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धरती और चंद्रमा की तरह मंगल ग्रह पर भी भूकंप आते रहते हैं
वॉशिंगटन: धरती और चंद्रमा की तरह मंगल ग्रह पर भी भूकंप आते रहते हैं। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के इनसाइट लैंडर ने हाल में ही मंगल पर दो बड़े भूकंपीय झटकों का पता लगाया है। रिक्टर स्केल पर इन झटकों की तीव्रता 3.3 और 3.1 मापी गई है। वैज्ञानिकों ने इसे मार्कक्वेक का नाम दिया है। उन्होंने बताया है कि इनसाइट लैंडर ने मंगल पर कम के कम 500 भूकंपों को महसूस किया है, लेकिन इनमें से दो का डेटा लिया जा सका है।
मंगल पर 500 भूकंपों का पता चला
वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी या चंद्रमा पर भूकंप के विपरीत मार्सक्वेक न तो ग्रह के माध्यम से सीधे स्रोत से यात्रा करते हैं, न ही तितर-बितर होते हैं। बल्कि इन दोनों श्रेणियों के बीच में बने रहते हैं। 5 मई 2018 को लॉन्च किए गए इनसाइड लैंडर के जरिए नासा को इस साल मार्च में मंगल पर आए कई भूकंपों का पता चला है। इससे जिससे नासा को अपनी भू-आकृति और भूकंपीय गतिविधि का अध्ययन करने के लिए नए डेटा भी मिले हैं।
मंगल पर एक्टिव हैं कई भूकंपीय जोन
मंगल पर भूकंप के इन डेटा से वैज्ञानिकों के उस अवधारणा को भी बल मिला है जिसे सेर्बस फोसाए के नाम से जाना जाता है। इसके अनुसार, मंगल के सतह पर ज्वालामुखियों के विस्फोट से जो आकृतियां बनी हैं वे सक्रिय भूकंपीय क्षेत्र भी हैं। बताया जा रहा है कि इनसाइट लैंडर ने अपने तीन साल की गतिविधि के दौरान मंगल पर कुल 500 से ज्यादा भूकंप के झटकों को रिकॉर्ड किया है।
मार्च में आए दो भूकंपों का मिला डेटा
इनसाइट लैंडर ने 7 मार्च को 3.3 रिक्टर स्केल और 18 मार्च को 3.1 रिक्टर स्केल के दो भूकंप के झटकों को रिकॉर्ड किया। आमतौर पर मंगल ग्रह पर इस तरह के स्पष्ट भूकंपीय आंकड़ों को पकड़ना आसान नहीं है। इस लाल ग्रह पर अधिकतर समय तेज रफ्तार से हवाएं चलती रहती हैं। जिसके कारण कई बार भूकंप के डेटा उड़ जाते हैं। नासा को आखिरी बार दो साल पहले मंगल के उत्तरी ध्रुव पर भूकंपीय गतिविधि की स्पष्ट जानकारी मिली थी।
यह आगे चलकर सौर ऊर्जा से भी चार्ज होगा जो मंगल पर धरती की तुलना में कम है लेकिन इसमें हाई-टेक सोलर पैनल लगे हैं जो यह काम आसान कर देंगे। हालांकि, बाद में इसका तापमान कम रखा जाएगा ताकि बैटरी ज्यादा खर्च न हो। मंगल पर रात को 130 डिग्री F तक तापमान गिर सकता है और पहली रात इसे झेलने के बाद अगले दिन टीम देखेगी कि Ingenuity का प्रदर्शन कैसा रहा। न सिर्फ यह देखा जाएगा कि क्या हेलिकॉप्टर चल रहा है, बल्कि इसके सोलर पैनल, बैटरी की हालत और चार्ज चेक करेगी और अगले कुछ दिन तक इन पैमानों को ही टेस्ट किया जाएगा।
इस कदम को पूरा करने के बाद इसके रोटर ब्लेड्स को अनलॉक किया जाएगा और इसके मोटर और सेंसर टेस्ट किए जाएंगे। मंगल के 30 दिन (धरती के 31 दिन) बाद इसकी एक्सपेरिमेंटल फ्लाइट की कोशिश होगी। NASA के मुताबिक अगर हेलिकॉप्टर टेक ऑफ और कुछ दूर घूमने में सफल रहा तो मिशन का 90% सफल रहेगा। अगर यह सफलता से लैंड होने के बाद भी काम करता रहा तो चार और फ्लाइट्स टेस्ट की जाएंगी। यह पहली बार किया जा रहा टेस्ट है इसलिए वैज्ञानिक इसे लेकर बेहद उत्साहित हैं और हर पल कुछ नया सीखने की उम्मीद में हैं।
मंगल पर रोटरक्राफ्ट की जरूरत इसलिए है क्योंकि वहां की अनदेखी-अनजानी सतह बेहद ऊबड़-खाबड़ है। मंगल की कक्षा में चक्कर लगा रहे ऑर्बिटर ज्यादा ऊंचाई से एक सीमा तक ही साफ-साफ देख सकते हैं। वहीं रोवर के लिए सतह के हर कोने तक जाना मुमकिन नहीं होता। ऐसे में ऐसे रोटरक्राफ्ट की जरूरत होती है जो उड़ कर मुश्किल जगहों पर जा सके और हाई-डेफिनेशन तस्वीरें ले सके। 2 किलो के Ingenuity को नाम भारत की स्टूडेंट वनीजा रुपाणी ने एक प्रतियोगिता के जरिए दिया था।
मंगल के बारे में हो सकता है बड़ा खुलासा
इसके तीन साल बाद नासा के इनसाइट लैंडर को दो भूकंपीय संकेतों पर स्पष्ट डेटा रिकॉर्ड करने में सफलता मिली है। इंस्टीट्यूट डे फिजिक डु ग्लोब डे पेरिस के एक शोधकर्ता डॉ ताइची कवामुरा ने लैंडर के जरिए दर्ज किए गए बड़े मार्सक्वेक की एक और विशिष्ट विशेषता को इंगित किया। उन्होंने बताया कि वे उन भूकंपों से मिलते-जुलते थे जो ग्रह की सतह के माध्यम से सीधे स्रोत से यात्रा करते हैं।
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