विज्ञान

चीन के कृत्रिम सूरज ने बनाया नया विश्‍व रेकॉर्ड, निकली 7 करोड़ डिग्री सेल्सियस ऊर्जा

Rani Sahu
6 Jan 2022 6:40 PM GMT
चीन के कृत्रिम सूरज ने बनाया नया विश्‍व रेकॉर्ड, निकली 7 करोड़ डिग्री सेल्सियस ऊर्जा
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चीन के कृत्रिम सूरज ने एक बार फिर से नया विश्‍व रेकॉर्ड बनाया है

चीन के कृत्रिम सूरज ने एक बार फिर से नया विश्‍व रेकॉर्ड बनाया है। हेफेई में स्थित चीन के इस न्‍यूक्लियर फ्यूजन रिएक्‍टर से 1,056 सेकंड या करीब 17 मिनट तक 7 करोड़ डिग्री सेल्सियस ऊर्जा निकली। चीन की इस सूरज ने नया रेकॉर्ड गत 30 दिसंबर को बनाया। यह अब तक का सबसे ज्‍यादा समय है जब इतनी ऊर्जा इस परमाणु रिएक्‍टर से निकली है। इससे पहले इस नकली सूरज ने 1.2 करोड़ डिग्री ऊर्जा निकाली थी। इस बीच चीन के इस नकली सूरज से निकली अपार ऊर्जा से दुनिया टेंशन में आ गई है।

