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- कोरोना महामारी की चपेट...
सामान्य फ्लू से ज़्यादा खतरनाक नहीं : ट्रंप पर आरोप है कि वायरस की गंभीरता से वाकिफ होने पर भी उन्होंने शुरू से इसे सामान्य वायरस कहा. ट्रंप के साथ ही कुछ और नेताओं ने भी. दावा गलत कैसे निकला? महामारी विशेषज्ञों ने देखा कि आम फ्लू के मुकाबले कोरोना से मौतों की दर ज़्यादा है. अमेरिका में ही इस वायरस से दो लाख से ज़्यादा मौतें कुछ ही महीनों में होना सबूत बना. लोग सच क्यों मानते हैं? नेता चीख चीखकर कहते हैं. जैसा कि हिटलर ने कहा था झूठ को इतनी बार इतने ज़ोर से बोलो कि वो सच हो जाए
मास्क पहनना ज़रूरी नहीं : एक तो नेताओं ने मास्क पहनने में दिलचस्पी नहीं ली, दूसरे वैज्ञानिक अध्ययनों को लेकर इतनी अलग अलग सूचनाएं आईं कि यह विश्वास नहीं बन सका कि मास्क वाकई वायरस के खतरे को कम करता है. दावा गलत कैसे साबित हुआ? दुनिया की अग्रणी स्वास्थ्य संस्था लैंसेट ने 170 अध्ययनों का विश्लेषण कर जो रिपोर्ट हाल में छापी, उसमें कहा गया कि मास्क पहनने से कोविड से बचाव मुमकिन है. लोग क्यों सच मानते हैं? CDC और WHO ने जो शुरूआती गाइडलाइन्स बताई, उसमें मास्क को लेकर पुख्ता जानकारियां नहीं थीं और मास्क के टाइप को लेकर भी एक कन्फ्यूज़न पैदा हुआ. अपडेटेड सूचनाएं सब तक पहुंची नहीं.
वायरस फैलने दो, हर्ड इम्युनिटी बचाएगी : यूके और स्वीडन के बारे में खबरें थीं कि हर्ड इम्युनिटी की थ्योरी अपनाई गई लेकिन दोनों देशों ने इनकार किया और देर से ही सही देशव्यापी लॉकडाउन किया. थ्योरी गलत निकली? विशेषज्ञों ने माना कि यह थ्योरी खतरनाक है क्योंकि अगर 70 फीसदी आबादी तक संक्रमित होगी, तो करोड़ों मौतें होंगी. सच क्यों माना गया? चूंकि वैक्सीन को लेकर कुछ तय नहीं था और सबको सामान्य जीवन में लौटने की जल्दी थी. यह भी विश्वास दिलाया गया कि कई लोगों को तो पता भी नहीं है लेकिन वो इम्यून हो चुके हैं.
HCQ असरदार इलाज है : फ्रांस में एक छोटी सी स्टडी ने सबसे पहले यह दावा किया था. इसके बाद ट्रंप ने इसे ज़ोरदार ढंग से प्रचार दिया. दुनिया भर में इसकी मांग बढ़ गई. थ्योरी गलत कैसे निकली? कई स्टडीज़ में HCQ को कोविड के खिलाफ असरदार नहीं पाया गया. अमेरिका प्रशासन ने पहले इसे सिर्फ इमरजेंसी में इस्तेमाल किए जाने की मंज़ूरी दी और फिर जून में इसके ट्रायल रोक दिए गए. क्यों सच माना जाता है? इतना प्रचार और शुरूआती सूचनाएं इतनी ज़बरदस्त रहीं कि लोगों के बीच मज़बूत संदेश चला गया. चूंकि यह आसानी से उपलब्ध भी थी, तो लोगों ने इसे अपना हथियार मान लिया.
टेस्ट बढ़े तो केस बढ़े : ट्रंप ने यही प्रचार किया कि अमेरिका ने ज़्यादा टेस्टिंग की तो ज़्यादा केस निकले. कुछ देशों ने इस थ्योरी को अपनाया. थ्योरी गलत निकली? कई विश्लेषणों में पाया गया कि स्थिति इसके उलट थी. अस्पतालों में भर्ती हुए मरीज़ों और मौतों के आंकड़ों के विश्लेषण से नतीजे निकले कि जो पॉज़िटिव केस आए, वो केसों में सचमुच बढ़ोत्तरी थी. सच माना गया? यह अस्ल में तार्किक बात रही कि जितने ज़्यादा टेस्ट होंगे, केस उतने ही पता चलेंगे. लेकिन इसमें पॉज़िटिव टेस्ट के साथ ही मौतों और गंभीर मामलों के आंकड़ों को देखकर विश्लेषण करना ज़रूरी रहा, जिसके बारे में जानकारी ठीक से लोगों तक पहुंची नहीं.
सुरक्षित नहीं होगी वैक्सीन : खबरें रहीं कि वैक्सीन विकास को लेकर साज़िशें चल रही हैं और लेाग वैक्सीन से डरे हैं. तो क्या वैक्सीन सुरक्षित होगी? इतिहास के हवाले से अमेरिका में लोगों तक वैक्सीन पहुंचने की प्रक्रिया ठीक रही है. कोई घातक नुकसान नहीं हुआ. कोविड से जुड़ी गलतफहमियों को लेकर साइंटिफिक अमेरिकन की रिपोर्ट के मुताबिक कोई वैक्सीन सही प्रक्रिया से आए तो सुरक्षित होगी. फिर लोग डरे क्यों हैं? डर जायज़ है क्योंकि ट्रंप व कुछ और देशों की सरकार ने वैक्सीन को लेकर जल्दबाज़ी और गलत प्रक्रियाओं के रवैये दिखाए. लेकिन कहा गया है कि वैज्ञानिक मानवता के हित में शपथ लेकर वैक्सीन निर्माण में जुटे हैं.