विज्ञान

गर्भनाल की क्षतिग्रस्‍त स्‍टेम कोशिकाएं हो सकती हैं ठीक, पढ़ें क्या कहती है स्‍टडी

Gulabi Jagat
9 Aug 2022 5:33 PM GMT
गर्भनाल की क्षतिग्रस्‍त स्‍टेम कोशिकाएं हो सकती हैं ठीक, पढ़ें क्या कहती है स्‍टडी
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पढ़ें क्या कहती है स्‍टडी
क्या आप जानते हैं कि नवजात शिशु की गर्भनाल 'लिम्फोमा और ल्यूकेमिया' जैसी जीवन रक्षक स्टेम कोशिकाओं का घर होती है? इसी वजह से आजकल पैरंट्स शिशु की गर्भनाल में रक्त जमा करने का ऑप्‍शन चुनते हैं। हालांकि अगर गर्भावस्था गर्भावधि (gestational) डायब‍िटीज से प्रभावित होती है, तो गर्भनाल की स्टेम कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और गर्भनाल बेकार हो जाती है। अब नोट्रे डेम (Notre Dame) यूनिवर्सिटी के बायोइंजीनियरों ने अपनी स्‍टडी में एक रणनीति का जिक्र किया है, जिससे क्षतिग्रस्त स्टेम कोशिकाओं को ठीक किया जा सकता है, जिससे वह दोबारा नए ऊतकों को विकसित कर सकती हैं। इस रणनीति के तहत हरेक क्षतिग्रस्त स्टेम सेल को नैनोपार्टिकल बैकपैक (nanoparticle backpack) दिया जाता है।
नॉट्रे डेम में बायोइंजीनियरिंग ग्रैजुएट प्रोग्राम में एयरोस्पेस और मैकेनिकल इंजीनियरिंग के असिस्‍टेंट प्रोफेसर डोनी हंजय ने कहा कि हरेक स्टेम सेल एक सैनिक की तरह है। यह स्मार्ट और प्रभावी है। यह जानती है कि कहां जाना है और क्या करना है। लेकिन हम जिन 'सैनिकों' के साथ काम कर रहे हैं, वो कमजोर हैं। उन्हें नैनोपार्टिकल 'बैकपैक' देकर हम उन्हें प्रभावी ढंग से काम करने के लिए तैयार कर रहे हैं।
रिसर्चर्स ने 'बैकपैक' को हटाकर भी क्षतिग्रस्त कोशिकाओं पर प्रयोग किया। पता चला कि कोशिकाओं ने अधूरे ऊतकों का निर्माण किया। वहीं 'बैकपैक' इस्‍तेमाल करने पर कोशिकाओं ने नए ब्‍लड वेसल भी बनाए। हंजय ने कहा उनकी स्‍टडी अब तक डेवलप किसी भी मेथड का सबसे डेवलप हिस्‍सा है। उन्‍होंने कहा कि दवा को सीधे ब्‍लड में इंजेक्ट करने पर कई तरह के जोखिम और साइड इफेक्‍ट्स की संभावना रहती है।
हंजय और उनकी टीम को लगता है कि यह तरीका गर्भावस्था की जटिलताओं जैसे- प्रीक्लेम्पसिया (preeclampsia) के दौरान काम आ सकता है। रिसर्चर ने कहा कि भविष्य में स्टेम कोशिकाओं को त्यागने के बजाए हम आशा करते हैं कि डॉक्‍टर उन्हें फिर से जीवित करने और शरीर को दोबारा रीजेनरेट करने के लिए उनका इस्‍तेमाल करने में सक्षम होंगे। उन्‍होंने उदाहरण देते हुए समझाया कि प्रीक्लेम्पसिया के कारण समय से पहले पैदा हुए बच्चे को आधे-अधूरे फेफड़े के साथ एनआईसीयू में रहना पड़ता है। हमारी तकनीक बच्‍चे के डेवलपमेंट में सुधार कर सकती है।
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