विज्ञान

Chandrayaan स्पेसक्राफ्ट ने चांद के दिन वाले हिस्से में पानी की मौजूदगी के दिए संकेत, अमेरिकी वैज्ञानिकों ने कही ये बात

Shantanu Roy
5 Aug 2021 9:16 AM GMT
Chandrayaan स्पेसक्राफ्ट ने चांद के दिन वाले हिस्से में पानी की मौजूदगी के दिए संकेत, अमेरिकी वैज्ञानिकों ने कही ये बात
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अमेरिकी वैज्ञानिकों का मानना है कि चांद के गड्ढों यानी क्रेटर्स में दिन में भी बर्फीला पानी मिल सकता है. क्योंकि कई क्रेटर ऐसे हैं, जिनकी परछाइयों की वजह से अंधेरे वाले हिस्से में चांद की सतह पर काफी ठंडक रहती है. यानी क्रेटर का वो हिस्सा जहां कभी सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती. यही स्थिति बड़े पत्थरों के पीछे बनने वाली परछाइयों के साथ भी है.

हालांकि, नासा के वैज्ञानिकों का पहले मानना था कि रात में चांद की सतह पर बर्फीले पानी की हल्की परत बनती होगी, जो सुबह सूरज की रोशनी में गायब हो जाती है. नासा के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के साइंटिस्ट जॉर्न डेविडसन ने कहा कि करीब एक दशक पहले ISRO के चंद्रयान-1 (Chandrayaan-1) स्पेसक्राफ्ट ने चांद के दिन वाले हिस्से में पानी की मौजूदगी के संकेत दिए थे. इसे नासा के स्ट्रेटोस्फियरिक ऑब्जरवेटरी फॉर इंफ्रारेड एस्ट्रोनॉमी (SOFIA) ने पुख्ता भी किया था.
जॉर्न डेविडसन ने कहा कि चंद्रयान-1 समेत कई अन्य अंतरिक्षयानों ने चांद पर पानी होने के संकेत और सबूत दिए हैं. लेकिन चांद के बुरे पर्यावरण में पानी का टिके रहना बेहद मुश्किल है. इसलिए हमारी खोज लगातार जारी है कि चांद की सतह पर पानी कहां और कैसे मिल सकता है. तो पता ये चला कि बर्फीला पानी जमा हो सकता है और वह हवाविहीन वस्तुओं पर सर्वाइव कर सकता है. जैसे पत्थरों की परछाइयों के नीचे या फिर क्रेटर के उन हिस्सों में जहां कभी सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती.
एक नई स्टडी में जॉर्न डेविडसन और सोना हुसैनी ने लिखा है कि चांद की सतह पथरीली और ऊबड़-खाबड़ है. जिसकी वजह से सूरज की रोशनी दिन में भी कई जगहों पर नहीं पहुंच पाती. इसलिए यह संभावना है कि पत्थरों और क्रेटर की परछाइयों में बर्फीले पानी जमा होता हो. जबकि, सूरज के ध्रुवीय इलाकों यानी उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर काफी ठंडा रहता है, वहां तो ये काम आसानी से देखने को मिल सकता है. इसकी वजह से हल्का वायुमंडल भी बनता दिखाई देता है.
डेविडसन और सोना हुसैनी ने इसे समझने के लिए कंप्यूटर मॉडल्स बनाए. पहले यह माना जाता था कि ध्रुवों से दूर जो मैदानी इलाके हैं, वो दिन में एक समान गर्म होते हैं. लेकिन कंप्यूटर मॉडल्स के जरिए की गई स्टडी में यह बात स्पष्ट हुई है कि चांद की सतह एक समान गर्म नहीं होती. कई स्थानों पर परछाइयों के भीतर पानी के कण मिल सकते हैं.
