विज्ञान

भूकंप: वैज्ञानिकों ने फिर किया कमाल, जानें सब कुछ

jantaserishta.com
16 May 2022 4:00 AM GMT
भूकंप: वैज्ञानिकों ने फिर किया कमाल, जानें सब कुछ
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नई दिल्ली: बड़े भूकंप (Massive Earthquakes) से होने वाली तबाही से हर कोई वाकिफ है. वैज्ञानिकों के पास ऐसा कोई तरीका नहीं था जिससे बड़े भूकंपो के बारे में पहले से चेतावनी मिल सके. लेकिन अब, शोधकर्ताओं ने छोटे गुरुत्वाकर्षण संकेतों (Gravitational Signals) की पहचान करने के लिए ऐसे कंप्यूटर बनाए हैं, जिससे सिग्नल के इस्तेमाल से तुरंत ही बड़े भूकंप की जगह और आकार को मार्क किया जा सकता है.

नेचर जर्नल (Nature Journal) में प्रकाशित पेपर के मुताबिक, पृथ्वी पर आने वाले सबसे शक्तिशाली भूकंपों के लिए शुरुआती चेतावनी देने वाला सिस्टम (Early Warning System) बनाने की तरफ यह पहला कदम है.
फ्रांस के नीस (Nice, France) में Université Côte d'Azur के भू-भौतिकीविद् (Geophysicist) आंद्रिया लिकिआर्डी (Andrea Licciardi) कहते हैं कि इस तरह का सिस्टम भूकंप विज्ञान (Seismology) की गहन समस्या को हल करने में मदद कर सकता है. जैसे, बड़ा भूकंप आने के तुरंत बाद भूकंप का वास्तविक मैग्निट्यूड कैसे जल्द से जल्द पिन किया जाए. इस क्षमता के बिना, खतरनाक चेतावनी को तेज और प्रभावी तरह से जारी करना बहुत कठिन है.
जैसे ही बड़े भूकंप आते हैं, कंपन जमीन के ज़रिए सीस्मिक तरंगें (Seismic waves) भेजता है, जो सीस्मोमीटर (Seismometers) पर बड़े झटके के रूप में दिखाई देती हैं. लेकिन आजकल के सीस्मिक वेव पर आधारित डिटेक्शन के तरीकों में इस तरह की घटना के बाद, कुछ सेकंड में 7.5 की तीव्रता और 9 तीव्रता के भूकंप के बीच अंतर करने में परेशानी आती है.
ऐसा इसलिए है, क्योंकि मैग्निट्यूड के शुरुआती अनुमान, पी तरंगों (P waves) नाम की सेस्मिक वेव्स की ऊंचाई पर आधारित होते हैं, जो मॉनिटरिंग स्टेशनों पर सबसे पहले पहुंचते हैं. फिर भी सबसे बड़े भूकंपों के लिए, शुरुआती पी वेव्स के आयाम अधिकतम हो जाते हैं, जिससे अलग-अलग मैग्निट्यूड के भूकंपों को अलग करना मुश्किल होता है.
लेकिन सेस्मिक वेव्स भूकंप के शुरुआती संकेत नहीं हैं. एक बड़े भूकंप में घूमने वाला वह सारा द्रव्यमान भी, अलग-अलग जगहों पर चट्टानों के घनत्व को बदल देता है. घनत्व में इन बदलावों से पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में भी छोटे-छोटे बदलाव होते हैं, जिससे इलास्टोग्रैविटी (Elastogravity) तरंगें बनती हैं. यह तरंगे जमीन पर प्रकाश की गति से चलती हैं. इनकी गति सेस्मिक वेव्स से भी तेज होती है.
शोधकर्ताओं ने विचार किया कि इन इलास्टोग्रैविटी सिग्नल्स को अर्ली वार्निंग सिस्टम में कैसे बदला जाए. वैज्ञानिकों ने पाया कि पिछले 30 सालों में केवल 6 बड़े भूकंपों ने ही पहचाने जाने योग्य इलास्टोग्रैविटी सिग्नल दिए थे. आंद्रिया लिकिआर्डी कहते हैं यहां कंप्यूटर की जरूरत होती है. उन्होंने और उनके सहयोगियों ने PEGSNet बनाया, जो एक मशीन लर्निंग नेटवर्क है, जिसे "प्रॉम्प्ट इलास्टो ग्रेविटी सिग्नल"("Prompt ElastoGravity Signals) का पता लगाने के लिए डिज़ाइन किया गया है.
शोधकर्ताओं ने जापान में इकट्ठा किए गए भूकंप के डेटा और उसी क्षेत्र में भूकंप के लिए 500,000 सिमुलेटेड ग्रैविटी सिग्नल को मिलाकर, मशीन को ट्रेन किया. इस ट्रेनिंग के लिए सिंथेटिक ग्रेविटी डेटा ज़रूरी है, क्योंकि वास्तविक डेटा बहुत दुर्लभ हैं. साथ ही, मशीन लर्निंग मॉडल को डेटा में पैटर्न खोजने के लिए पर्याप्त इनपुट की ज़रूरत होती है.
फिर इन कंप्यूटर्स का टेस्ट लिया गया. इन्हें 2011 के तोहोकू भूकंप (Tohoku-Oki Earthquake) को ट्रैक करने को कहा गया जैसे कि वे वास्तविक समय में हो रहा हो. इसके नतीजे संतोषजनक थे. एल्गोरिथ्म ने अन्य तरीकों की तुलना में, 5 से 10 सेकंड पहले भूकंप की तीव्रता और जगह दोनों की सटीक पहचान की थी. नतीजे बताते हैं कि PEGSNet भूकंप की शुरुआती चेतावनियों के लिए एक शक्तिशाली उपकरण साबित हो सकते हैं. हालांकि, अभी इसपर और काम करने की जरूरत है.
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