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कोरोना महामारी के बाद से विश्व और भारत में डायबिटीज (Diabetes) से पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़ रही है
कोरोना महामारी के बाद से विश्व और भारत में डायबिटीज (Diabetes) से पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़ रही है. वहीं अब डायबिटीज से पीड़ित मरीजों में एक और बीमारी तेजी से सामने आ रही है और वह है आंखों में बढ़ता अंधापन (Blindness). भारत में कोविड (Covid) के बाद से आंख की गम्भीर बीमारी डायबिटिक रेटिनोपैथी (Diabetic Retinopathy) के केसों में भी बढोत्तरी देखी गयी है. इस बीमारी में मरीजों में अंधेपन की समस्या पैदा हो जाती है और अगर इलाज न कराया जाए तो धीरे-धीरे आंख की रोशनी पूरी तरह चली जाती है.
स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो 2025 तक रेटिनोपैथी नाम की क्रोनिक डिजीज (Chronic Disease) से पीड़ितों की संख्या कई गुना बढ़ने की आशंका है. एंडोक्राइन सोसाइटी ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष और करनाल स्थित भारती अस्पताल के जाने माने एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. संजय कालरा बताते हैं कि भारत में इस समय डायबिटीज के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है. फिलहाल देश में 7.7 करोड़ लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं. वहीं कुछ राज्यों में तो यह सामान्य जीवन का हिस्सा बन चुकी है. आज यह बीमारी खांसी-जुकाम की तरह लोगों के साथ-साथ चल रही है. जबकि कोरोना ने इस बीमारी को घर-घर तक पहुंचाने का काम किया है. आज सिर्फ शहरों में ही नहीं बल्कि गांवों में भी टाइप-2 और टाइप-1 डायबिटीज के मरीज (Diabetic Patients) मिल रहे हैं.
कालरा बताते हैं कि कोरोना होने से मरीजों में काउंटर रेगुलेटरी हार्मोन काफी रिलीज हुआ है जो इंसुलिन (Insulin) से लड़ाई करता है और शुगर को अनियंत्रित करता है. वहीं कुछ लोगों को समय पर दवा नहीं मिल पाई इससे भी कोरोना मरीजों को डायबिटीज हुई. इसके अलावा मरीजों को दिए गए स्टेरॉयड से भी यह बीमारी बढ़ी. कोरोना का वायरस लोगों के पैनक्रियाज में जाकर बैठ गया, इससे भी डायबिटीज की समस्या काफी पैदा हुई है और अब यह रेटिनोपैथी बढ़ाने में कारगर हो रहा है.
डायबिटीज की कई जटिलताएं होती हैं लेकिन इनमें एक जो इस समय सबसे ज्यादा प्रभावित कर रही है वह है रेटिनोपैथी. इसके अलावा जो आंखों की बीमारियां डायबिटीज की वजह से हो रही हैं उनमें आंखों में इन्फेक्शन (Eye Infection), ड्राई आई (Dry Eye) या आंखों का सूखा पड़ जाना, आंख की नाजुक नसों का डैमेज होना या लीक होने से आंख के पर्दे पर खून के धब्बे बनना और अंधेपन का कारण बनना आदि भी शामिल हैं.
डॉ. कालरा कहते हैं कि रेटिनोपैथी बढ़ने के पीछे एक वजह यह भी है कि आज डायबिटीज से लड़ने के लिए बेहतरीन दवाएं बाजार में मौजूद हैं. इसी वजह से डायबिटीज होने के बावजूद लोगों का सर्वाइवल रेट भी बढ़ गया है हालांकि लंबे समय तक डायबिटीज से पीड़ित मरीजों में ही रेटिनोपैथी का खतरा सबसे ज्यादा होता है. इसमें मरीज धीरे-धीरे अंधा होने लगता है और आंखों की रोशनी पूरी तरह खत्म हो जाती है.
डायबिटीज के साथ बीपी और कॉलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करना भी जरूरी
डॉ. संजय कहते हैं कि आंख में होने वाली रेटिनोपैथी में डायबिटीज का सबसे बड़ा योगदान है लेकिन शुगर के साथ-साथ हाई ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और मोटापे को नियंत्रित करना भी जरूरी है. क्योंकि ऐसा करने से 30 फीसदी तक रेटिनोपैथी का खतरा कम किया जा सकता है. डॉ. कालरा कहते हैं कि कोरोना के दौरान व्यायाम की कमी और अत्यधिक तनाव के कारण शुगर लेवल बढ़ने के साथ ही ये सभी चीजें भी लोगों में बढ़ी हैं. यही वजह है कि आंखों में अंधेपन को लेकर सामने आ रहे मरीज भी बढ़ रहे हैं.
लोगों को नहीं पता उन्हें डायबिटीज है
स्वास्थ्य विशेषज्ञ का कहना है कि भारत में ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं है कि उन्हें डायबिटीज है. डायबिटीज के लक्षणों के बावजूद लोग इसका चेकअप नहीं कराते हैं. अधिकांश मामलों में देखा गया है कि लोग कोई परेशानी होने के बाद ही डायबिटीज या आंखों की जांच कराते हैं. वे रुटीन चेकअप नहीं कराते. जबकि लोगों को चाहिए कि वे साल में एक बार आंखें और दो बार शुगर की जांच कराएं.
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