्थिति

इसके बाद शोधकर्ताओं ने अपने आंकड़ों के तापमान संवेदनशीलता वाले प्रतिमानों के लिए अधिकतम तापमान में अपेक्षित इजाफे की तुलना ग्लोबल वार्मिंग से की. इस आंकड़े से पता चला कि बाह्यउष्मीय जानवरों में ग्रीष्म घावों की दर में वैश्विक स्तर पर औसतन 700 फीसद इजाफा हो सकता है और जमीन पर बहुत से वातवरणों में यह 2000 फीसद हो गया है.

महासागरों में क्या है हाल

वहीं महासागरों में रहने वाले ठंडे खून के जानवरों में यह आंकड़ा 180 से 500 फीसद का है. क्षेत्रीय विश्लेषण सुझाते हैं कि उत्तरी शीतोष्ण क्षेत्र में विशेष रूप से बड़ा प्रभाव देखने को मिला है जिसमें कि यूरोप और उत्तरी अमेरिका के साथ आर्कटिक के आसपास का महासागर का इलाका शामिल है. साफ है कि इन जानवरों में तापमान के प्रति बहुत ही ज्यादा संवेदनशीलता है.

शोधकर्ताओं का कहना है कि वे यह अनुमान नहीं लगा सकेत कि कितनी प्रजातियां इस जोखिम को झेल रही हैं क्योंकि ऊष्मीय दबाव की हद अलग-अलग प्रजातियों में अलग है. वहीं कई धरती पर कई जानवर खुद को छांव की खोज कर बचा सकते हैं जिससे ग्रीष्म घाव का जोखिम कम हो जाता है. लेकिन महासागरीय जानवरों के लिए यह आसान नहीं होता है. इसका साफ मतलब है कि हम भविष्य में ग्रीष्म लहरों के प्रभावों को कम आंक रहे हैं. नतीजे इशारा कर रहे हैं कि भले ही सभी पर समान ना हो, लेकिन ग्रीष्म लहरों का प्रजातियों पर गहरा असर होगा.


Next Story