विज्ञान

ऐसे कछुए का DNA मिला, जो 'पीछे' से लेते हैं सांस

Tulsi Rao
14 May 2022 2:00 PM GMT
ऐसे कछुए का DNA मिला, जो पीछे से लेते हैं सांस
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पृथ्वी पर कुछुए (Turtle) की एक अनोखी प्रजाति थी. ये कछुए सालों से किसी को दिखाई नहीं दिए. वैज्ञानिकों ने मान लिया था कि ये कछुए स्थानीय रूप से विलुप्त हो चुके हैं. लेकिन हाल ही में ऑस्ट्रेलिया (Australia) की सबसे बड़ी नदी में इस कछुए के डीएनए (DNA) भरपूर मात्रा में पाए गए हैं. विलुप्त होने की कगार पर एक प्रजाति का दोबारा खोजा जाना वैज्ञानिकों के लिए एक अच्छी खबर है. कछुओं की ये प्रजाति खास इसलिए है, क्योंकि ये कछुए अपने क्लोएका (Cloaca) से सांस लेते थे. क्लोएका वह छेद होता है जिससे रेप्टाइल और पक्षी प्रजनन और मल त्याग करते हैं

ऑस्ट्रेलिया की बर्डेकिन नदी (Burdekin river) काफी चौड़ी है और मैली भी है. इसमें रहने वाले कछुए अपना ज्यादातर समय इसकी गहराई में बिताते हैं. 1990 में एक टीवी प्रेज़ेंटर स्टीव इरविन (Steve Irwin) और उनके पिता को ये कछुआ मिला था. तब उन्होंने इस कछुए की तस्वीर ली थी. जब पुष्टि की गई तो पता चला कि ये कछुए की एक नई प्रजाति है, इसलिए इरविन को मिले इस कछुए को Irwin's turtle (Elseya irwini) नाम दिया गया. इस कछए को बर्डेकिन की सहायक नदियों में भी पाया गया, लेकिन इसे निचली बर्डेकिन नदी में 25 से भी ज्यादा सालों से देखा नहीं गया था
बीएमसी इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन (BMC Ecology and Evolution) जर्नल में एक पेपर पब्लिश किया गया है, जिसमें इस बात के सबूत दिए गए हैं कि यह कछुआ नदी के कई इलाकों में मौजूद है. वैज्ञानिकों को नदी के किनारे से इकट्ठा किए गए पानी के नमूनों में, इस कछुए के डीएनए मिले हैं
इरविन सहित क्वींसलैंड (Queensland) के मीठे पानी के कछुओं ने सांस लेने के लिए एक अनोखा तरीका विकसित किया है, ताकि इन्हें सांस लेने के लिए सतह पर बार-बार आना न पड़े. साथ ही, खुद को बाकी जानवरों का भोजन बनने से भी बचाया जा सके. वे अपने क्लोअका के जरिए पानी को एब्ज़ॉर्ब करते हैं. उनके डाइजेस्टिव ट्रैक्ट (Digestive Tracts) में गिल (Gills) जैसी संरचनाएं पानी में घुली ऑक्सीजन को अवशोषित कर लेती हैं.
कछुओं की कोई भी ज्ञात प्रजाति पूरी तरह से इस जगह से मिली ऑक्सीजन (Oxygen) पर जीवित नहीं रह सकती. उन सभी को सामान्य तरीके से सांस लेने के लिए समय-समय पर पानी की सतह पर आना पड़ता है. हालांकि, जब वे पीछे से सांस लेते हैं तो उन्हें बाहर आने की कोई जल्दी नहीं रहती. अगर सब कुछ सही है, तो कुछ कछुए अपनी ज़रूरत की 80% ऑक्सीजन इसी तरह से ले सकते हैं, हालांकि बाकी प्रजातियां इतना नहीं करतीं.
इस तरह से सांस लेने के लिए पानी में ऑक्सीजन का होना ज़रूरी है और ऐसा पानी होता है तेज धाराओं का. यह आशंका थी कि मैरी नदी पर बनने वाला बांध ऑक्सीजन की आपूर्ति को कम कर देगा, जिससे इस तरह से सांस लेने वाली प्रजातियों विलुप्त हो सकती थीं. इसलिए बांध को रोकने के लिए कैंपेन चलाया गया, जिसके बाद इन असामान्य और लुप्तप्राय कछुओं की क्षमता के बारे में पहली बार व्यापक रूप से जाना गया.
1987 में पूरे हुए बर्डेकिन फॉल्स बांध (Burdekin Falls Dam) के बारे में भी यही आशंका जताई गई थी कि बांध की वजह से इरविन्स टर्टल (Irwin's turtle) की संख्या में कमी आई होगी. हालांकि, डॉ सेसिलिया विलाकोर्टा-रेथ ( Dr Cecilia Villacorta-Rath), प्रोफेसर डेमियन बरोज़ (, Professor Damien Burrows और सह लेखकों ने बर्डेकिन नदी और उसकी सहायक नदियों के अलावा, 37 साइटों से नमूना लिए, जिसमें उन्हें पूरे इलाके में इन कछुओं के डीएनए मिले.
हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि बांध का इन कछुओं पर कोई असर नहीं पड़ा. ब्रोकेन और बोवेन नदियों से लिए गए नमूनों में साफ तौर पर इन कछुओं के डीएनए पाए गए, जो इस बात का संकेत है कि बांध के नीचे की तुलना में कछुए वहां ज्यादा हैं.
बर्डेकिन नदी की गहराई में ये कछुए, मगरमच्छों के साथ रहते हैं, जिसकी वजह से वैज्ञानिकों को नदी के नीचे जाने में परेशानी हो सकती है. साथ ही, गंदे पानी की वजह से कैमरे बेकार हो जाते हैं, इसलिए पीछे से सांस लेने वाले इन कछुओं की तस्वीरें लेना इतना आसान नहीं है. विलाकोर्टा-रेथ का कहना है कि हम इस आबादी की जनसांख्या के बारे में कुछ नहीं जानते हैं, लेकिन सच यही है कि वे अभी भी जीवित और सुरक्षित हैं.


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