विज्ञान

पहली बार: दुनिया का दुर्लभ ब्लड ग्रुप मिला, जानें क्यों है खास!

jantaserishta.com
14 July 2022 5:04 AM GMT
पहली बार: दुनिया का दुर्लभ ब्लड ग्रुप मिला, जानें क्यों है खास!
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न्यूज़ क्रेडिट: आजतक

नई दिल्ली: देश में एक बेहद दुर्लभ ब्लड ग्रुप मिला है. अभी तक हम चार प्रकार के ब्लड ग्रुप को जानते थे. ये हैं- A, B, O और AB. लेकिन जो दुर्लभ ब्लड ग्रुप मिला है, उसका नाम है ईएमएम निगेटिव (EMM Negative). गुजरात के राजकोट में 65 वर्षीय व्यक्ति के शरीर में यह दुर्लभ खून बहता है. यह व्यक्ति दिल की बीमारी से पीड़ित है.

हैरानी की वजह ये है कि इस दुर्लभ रक्त समूह के साथ यह भारत का पहला और दुनिया का दसवां व्यक्ति है. यानी दुनिया में सिर्फ 10 लोगों के पास यह ब्लड ग्रुप है. इंसान के शरीर में 42 अलग-अलग प्रकार के ब्लड सिस्टम्स मौजूद हैं. जैसे- ए, बी, ओ, आरएच (RH) और डफी (Duffy). लेकिन आमतौर पर चार ही ब्लड ग्रुप माने जाते हैं.
ईएमएम निगेटिव (EMM Negative) ब्लड ग्रुप को 42वां ब्लड ग्रुप सिस्टम माना गया है. इस ब्लड ग्रुप के लोगों के शरीर में ईएमएम हाई-फ्रिक्वेंसी एंटीजन की कमी होती है. इस ब्लड ग्रुप के लोग न खून दान कर सकते हैं, न किसी से ले सकते हैं. सूरत स्थित समर्पण ब्लड डोनेशन सेंटर के फिजिशियन डॉक्टर सन्मुख जोशनी ने कहा कि इस व्यक्ति को खून की जरूरत है. ताकि दिल की सर्जरी की जा सके. क्योंकि उन्हें हाल ही में दिल का दौरा पड़ा था. लेकिन सर्जरी के लिए खून नहीं है.
जब डॉक्टरों ने जांच की तो पता चला कि यह 65 वर्षीय व्यक्ति देश का पहला ऐसा इंसान है, जिसके पास ईएमएम निगेटिव ब्लड ग्रुप मिला है. इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन (ISBT) ने इस रक्त समूह का नाम ईएमएम निगेटिव इसलिए रखा है, क्योंकि इसमें EMM नहीं होता. EMM लाल रक्त कोशिकाओं में एंटीजन होता है.
इसके अलावा दुनिया का सबसे दुर्लभ ब्लड टाइप यानी खून का प्रकार गोल्डेन ब्लड (Golden Blood) है. यह दुनिया में सिर्फ 43 लोगों में पाया जाता है. अगर इस ब्लड टाइप के लोगों को खून की जरूरत होती है, तो उन्हें भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. क्योंकि दुनिया में ऐसे लोगों की इतनी कमी है कि उन्हें खोजना बेहद मुश्किल होता है.
गोल्डेन ब्लड उन लोगों के शरीर में होता है, जिनका Rh फैक्टर null होता है. यानी Rh-null. इस तरह के खून वाले लोगों के Rh सिस्टम में 61 संभावित एंटीजन की कमी होती है. इसलिए इस खून के प्रकार के साथ जीने वालों की जिंदगी हमेशा तलवार की धार पर चलती है.
गोल्डेन ब्लड (Golden Blood) को पहली बार साल 1961 में पता चला था. जब एक स्थानीय ऑस्ट्रेलियन गर्भवती महिला के खून की जांच की गई थी. डॉक्टरों को लगा था कि इसके भ्रूण में पल रहा बच्चा Rh-null होने की वजह से पेट के अंदर ही मर जाएगा.
हमारे पूर्वजों को खून के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी. वो बस इतना जानते थे कि अगर खून शरीर के अंदर है तो अच्छा, बाहर निकला तो बुरा. ज्यादा निकला तो बहुत बुरा. सैकड़ों सालों तक इसके बारे में किसी को कुछ नहीं पता था. लेकिन साल 1901 में ऑस्ट्रियन फिजिशियन कार्ल लैंडस्टीनर ने खून का वर्गीकरण करना शुरु किया. 1909 में उन्होंने बताया कि खून के चार प्रकार होते हैं. ये हैं- A, B, AB और O. इस काम के लिए उन्हें 1930 में नोबल पुरस्कार मिला.
किसी भी जीव के खून में आमतौर पर चार चीजें पाई जाती हैं. लाल रक्त कणिकाएं (Red Blood Cells- RBC), ये पूरे शरीर में ऑक्सीजन का संचार करती हैं, कार्बन डाईऑक्साइड को बाहर निकालती हैं. सफेद रक्त कणिकाएं (White Blood Cells - WBC)...ये शरीर को किसी भी तरह के बाहरी या अंदरूनी संक्रमण से बचाने का प्रयास करती हैं. प्लेटलेट्स (Platelets) वो कण जो खून को जमने में मदद करती हैं. प्लाज्मा (Plasma) यानी वो तरल पदार्थ जो सॉल्ट्स और एंजाइम का संचार करती हैं.
खून के अंदर ब्लड एंटीजन प्रोटीन्स (Blood Antigen Proteins) होते हैं, जो कई तरह का काम करते हैं. ये बाहरी घुसपैठ की सूचना देते हैं. इम्यूनिटी मजबूत करने का काम करते हैं. संक्रमण से बचाने में मदद करते हैं. अगर एंटीजन न हो तो हमारा इम्यून सिस्टम शरीर में बचाव की प्रणाली को शुरु ही नहीं कर सकता. अगर A ब्लड ग्रुप वालों को B टाइप खून चढ़ा दिया जाए तो इम्यून सिस्टम शरीर में आने वाले RBC को दुश्मन समझकर हमला कर देगा. यानी शरीर के अंदर जंग छिड़ जाएगी. इससे इंसान या तो गंभीर रूप से बीमार हो सकता है या मर सकता है.


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