विज्ञान

ब्रह्मांड में पहली बार इतनी तेजी से घूमते मिले भूरे बौने सितारे, खुद को ही करते है नष्ट

Deepa Sahu
10 April 2021 2:51 PM GMT
ब्रह्मांड में पहली बार इतनी तेजी से घूमते मिले भूरे बौने सितारे, खुद को ही करते है नष्ट
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ब्रह्मांड के सबसे तेजी से घूमते भूरे बौने सितारे देखे

जनता से रिश्ता वेबडेस्क : ओटावा : रिसर्चर्स ने अब तक खोजे गए ब्रह्मांड के सबसे तेजी से घूमते भूरे बौने सितारे (Brown dwarf star) देखे हैं। इनकी गति इतनी तेज थी कि ये खुद को ही नष्ट कर सकते हैं। पश्चिमी यूनिवर्सिटी में फिजिक्स और ऐस्ट्रोनॉमी ग्रैजुएट स्टूडेंट मेगन टैनक ने बताया है कि इन सितारों की स्पीड लिमिट पाई गई है। उन्होंने बताया है कि इससे पहले इन 'असफल सितारों' को इतनी तेज घूमते नहीं देखा गया।

कनाडा की वेस्टर्न यूनिवर्सिटी के ऐस्ट्रोनॉमर्स ने NASA के स्पिट्जर स्पेस टेलिस्कोप का डेटा इस्तेमाल किया और बाद में हवाई के जेमिनाई नॉर्थ टेलिस्कोप और चिली के मैगलन बेड टेलिस्कोप का डेटा इस्तेमाल किया। इसकी मदद से ये नतीजे मिले। सितारे की स्पिन का पता करने के लिए वैज्ञानिकों ने उससे मिलने वाली रोशनी में बदलाव को स्टडी किया, जिसे Doppler Shift कहते हैं। गति के आधार पर रोशनी स्पेक्ट्रम में ऊपर-नीचे होती है। कंप्यूटर मॉडल पर थिअरी के साथ इसकी तुलना की जाती है।
सितारों में विस्फोट से 36 करोड़ साल पहले धरती पर खत्म हो गया था जीवन: स्टडी
करीब 36 करोड़ साल पहले हुए Late Devonian Extinction में प्रजातियों के सूमहों में से करीब 50% गायब हो गए थे। अभी तक इसके पीछे ऐस्टरॉइड, क्लाइमेट चेंज, समुद्र स्तर में बदलाव और ज्वालामुखी जैसे कारण माने जा रहे थे। हालांकि, अमेरिका के रिसर्चर्स ने डेवोनियन और उसके बाद आए युग कार्बनिफेरस के बीच में मिलीं चट्टानों को स्टडी किया तो उन्हें कुछ ऐसा मिला कि विनाश की वजह बदलती हुई दिखने लगी। दरअसल इन चट्टानों में लाखों करोड़ों प्लांट स्पोर्स, यानी ऐसे जीवाणु या बीज जो किसी जीव के रूप में विकसित हो सकते हैं, वे अल्ट्रावॉइलट रोशनी की वजह से जले हुए पाए गए। इससे संकेत मिले कि धरती के ऊपर बने ओजोन लेयर के कवच को काफी लंबे वक्त के लिए नुकसान पहुंचा था और इसका एक कारण ये हो सकता है कि सोलर सिस्टम के पास सितारों में विस्फोट- सुपरनोवा हो रहा होगा जिसका असर धरती के जीवन पर पड़ा।
यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनॉई के ऐस्ट्रोनॉमर ब्रायन फील्ड्स ने प्रसीडिंग्स ऑफ द नैशनल अकैडमी ऑफ साइंसेज जर्नल में छपे पेपर में बताया है कि ज्वालामुखी या ग्लोबल वॉर्मिंग जैसे कारणों से ओजोन लेयर को नुकसान जरूर होता है लेकिन जिस समयकाल की यहां बात की जा रही है उस दौरान ऐसी किसी घटना का सबूत नहीं है। इसकी संभावना भी कम है कि गामा-रे बर्स्ट्स, उल्कापिंडों या सूरज में होने वाले विस्फोट की वजह से ऐसा हुआ हो क्योंकि इनकी वजह से ओजोन पर जो असर होता है वो ज्यादा वक्त के लिए नहीं रहता है जबकि सुपरनोवा में इतनी ताकत होती है।पेपर में समझाया गया है कि किसी पास के सितारे में विस्फोट होने से धरती पर अल्ट्रावॉइलट, एक्स रे और गामा रे बड़ी मात्रा में पहुंची होंगी। विस्फोट की वजह से सोलर सिस्टम में तमाम खगोलीय मलबा भी पहुंचा होगा। इन सब के असर से करीब एक लाख साल तक ओजोन लेयर प्रभावित रही और धरती पर जीवन नष्ट होने लगा। इसकी भी संभावना है कि इस दौरान अंतरिक्ष में ऐसे कई सुपरनोवा हुए होंगे और सब मिलाकर धरती पर प्रलय का कारण बने।हालांकि, यह एक थिअरी है और इसे साबित करने के लिए खास रेडियोऐक्टिव आइसोटोप प्लूटोनियम 244 और समेरियम 146 को इस समयकाल की चट्टानों और जीवाश्वमों में खोजा जाएगा। दरअसल ये दोनों आइसोटोप धरती पर प्राकृतिक रूप से नहीं पाए जाते हैं और सिर्फ खगोलीय विस्फोटों के जरिए यहां आ सकते हैं। प्रफेसर फील्ड्स का कहना है कि उनकी स्टडी में मिले नतीजे ये एहसास कराते हैं कि ब्रह्मांड में हम अकेले नहीं हैं। खगोलीय घटनाओं का धरती पर दखल भी है। कई बार ये हमें पता ही नहीं चलता और कभी ये विनाशकारी हो जाता है।
टैनक ने बताया कि हो सकता है कि इस सितारे पर तेज तूफान आते हों और इसकी वजह से इसकी चमक में अंतर आता है। चमक के आधार पर पता लगाया जा सकता है कि सितारे के घूमते हुए कितनी बार एक ही तूफान आता है, इससे स्पिन पीरियड पता चलता है। इन सितारों को 'असफल सितारा' इसलिए कहते हैं क्योंकि ये न्यूक्लियर रिएक्शन के लिए जरूरी द्रव्यमान (mass) नहीं जुटा पाते हैं।
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