दोनों वैज्ञानिकों ने बताया कि SOFIA ने यह बात पकड़ी है कि दिन की गर्मी के बावजूद चांद की सतह पर मौजूद परछाइयों में पानी के सिग्नल मिले हैं. ये चांद की पूरी सतह पर मौजूद हो सकते हैं. सिर्फ एक ही समस्या है कि दोपहर के समय जब सूरज ठीक सिर के ऊपर होता है तब इनकी मात्रा कम हो जाती है, लेकिन सुबह, शाम और रात में इनकी मात्रा बढ़ जाती है.
क्योंकि कई अंतरिक्षयानों और टेलिस्कोप ने यह डेटा हासिल किया है, जिसमें पानी की हल्की परत एक जगह से दूसरी जगह हवा के सहारे तैरती है और सेकेंड्स में गायब हो जाती है. यानी इसका मतलब ये है कि चांद की सतह पर मौजूद पत्थरों, क्रेटर और उनकी परछाइयों में पानी जमा रहता है. जो दिन की रोशनी के हिसाब से कम ज्यादा होता रहता है. अपनी बात को पुख्ता करने के लिए डेविडसन और हुसैनी ने 1969 से 1972 के बीच अमेरिका द्वारा छोड़े गए अपोलो मिशन के डेटा का भी एनालिसिस किया.
अपोलो मिशन के डेटा को जब कंप्यूटर मॉडल में डाला गया तो उसमें भी लगभग वही परिणाम सामने आए. डेविडसन ने बताया कि चांद के ऊपर घना वायुमंडल नहीं है, जैसा कि पृथ्वी के ऊपर बना रहता है. यहां पर तापमान माइनस 210 डिग्री सेल्सियस से 120 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है. यानी सूरज की रोशनी में तापमान बहुत ज्यादा और अंधेरे में बहुत कम होता है. यह बर्फीले पानी की पतली परत बनाने में मदद करता है.
डेविडसन कहते हैं कि बर्फीले पानी की परत यानी फ्रॉस्ट (Frost) जमे हुए तरल पानी की तुलना में ज्यादा जगह बदल सकता है. इसलिए हमारे नए कंप्यूटर मॉडल ने चांद की सतह पर पानी के होने को लेकर नई परिभाषा और नए तथ्य पेश कर रहा है. साथ ही यह भी बता रहा है कि चांद की सतह और पतले वायुमंडल में किस तरह की समानताएं, असमानताएं और दोनों का एकदूसरे पर किस तरह का प्रभाव है.
डेविडसन और हुसैनी द्वारा चांद की सतह के ऊबड़-खाबड़ होने और तापमान का अध्ययन पहली बार नहीं किया गया है. लेकिन इस नई स्टडी से यह जानकारी तो पुख्ता हो रही है कि चांद पर मौजूद हर तरह की परछाइयों और अंधेरे वाले इलाकों में फ्रॉस्ट (Frost) के होने की भरपूर संभावना है. यानी पूरे चांद की सतह पर पानी है. लेकिन बस उसका रूप बदला हुआ है.
सोना हुसैनी इस बात को पुख्ता करने के लिए अब अल्ट्रा-मिनिएटर सेंसर विकसित कर रही हैं, जो चांद पर जाने वाले अगले मिशन में भेजा जाएगा. इसका नाम है हेटरेडाइन ओएच लूनर मिनिएचराइज्ड स्पेक्ट्रोमीटर (HOLMS). ये चांद पर जाने वाले अगले किसी भी लैंडर या रोवर पर लगाया जा सकेगा. यह चांद की सतह पर हाइड्रोक्सिल (Hydroxyl) की जांच करेगा. हाइड्रोक्सिल पानी का आणविक रिश्तेदार है, जिसमें हाइड्रोजन के दो कण और ऑक्सीजन का एक कण होता है.
हुसैनी ने बताया कि हाइड्रोक्सिल और पानी उल्कापिंडों की टक्कर से भी पैदा हो सकते हैं. चांद के क्रेटर इन्ही उल्कापिंडों के टकराने से बने हैं. क्रेटर में कई हिस्से ऐसे होते हैं जहां सूरज की रोशनी नहीं जाती. अगले लैंडर या रोवर चांद की सतह पर हाइड्रोक्सिल का पता लगाने के लिए एक्सोस्फियर (Exosphere) की जांच करेंगे. क्योंकि हाइड्रोक्सिल भी सतह या वायुमंडल में आसानी से एक जगह से दूसरी जगह चला जाता है.


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