विज्ञान

जलवायु परिवर्तन : यूरोप में गायब हो रहे हैं 40 साल से लाखों पंछी

Rani Sahu
20 Nov 2021 6:27 PM GMT
जलवायु परिवर्तन : यूरोप में गायब हो रहे हैं 40 साल से लाखों पंछी
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मानव इतिहास में पक्षी (Birds)लंबे समय से इंसान से साथी रहे हैं

मानव इतिहास में पक्षी (Birds)लंबे समय से इंसान से साथी रहे हैं तो यह कहना शायद गलत नहीं होगा. पक्षियों ने हमें संदेश आदान प्रदान करने से लेकर मछली पकड़ने या शिकार करने तक में साथ दिया है. खानाबदोश इंसानों के लिए तो पक्षियों ने भोजन की तलाश करने में इंसानों की मदद की है. लेकिन मानवीय गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के कारण यूरोप (Europe) में 1980 से लगातार पक्षी गायब हो रहे हैं. और वो भी कोई धीरे धीरे नहीं बल्कि स्थिति यह है कि पिछले 40 सालों में गायब हुए पक्षियों की संख्या 62 करोड़ तक पहुंच गई है

रॉयल सोसाइटी फॉर प्रोटेक्शन ऑफ बर्ड्स के रिचर्ड ग्रेगरी का कहना है कि इसमें भी चिंता की बात यही है कि इस बात पर किसी की ध्यान नहीं जा रहा है यानि पंछियों (Birds) के गायब होना स्पष्ट तौर पर नहीं हो रहा है, वे धीरे धीरे परिदृश्य से गायब होते जा रहे हैं. अजीब बात लगती है कि बहुत प्यारे दिखाई देने वाले छोटे कबूतरों (Sparrows) की संख्या 1980 के दशक की तुलना में आधी हो गई है. अब इनकी संख्या 60 प्रतिशत तक गिर कर करीब 7.5 करोड़ तक हो गई है. इस कमी का ज्यादा संबंध कृषि (Agriculture) और घास के मैदानों वाले वातावरणों से है, फिर भी ऐसा शहरों में भी हो रहा है.
बर्ड लाइफ यूरोप के संवाद की अंतरिम प्रमुख एना स्टेनेवा ने बताया कि समान्य पक्षी (Birds) कम सामान्य होता जा रहा है क्योंकि जिन इलाकों पर ने निर्भर होते हैं उसे इंसान साफ कर रहे हैं. हमारे खेतों समुद्री और शहरों से प्रकृति हटा दी गई है. यूरोप (Europe) की सभी सरकारों को प्रकृति पुनर्नवीनीकरण (Nature Restoration) के बाध्यकारी और वैधानिक लक्ष्य स्थापित करने चाहिए नहीं तो इसके नतीजे हमारी ही प्रजाति तक के लिए गंभीर हो सकते हैं. ऐसा क्यों हो रहा है इसके कई बहुत से कारण हो सकते हैं. आवासीय हानि, कीटों की प्रजातियों में भारी गिरावट , प्रदूषण बीमारियां सभी एक साथ इस महाविनाश की घटना में योगदान दे रहे हैं.
फिलहाल पक्षियों (Birds) में यह कमी उन्हीं प्रजातियों (Species) में हो रही है जिनकी जनसंख्या बहुत अधिक है. इनमें 25 प्रतिशत की कमी हो रही है. वहीं दुर्लभ प्रजातियों (Rare Species) में यह नुकसान 4 प्रतिशत का है इस लिहाज से यह प्रजातियों के स्तर पर विलुप्त (Extinction) होने की घटना की श्रेणी में नहीं आ रहा है. आरएसपीबी कंजरनेशन के जीवविज्ञाननी फियोना बर्न्स का कहना है कि सामान्य प्रजातियां इस बदलाव में ज्यादा योगदान दे रही हैं. लेकिन थोड़ा बदलाव या नुकसान भी हमारे पारिस्थितिकी तंत्र की कार्यों और संरचना को भारी नुकसान पहुंचा सकता है.
बर्डवाचिंग (Bird watching) का हमारा इतिहास बहुत समृद्ध है. इससे भारी संख्या में लोगों ने पक्षियों (Birds) का अध्ययन किया है. इसमें कई जानवरों और पक्षियों के अध्ययन शामिल हैं. अब हमारे पार गैरपेशेवर पक्षीविज्ञानियों की वजह से बहुत सारे आंकड़े जमा हो गए हैं जिन्हें अध्ययन के लिए उपयोग में लाया जाता है ऐसे ही दो डेटाबेस की जानकारियों का उपयोग कर बर्न और उनके साथियों ने यूरोप (Europe) में पनपी 445 स्थानीय पक्षी प्रजातियों में से 378 को अपने अध्ययन में शामिल किया. पिछले कई छोटे अध्ययनों ने यूरोप के इस चिंता जनक संकट को पहचाना था. दुर्भाग्य से यह चलन पूरे के पूरे यूरोप में जारी रहा जिसमें बहुत सारी प्रजातियां शामिल हैं. 2019 में एक उत्तरी अमेरिका के अध्ययन में भी पाया गया कि ऐसा ही कुछ वहां भी हो रहा है.
शोधकर्ताओं का कहना है कि सभी शोध यह इशारा करता हैं कि जैवविविधता (biodiversity के सभी वर्तमान लक्ष्य हासिल करने में नाकामी रही और साल 2020 के बाद वैश्विक जैवविविधता ढांचे में जा रहे मानव समाजों के सभी क्षेत्रों में जरूरी स्तर पर बदालव के लिए काम किया जाए. शोधकर्ताओं का कहना है कि यह पूरी तरह से बहुत बुरी खबर भी नहीं हैं. बर्न और उनके साथियों ने पाया कि कई जगहों पर पक्षियों (Birds) जनसंख्या में इजाफा हो रहा है, वह संरक्षण (Conservation) प्रयासों के कारण हो रहा था. सात पक्षी प्रजातियों में यह चलन नहीं दिखा क्यों कि संरक्षण के साथ कीटनाशक आदि में कमी की गई थी. इससे पता चलता है कि हम जैवविविधता को आकार दने में कितने सक्षम हैं.
बर्न का कहना है कि हमें पक्षियों (Birds) के लिए अपने समाज में आमूलचूल बदलाव का प्रयास करना होगा जिससे प्रकृति और जलवायु (Climate) समस्या का समाधान हो सके. हमें लक्ष्य बढ़ाने होंगे और व्यापक स्तर वनों, झीलों, आदि के साथ संरक्षित क्षेत्र बढ़ने पर ध्यान देना होगा. शोधकर्ताओं ने अपनी पड़ताल के साथ आग्रह किया है कि यूरोपीय यूनियन में प्रकृति पुनर्नवीनीकरण (Nature Restoration) कानून बनाया जाए. इसके अलावा हम निजी तौर पर अपने बगीचों में प्राकृतिक वनस्पति लगा सकते हैं. घोंसले के डिब्बे रख सकते हैं. वृक्षारोपण बढ़ाने जैसे कई काम सकते हैं. यह शोध इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में प्रकाशित हुआ था.


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