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जलवायु परिवर्तन की वजह से महासागरों की कई प्रक्रियाएं ऐसी प्रभावित हो रही है जिससे पृथ्वी की तमाम जलवायु पर ही पड़ता दिख रहा है. नए शोध में वैज्ञानिकों ने अटलांटिक महासागर के धीमे हो रहे धारातंत्र (Atlantic Conveyor) के प्रभावों का अध्ययन कर पता लगाने का प्रयास किया कि इस तंत्र के खत्म हो जाने के क्या प्रभाव होंगे. उन्होंने पाया है कि जहां जलवायु परिवर्तन अटलांटिक धारातंत्र को विशेष तौर पर धीमा कर रहा है, इसका असर बढ़ते ला नीना प्रभाव, जंगलों में तीव्र और बार बार लगने वाली भीषण आग, चरम तापमान और मौसमी घटनाओं के रूप में देखने को मिलेगा.
पृथ्वी का जलवायु परिवर्तनशील और विविधता भरी है. वर्तमान में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन पूर जलवायु तंत्र में बदलाव ला रहा है और इससे महासागरों की धाराओं और उसके प्रभाव में भी काफी बदलाव हो रहे हैं. उत्तरी अटलांटिक की ओर कटिबंधीय इलाकों से जाने वाला गर्म पानी यूरोपीय जलवायु को सौम्य रखता है जिससे कटिबंधीय इलाकों से अतिरिक्त ऊष्मा कम हो पाती है. इसे ही अटलांटिक ओरटर्निंग मेरिडियोनल सर्क्येलेशन कहते हैं. ऐसा ही तंत्र दक्षिणी गोलार्द्ध में भी है.
पिछले 1.2 लाख साल पहले की जलवायु के रिकॉर्ड से खुलासा होता है कि हिमयुगों के दौरान अटलांटिक अपवर्तन प्रवाह या तो बंद हो जाता है या फिर नाटकीय तरीके से धीमा हो जाता है. इसके अलावा यह इंटरग्लेशियल काल के दौरान फिर शुरू हो जाता है जब पृथ्वी की जलवायु गर्म हो जीता है और यूरोप की जलवायु पर इसका असर भी दिखता है.
पांच हजार साल पहले मानव सभ्यता शुरू होने के समय अटलांटिक अपवर्तन तुलनात्मक रूप से स्थिर रही है, लेकिन पिछले कुछ दशकों से इसमें एक धीमापन दिखाई दे रहा है जिसने वैज्ञानिकों को चिंता में डाल रखा है. ग्रीनलैंड और अंटार्किटा में जमी ध्रुवीय बर्फ का पिघलना इसकी प्रमुख वजह मानी जा रही है.
ध्रुवीय बर्फ के पिघलने से महासागरों में साफ पानी जाता है जिससे उच्च अक्षांश का घना पानी सतह के नीचे नहीं जा पाता है. अकेले ग्रीनलैंड मे ही पिछले 20 सालों में 5 ट्रिलियन टन पानी पिघल चुका है और अगर ग्लोबल वार्मिंग इसी तरह से जारी रही तो अगले दशको में यह दर बढ़ जाएगी. उत्तरी अटलांटिक और अंटार्कटिक अपवर्तन प्रवाहों के खत्म होने से दुनिया के महासागरों का कायापलट हो सकता है.
महासागरों में साफ पानी जाने से गहराई में ऑक्सीजन की कमी हो जाएगी और वहां को ऊपरी हिस्सों को वह पोषण नहीं मिल सकेगा जब नीचे का पानी ऊपर की ओर आएगा. वैज्ञानिकों का अनुमान अटलांटिक अवपर्तन पिछली एक सहस्राब्दी में सबसे कमजोर स्तर पर है और भविष्य में और भी कमजोर होकर खत्म तक हो सकती है अगर ग्रीनहाआउस उत्सर्जन पर काबू नहीं किया गया.
शोधकर्ताओं ने अपने जलवायु मॉडल में अटलांटिंक अपवर्तन को बंद किया और उसका तुलनात्मक अध्ययन उस स्थिति से किया जब साफ पानी महासागरों में नहीं मिलता. उन्होंने पाया कि इससे कटिबंधिय क्षेत्र में भूमध्य रेखा के ठीक थोड़े से दक्षिण में ऊष्मा भारी मात्रा में जमा होती जाएगी. इससे पूर्व प्रशांत में भारी मात्रा में सूखी हवा जमा होने लगेगी. जिससे व्यापारिक पवनें मजबूत होंगी और इंडोनेशिया के सागरों में गर्म पानी आने लगेगा और कटिबंधीय प्रशांत ला नीना की चपेट में आ जाएगा. ऐसा ही कुछ प्रभाव दक्षिण के अंटार्किटिका अपवर्तन के कारण भी देखने को मिलेगा.