विज्ञान

जलवायु परिवर्तन : 21वीं सदी के अंत तक रहने लायाक नहीं रहेगी महासागरों की सतह

Rani Sahu
29 Aug 2021 5:47 PM GMT
जलवायु परिवर्तन :  21वीं सदी के अंत तक रहने लायाक नहीं रहेगी महासागरों की सतह
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जलवायु परिवर्तन (Climate Change) पूरी पृथ्वी (Earth) को प्रभावित कर रही है. पेड़ पौधे, वायुमंडल, मौसम के साथ महासागरों तक पर इसके असर दिखने लगे हैं

जलवायु परिवर्तन (Climate Change) पूरी पृथ्वी (Earth) को प्रभावित कर रही है. पेड़ पौधे, वायुमंडल, मौसम के साथ महासागरों तक पर इसके असर दिखने लगे हैं जो मानव सहित पूरे जीवों पर बुरा असर डाल रहे हैं. हाल ही में प्रकाशित शोध के मुताबिक पृथ्वी के महासागरों की सतह (Surface of the Ocean) का 95 प्रतिशत हिस्सा इस सदी के अंत तब बहुत बदलने वाला है. अगर मानवता ने इसे रोकने के लिए कदम ना उठाए तो महासागरीय सतह की जलवायु तक खत्म हो सकती है. इसक दुष्प्रभाव को रोकने के लिए हम इंसानों को कार्बन उत्सर्जन पर काबू पाना होगा.

कार्बन प्रदूषण का अवशोषण
महासागरों की सतह की जलवायु सतह के पानी के तापमान, अम्लता और एरागोनाइट खनिज की मात्रा से नियंत्रित होती है. एरागोनाइट से बहुत सारा समुद्री जीवों की हड्डियां और खोल बनती हैं और यह अधिकांश समुद्री जीवन का आधार है. लेकिन औद्योगिक क्रांति के बाद से दुनिया में फैले कार्बन प्रदूषण का एक तिहाई हिस्सा पृथ्वी के महासागर अवशेषित कर चुके हैं. जिसका असर अब देखने को मिलने लगा है.
आवास पर तेजी से बढता खतरा
पिछले 30 लाख सालों में अब वायुमंडल में CO2 स्तरों के अप्रत्याशित दर से बढ़ने से इस बात का खतरा बहुत अधिक हो गया है कि महासागरों की सतह की जलवायु वहां के जीवों के लिए अब कम आवासयोग्य हो गई है. इस अध्ययन में अमेरिकी शोधकर्ता यह जानने का प्रयास कर रहे थे कि 18वीं सदी के मध्य से महासागरों की सतह पर कार्बन प्रदूषण का क्या असर हो चुका है.
महासागरों की जलवायु के तीन मॉडल
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने यह अनुमान भी लगाया कि साल 2100 में क्या हालात होंगे. इसके लिए उन्होंने तीन कालों के वैश्विक महासागरों की जलवायु के मॉडल बनाए. पहला 19वीं सदी की शुरुआत का समय(1795-1834), दूसरा 20वी संदी में बाद के साल (1965-2004), और तीसरा 21वीं सदी में बाद का समय (2065-2014).
और आगे होंगे ऐसे दो परिदृश्य
शोधकर्ताओं ने इन मॉडलों को दो उत्सर्जन परिदृश्यों में चलाया. पहले में, जिसे RCP4.5 कहते हैं, 2050 तक चरम ग्रीन हाउस गैंसों का उत्सर्जन होगा. दूसरे परिदृश्य में, जिसे RCP8.5 कहते हैं, पाया कि सदी के दूसरे हिस्से में यह कम होता जाएगा. इस परिदृश्य में शोधकर्ताओं ने व्यापार सामान्य रूप से चलता हुआ माना जहां उत्सर्जन अगले 80 सालों तक बढ़ते ही रहेंगे.
इस सदी में होंगे ज्यादा बदलाव
नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि RCP4.5 परिदृश्य में 20 सदी में महासागरों की सतह के हालात का 36 प्रतिशत हिस्सा गायब हो जाएगा. वहीं उच्च उत्सर्नज परिदृश्य मे यह आंकड़ा 95 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा. टीम ने यह भी पाया कि महासागरीय सतह की जलवायु ने 20वीं सदी में बदलाव के कम संकेत दिखाई दिए हैं.
कार्बन प्रदूषण ही प्रमुख वजह
वहीं अध्ययन में यह भी पाया गया कि 2100 तक इसमें 82 प्रतिशत तक बदलाव दिखेंगे जो हालिया इतिहास में कभी नहीं देखे गए हैं. इसमें समुद्रों में ज्यादा गर्मी, ज्यादा अम्लता, और समुद्री जीवन के जरूरी खनिजों की कम होती मात्रा प्रमुख होंगे. इस अध्ययन के प्रमुख लेखिका और नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी के मरीन साइंस सेंटर की शोधकर्ता कैटी लोटरहोस का कहना है कि महासागरों की इस बदलती संरचना की वजह कार्बन प्रदूषण हैं जो सतह की सभी प्रजातियों की प्रभावित करेगा.
केटी ने कहा कि आज जिस जलवायु में पानी का तापमान और रासायनिकता है, वह भविष्य में बहुत कम या गायब ही रहेगा. ऐसे में यहां की प्रजातियों को बदलावों के अनुकूल खुद को ढालना होगा. लेकिन उनके इन मुश्किल होते हालातों से बचने के विकल्प खत्म होते जाएंगे. अभी से बहुत सी प्रजातियां अपना स्थान बदलने लगी हैं. ऐसे में दुनिया के अंततः उत्सर्जन को नियंत्रित करने पर ही ध्यान देना होगा जिससे गर्मी और अम्लीयकरण रोका जा सके.


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