विज्ञान

गुफाओं में रोगाणुओं की जटिल कॉलोनी मौजूद, 800 साल पुरानी गुफा में मिला दूसरे ग्रहों जैसा माहौल

Rounak Dey
26 July 2022 2:40 PM GMT
गुफाओं में रोगाणुओं की जटिल कॉलोनी मौजूद, 800 साल पुरानी गुफा में मिला दूसरे ग्रहों जैसा माहौल
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क: सैकड़ों साल पहले, ज्वालामुखी फटने से हवाई (Hawaii) के द्वीप बने, लेकिन इनके साथ-साथ सुरंगों और गुफाओं का एक नेटवर्क भी बना था. ये गुफाएं काफी ठंडी हैं, इनमें सिर्फ अंधेरा है और ये जहरीली गैसों और खनिजों से भरी हुई हैं. ऐसे में यहां जीवन की कल्पना नहीं की सकती.

हालांकि, वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि ज्वालामुखी से बनी इन सुरंगो और गुफाओं में, असल में रोगाणुओं (Microbes) की विशाल और जटिल कॉलोनी मौजूद हैं. इनके बारे में कहा जा रहा है कि ये पृथ्वी पर सबसे छोटे ज्ञात जीवित जीव (living organisms) हैं, जिनके बारे में अभी तक पर्याप्त जानकारी नहीं है.
अनुमान के मुताबिक, सूक्ष्म जीवों की 99.999 प्रतिशत प्रजातियां अज्ञात रहती हैं. इसलिए जीवन के इन रहस्यमय रूपों को 'डार्क मैटर' कहते हैं. हवाई की लावा गुफाओं में वैज्ञानिकों की दिलचस्पी इसलिए भी है, क्योंकि वहां की स्थितियां बिल्कुल वैसी हैं जो मंगल या किसी दूसरे ग्रह पर हो सकती हैं. अगर इन 600-800 साल पुरानी लावा गुफाओं में रोगाणु जीवित रह सकते हैं, तो हमें मंगल ग्रह पर भी सुराग मिल सकते हैं.
फ्रंटियर्स इन माइक्रोबायोलॉजी (Frontiers in Microbiology) जर्नल में प्रकाशित शोध के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि 500 ​​साल से ज्यादा पुरानी लावा गुफाओं में आमतौर पर अलग-अलग तरह के रोगाणु होते हैं. इसलिए, इन छोटे-छोटे जीवों को यहां बसने में लंबा समय लगता है. जैसे-जैसे पर्यावरण बदलता है, वैसे ही जीवाणुओं की सामाजिक संरचना बदलती है.
मानोआ में हवाई यूनिवर्सिटी (University of Hawaii) से माइक्रोबायोलॉजिस्ट रेबेका प्रेस्कॉट (Rebecca Prescott) का कहना है कि इससे ​​सवाल उठता है कि क्या जानलेवा वातावरण ज्यादा इंटरैक्टिव माइक्रोब्स को बनाने में मदद करता है, जिसमें सूक्ष्मजीव एक-दूसरे पर ज्यादा निर्भर होते हैं?' अगर ऐसा है तो जानलेवा वातावरण के बारे में ऐसा क्या है जिसकी वजह से यहां माइक्रोब्स बनते हैं?'
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस शोध से यह समझाने में मदद मिलती है कि को-कल्चर में रोगाणुओं की स्टडी करना कितना अहम है. बजाय इसके कि उन्हें अलग या कहीं और विकसित किया जाए. उनके मुताबिक, प्राकृतिक दुनिया में सूक्ष्मजीव अकेले नहीं बढ़ते हैं. बल्कि, वे अलग-अलग सूक्ष्मजीवों के साथ बढ़ते हैं और आपस में फलते-फूलते हैं.
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