विज्ञान

4.3 करोड़ साल पुरानी वेल मछली के मिस्र के रेगिस्तान में मिले सबूत, 4 टांगों पर चलती और तैरती भी थी

Rani Sahu
29 Aug 2021 7:10 PM GMT
4.3 करोड़ साल पुरानी वेल मछली के मिस्र के रेगिस्तान में मिले सबूत, 4 टांगों पर चलती और तैरती भी थी
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वेल मछली के भी पैर हो सकते हैं। यह सुनने में जितना अजीब लग सकता है, असल में उतना ही सच है

काहिरा वेल मछली के भी पैर हो सकते हैं। यह सुनने में जितना अजीब लग सकता है, असल में उतना ही सच है। अंतर बस इतना है कि वेल की यह प्रजाति आज नहीं बल्कि 4.3 करोड़ साल पहले पाई जाती थी। वैज्ञानिकों ने कई साल पहले इसके जीवाश्म मिलने के बाद हाल ही में इसकी प्रजाति की खोज की है और इसे नाम दिया गया है Phiomicetus anubis। इसके जीवाश्म मिस्र के रेगिस्तान में मिले हैं।

इस वेल मछली का वजन 600 किलो रहा होगा और लंबाई तीन मीटर। यह जमीन पर भी चलती होगी और पानी में तैरती भी होगी। इसका नाम मिस्र के प्राचीन देवता Anubis पर रखा गया है जिनका खोपड़ा जैकॉल के सिर जैसा था। वह मृतकों के देवता था। इसके नाम का एक हिस्सा Fayoum शाद्वल पर रखा गया है। यह वही स्थान है जहां से इसके जीवाश्म मिले हैं।
Ambergris ठोस, मोम जैसा ज्वलनशील तत्व होता है। यह हल्के ग्रे या काले रंग का होता है। स्पर्म वेल की आंतों में यह पाया जाता है। पानी के अंदर वेल मछलियां ऐसे कई जीव खाती हैं जिनकी नुकीली चोंच और शेल्स होती हैं। इन्हें खाने पर वेल के अंदर के हिस्से को चोट न पहुंचे इसके लिए Ambergris अहम होता है। इसे निकालने के लिए कई बार तस्कर वेल की जान ले लेते हैं जो पहले से विलुप्तप्राय जीवों में शामिल है।
इस बात को लेकर अभी स्टडी की जा रही हैं कि यह वाकई वेल की उल्टी होती है, जैसा कि इसे नाम दिया गया है या उसका मल। इसे Ambergris इसलिए कहते हैं क्योंकि यह amber जैसा दिखता है जो बाल्टिक में तट पर बहकर आया हो। Gris का मतलब लैटिन में ग्रे होता है। सूरज और पानी के संपर्क में कई साल तक आने के बाद यह ग्रे, चट्टानी पत्थर में तब्दील हो जाता है। जो Ambergris ताजा होता है, उसकी गंध मल जैसी ही होती है लेकिन फिर धीरे-धीरे मिट्टी जैसी होने लगती है।
इसका इस्तेमाल परफ्यूम इंडस्ट्री में किया जाता है। इसमें मौजूद ऐल्कोहॉल का इस्तेमाल महंगे ब्रैंड परफ्यूम बनाने में करते हैं। इसकी मदद से परफ्यूम की गंध लंबे वक्त तक बरकरार रखी जा सकती है। इस वजह से इसकी कीमत बेहद ज्यादा होती है। यहां तक कि वैज्ञानिकों ने इसे तैरता हुआ सोना भी कहा है। थाइलैंड में जिस मछुआरे को यह टुकड़ा मिला है उसे व्यापारी ने क्वॉलिटी अच्छी साबित होने पर की 25 करोड़ रुपये की पेशकश की है।
सबसे पुरानी अफ्रीकी वेल
यह स्टडी मनसूरा यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने की है। स्टडी के लीड लेखक अब्दुल्ला गोहर ने रॉयटर्स को बताया है कि Phiomicetus anubis एक नई और अहम प्रजाती है। यह अफ्रीकी और मिस्र की पेलियंटॉलजी में एक बड़ी खोज है।
मिस्र के Fayoum डिप्रेशन को 5.6 से 3.39 करोड़ साल पहले के जीवाश्मों का घर माना जाता है। यूनिवर्सिटी के चेयरमैन हिशम सल्लाम ने यह जानकारी दी है। रिसर्च टीम ने चार साल तक स्टडी को डॉक्युमेंट और रिकॉर्ड किया। इसकी तुलना मिस्र और बाहर के देशों में मिलने वाले वेल के जीवाश्म सैंपल्स से की गई। माना जा रहा है कि अफ्रीका में मिलने वाली यह सबसे पुरानी वेल मछली है।


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