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कोरोना महामारी की शुरुआत से ही 'हर्ड इम्यूनिटी' शब्द चर्चा में रहा है
कोरोना महामारी की शुरुआत से ही 'हर्ड इम्यूनिटी' शब्द चर्चा में रहा है। इसे तब हासिल किया जा सकता है, जब आबादी का बड़ा हिस्सा वायरस से संक्रमित होकर एंटीबॉडी विकसित कर ले। लेकिन, विशेषज्ञ मानते हैं कि कोविड-19 बीमारी के केस में हर्ड इम्यूनिटी को हासिल करना सरल नहीं है। इसके लगातार म्यूटेट होने, जल्दी फैलने और हर वर्ग के लोगों को संक्रमित करने की क्षमता के कारण ये वायरस कॉम्प्लेक्स हो चुका है। कनाडा की एक्सपर्ट कैरोलिन कोलीजिन के मुताबिक, यदि वायरस से बचना है तो उसके साथ अभी से जीना सीख लें।
क्या होती है हर्ड इम्यूनिटी?
जब आबादी का बड़ा हिस्सा किसी बीमारी से संक्रमित होकर उसके खिलाफ एंटीबॉडी विकसित कर लेता है, तब असंक्रमित लोग भी बीमारी से सुरक्षित हो जाते हैं। इसके अलावा, ज्यादा से ज्यादा लोगों को वैक्सीनेट करके भी हर्ड इम्यूनिटी हासिल की जा सकती है। इस प्रकार संक्रमण अपने आप ही कंट्रोल में आ जाता है।
हर्ड इम्यूनिटी है 'यूटोपिया'
महामारी की शुरुआत में कई विशेषज्ञ हर्ड इम्यूनिटी के पक्ष में थे। लेकिन समय के साथ-साथ उनकी राय भी बदलती गई। बीबीसी से बात करते हुए विशेषज्ञों ने बताया कि कोरोना दूसरी बीमारियों की तुलना में पेचीदा है। दुनिया में वैक्सीनेशन की रफ्तार बढ़ने के बाद भी यह वायरस खतरनाक साबित हो रहा है।
नेशनल ऑटोनोमस यूनिवर्सिटी ऑफ मेक्सिको के प्रोफेसर मौरिसियो रोड्रिग्ज के अनुसार, इससे हमें समझ जाना चाहिए कि हर्ड इम्यूनिटी सिर्फ एक 'यूटोपिया' यानी कल्पना है। वे कहते हैं कि 'हर्ड इम्यूनिटी' शब्द केवल छोटे या सीमित समूहों पर ही लागू होता है।
4 कारण जिनके चलते कोरोना पर हर्ड इम्यूनिटी है नाकाम..
1. तेजी से बदलता वायरस
महामारी के इन दो सालों में कोरोना वायरस के मूल रूप (SARS-CoV-2) में काफी बदलाव हो चुके हैं। म्यूटेट होने के कारण वायरस और भी खतरनाक हुआ है और इस पर पुरानी वैक्सीन्स शत प्रतिशत कारगर नहीं हैं।
इसका सबसे अच्छा उदाहरण डेल्टा वैरिएंट है, जो वुहान में जन्मे वायरस से दोगुना तेजी से फैलता है। साथ ही, 36 म्यूटेशन वाले ओमिक्रॉन के कम्युनिटी ट्रांसमिशन के होने से इसके केस 1.5 से 3 दिनों में दोगुने हो रहे हैं। स्पेनिश डॉक्टर साल्वाडोर पीरो कहते हैं कि इन सभी उदाहरणों के सामने हर्ड इम्यूनिटी की बात करना बेमतलब है।
विशेषज्ञों के अनुसार, भले ही वैक्सीन लेने वालों में कोरोना के गंभीर लक्षण या मौत का खतरा होने की संभावनाएं कम हैं, लेकिन फिर भी लोग वायरस की चपेट में आ रहे हैं। इससे पता चलता है कि वैक्सीन जान बचा सकती है, पर नए वैरिएंट्स के संक्रमण को नहीं रोक सकती। ऐसे में हर्ड इम्यूनिटी हासिल करना बेहद मुश्किल है।
2. जानवर बन सकते हैं कोरोना का 'रिजर्व'
कनाडा की साइमन फ्रेसर यूनिवर्सिटी इन वैंकूवर की कैरोलिन कोलीजिन कहती हैं कि ज्यादा संक्रमण वाली कोई भी जगह, चाहे वहां के लोगों को वैक्सीन लगाई गई हो या नहीं, नए वैरिएंट का सोर्स बन सकती है। उनके मुताबिक, कोरोना से जो जानवर संक्रमित होते हैं, वो भविष्य में वायरस के लिए 'रिजर्व' का काम कर सकते हैं। सरल भाषा में, ऐसे जानवर इंसानों में कोरोना वायरस फिर से फैला सकते हैं।
3. वैक्सीन लेने के बाद भी कम होती है इम्यूनिटी
अमेरिकी हैल्थ एजेंसी सेंटर्स फॉर डिसीस कंट्रोल (CDC) के मुताबिक, वैक्सीन की इम्यूनिटी बढ़ाने की क्षमता समय के साथ-साथ कम होती जाती है। एक इंसान के शरीर का इम्यून सिस्टम वैक्सीन लेने के बाद या वायरस से संक्रमित होने के बाद 6 से 9 महीने ही अच्छा काम करता है।
इसलिए दुनिया भर में बूस्टर डोज लगाने पर चर्चा की जा रही है। हालांकि, बूस्टर लेने के बावजूद लोग कोरोना के नए वैरिएंट से संक्रमित हो रहे हैं।
4. वैक्सीनेशन- कहीं कम, कहीं ज्यादा
अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों में तो वैक्सीनेशन जोरों पर है, लेकिन यमन और कांगो जैसे गरीब देशों का क्या? OurWorldInData.com के आंकड़ों के अनुसार, हाई-इंकम देशों में तकरीबन 70% आबादी को वैक्सीन के दोनों डोज मिल चुके हैं। वहीं, लो-इंकम देशों में मात्र 6.3% लोगों को ही पहला डोज मिल सका है।
इसके चलते कोरोना वायरस के म्यूटेट होने और संक्रमण फैलने का खतरा अभी टला नहीं है।
तो अब कोरोना से बचने का क्या है उपाय?
विशेषज्ञों के अनुसार, कोरोना पैंडेमिक को एंडेमिक स्टेज पर लाने के लिए उसके साथ जीना सीखना ही पड़ेगा। इसका मतलब, कोरोना से जुड़े कुछ जरूरी प्रोटोकॉल का हमें हमेशा ही पालन करना होगा। इसमें मास्क पहनना, स्वच्छता पर ध्यान देना, समय पर वैक्सीन लगवाना और रैपिड टेस्टिंग करना शामिल हैं।
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