हेफेई इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिकल साइंसेज ने एक्सपेरिमेंटल एडवांस्ड सुपरकंडक्टिंग टोकामक (EAST) हीटिंग सिस्टम प्रॉजेक्‍ट शुरू किया है। यहां पर हैवी हाइड्रोजन की मदद से हीलियम पैदा किया जाता है। इस दौरान अपार ऊर्जा पैदा होती है। शुक्रवार को चाइना अकादमी ऑफ साइंसेज के शोधकर्ता गोंग शिंयाजू ने 7 करोड़ डिग्री सेल्सियस तक ऊर्जा पैदा होने का ऐलान किया। गोंग के निर्देशन में ही हेफेई में यह प्रयोग चल रहा है।
प्‍लाज्‍मा ऑपरेशन करीब 1,056 सेकंड तक चला
चीन की सरकारी संवाद समिति शिन्‍हुआ से बातचीत में गोंग ने कहा, 'हमने 1.2 करोड़ डिग्री सेल्सियस के प्‍लाज्‍मा तापमान को साल 2021 के पहले 6 महीने में 101 सेकंड तक हासिल किया था। इस बार यह प्‍लाज्‍मा ऑपरेशन करीब 1,056 सेकंड तक चला। इस दौरान तापमान करीब 7 करोड़ डिग्री सेल्सियस तक रहा। इससे एक संलयन आधारित परमाणु रिएक्‍टर को चलाने का ठोस वैज्ञानिक और प्रयोगात्‍मक आधार तैयार हो गया है।'
इस चीन के हाथ लगी इस अपार ऊर्जा से दुनिया के वैज्ञानिक टेंशन में आ गए हैं। चीन ने जहां वैश्विक हथियार प्रतिस्‍पर्द्धा में जहां बढ़त हासिल कर ली है, वहीं दुनिया की अन्‍य महाशक्तियां ऐसी नई तकनीक को खोजने के लिए संघर्ष कर रही हैं जिससे इंसान को 'असीमित ऊर्जा' मिल सके। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन की कृ‍त्रिम सूरज को लेकर यह सफलता काफी महत्‍वपूर्ण है। चीन की इस सफलता से अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों को भी इस तकनीक में शोध करने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
चांद के वीरान और उजाड़ सतह के नीचे कई बहुमूल्य धातुएं मौजूद हैं। ऐसा माना जाता है कि सोने और प्लेटिनम का खजाना चंद्र सतह के ठीक नीचे दबी हुई हैं। इसके अलावा धरती पर मिलने वाले कई अन्य धातुएं जैसे टाइटेनियम, यूरेनियम, लोहा भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। दावा यह भी है कि चंद्रमा पर पृथ्वी की दुर्लभ कई धातुएं हैं जो अगली पीढ़ी के इलेक्ट्रॉनिक्स को शक्ति प्रदान करेंगी। यही कारण है कि सभी देश जल्द से जल्द इस वीरान, उबड़-खाबड़ और अमानवीय जलवायु वाले उपग्रह पर पहुंचना चाहते हैं। चंद्रमा पर नॉन-रेडियोएक्टिव हीलियम गैस भी एक महत्वपूर्ण मात्रा में उपलब्ध है। यह गैस एक दिन धरती पर परमाणु फ्यूजन (nuclear fusion) रिएक्टरों को शक्ति प्रदान कर सकती है। विशेषज्ञों का तो दावा यहां तक है कि चंद्रमा पर पानी भी मौजूद है। एक दिन ऐसा आएगा जब इस उपग्रह की पानी के लिए सभी देशों के बीच होड़ मचेगी।
विशेषज्ञों के मुताबिक, विश्‍वभर की महाशक्तियों की योजना चांद पर बस्तियां बसाने की है। इसी को देखते हुए चीन ने लंबी अवधि की योजना पर काम करते हुए अपना चंद्रमा उत्‍खनन कार्यक्रम शुरू किया है। उसकी कोशिश वर्ष 2036 तक चंद्रमा पर एक स्‍थायी ठिकाना बनाने की है। चीन चंद्रमा के टाइटेनियम, यूरेनियम, लोहे और पानी का इस्‍तेमाल रॉकेट निर्माण के लिए करना चाहता है। अंतरिक्ष में यह रॉकेट निर्माण सुविधा वर्ष 2050 तक अंतरिक्ष में लंबी दूरी तक उत्‍खनन करने की उसकी योजना के लिए बेहद जरूरी है। चीन क्षुद्र ग्रहों का भी उत्‍खनन करना चाहता है। साथ ही उसकी योजना भू समकालिक कक्षा में सोलर पॉवर स्‍टेशन बनाने की है। चीन के अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रमुख झांग केजिन ने घोषणा की है कि चीन अगले 10 साल में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अपना शोध केंद्र स्‍थापित करेगा।
चीन की इन पुख्‍ता तैयारियों को देखते हुए ही 2019 में डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में तत्कालीन अमेरिकी उपराष्‍ट्रपति माइक पेंस ने भी कहा था, 'हम इन दिनों एक स्‍पेस रेस में जी रहे हैं जैसाकि वर्ष 1960 के दशक में हुआ था और दांव पर उस समय से ज्‍यादा लगा है। चीन ने रणनीतिक रूप से महत्‍वपूर्ण चंद्रमा के सुदूरवर्ती इलाके में अपना अंतरिक्ष यान उतारा है और इस पर कब्‍जा करने की योजना का खुलासा किया है।' चंद्रमा के खनिजों का तेजी के साथ खनन अमेरिका के लिए भी बेहद महत्‍वपूर्ण हो गया है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा एक ऐसे रोबॉट पर काम कर रही है जो प्राकृतिक संसाधनों का पता लगाने के लिए चंद्रमा की मिट्टी को निकालकर उसकी जांच कर सकता है। नासा भी वर्ष 2028 तक चंद्रमा पर एक अड्डा बनाना चाहती है। नासा के ऐडमिनिस्‍ट्रेटर जिम ब्राइडेनस्‍टाइन ने पिछले दिनों कहा था कि हम चांद पर इसलिए जाना चाहते हैं क्‍योंकि हम मानव के साथ मंगल ग्रह पर जाना चाहते हैं।
नासा के इस काम में ऐमजॉन कंपनी के मालिक जेफ बेजोस मदद कर रहे हैं। उनकी एक कंपनी ब्‍लू ओरिजिन एक नए रॉकेट पर काम कर रही है। बेजोस की योजना पृथ्‍वी पर स्थित सभी विशालकाय उद्योगों को अंतरिक्ष में ले जाने की है। चीन और बेजोस दोनों की योजना अंतरिक्ष में मानव बस्तियां बसाने और औद्योगीकरण की है। चीन की सोच है कि धरती पर स्थित परंपरागत ऊर्जा स्रोतों पर अगर उसकी अर्थव्‍यवस्‍था निर्भर रहेगी तो यह लंबे समय के लिए ठीक नहीं होगा। इसीलिए वह अंतरिक्ष के संसाधनों के इस्‍तेमाल पर काम कर रहा है। बेजोस भी मानते हैं कि मानव के रहने के लिए पृथ्‍वी के संसाधन सीमित हैं, इसलिए अंतरिक्ष में रहने की संभावना पर काम करना होगा। बेजोस ने अपने एक भाषण में कहा था कि चंद्रमा के पानी का इस्‍तेमाल ईंधन के रूप में किया जा सकता है।
चीन कृत्रिम सूर्य या टोकामक के निर्माण में पैसा पानी की तरह बहाया
वहीं चीन कृत्रिम सूरज की मदद से अपने स्‍थान को और ज्‍यादा मजबूत करने में जुट गया है। परमाणु संलयन के दौरान असीमित ऊर्जा निकलती है और चीनी सूरज में इसी तकनीक का इस्‍तेमाल किया गया है। वैज्ञानिकों को उम्‍मीद है कि इस प्रक्रिया के जरिए इंसान को गर्मी और प्रकाश मिलेगा जैसाकि सूरज से हमें मिलता है। EAST और अन्‍य फ्यूजन रिएक्‍टर सोवियत वैज्ञानिकों की परिकल्‍पना है जिसे उन्‍होंने 1950 के दशक में अंजाम दिया था।
अब तक चीन अपने कृत्रिम सूर्य या टोकामक के निर्माण में पैसा पानी की तरह खर्च कर चुका है। टोकामक एक इंस्टॉलेशन है जो प्लाज्मा में हाइड्रोजन आइसोटोप को उबालने के लिए उच्च तापमान का इस्तेमाल करता है। यह एनर्जी को रिलीज करने में मदद करता है। रिपोर्ट के मुताबिक इसके सफल इस्तेमाल से बहुत कम ईंधन का इस्तेमाल होगा और लगभग 'शून्य' रेडियोएक्टिव कचरा पैदा होगा। इंस्टीट्यूट ऑफ प्लाज्मा फिजिक्स के डेप्युटी डायरेक्टर सांत यूंताओ ने कहा कि आज से पांच साल बाद हम अपना फ्यूजन रिएक्टर बनाना शुरू करेंगे, जिसके निर्माण में और 10 साल लगेंगे। उसके बनने के बाद हम बिजली जेनरेटर का निर्माण करेंगे और करीब 2040 तक बिजली पैदा करना शुरू कर देंगे।
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