विज्ञान

साल 2080 तक समुद्रों में बचेगी सिर्फ 30 फीसदी ऑक्सीजन, इन पर पड़ेगा असर

Gulabi
3 Feb 2022 12:21 PM GMT
साल 2080 तक समुद्रों में बचेगी सिर्फ 30 फीसदी ऑक्सीजन, इन पर पड़ेगा असर
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समुद्रों में बचेगी सिर्फ 30 फीसदी ऑक्सीजन
पर्यावरण के बारे में रिसर्च करने वाले शोधर्कताओं ने एक डरावनी चेतावनी दी है। एक नए रिसर्च के मुताबिक, समुद्रों से ऑक्सीजन (Oxygen ) कम होती जा रही है। इस नए रिसर्च के मुताबिक, दुनिया के सभी समुद्रों में 70 प्रतिशत तक ऑक्सीजन कम हो जाएगी। इसका मतलब है कि समुद्रों में सिर्फ 30 फीसदी ही ऑक्सीजन बचेगी। वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसा साल 2080 तक होगा। इसकी सबसे बड़ी वजह जलवायु परिवर्तन (Climate Change) है। इंसानों द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण की वजह से जलवायु परिवर्तन हो रहा है।
नई स्टडी के मुताबिक, समुद्रों के बीच वाले इलाके में लगातार ऑक्सीजन की कमी होती जा रही है। समुद्र के इस हिस्से में सबसे ज्यादा मछलियां पाई जाती हैं और यहीं से पूरी दुनिया में मछली का व्यापार हो रहा है। सबसे डराने वाली बात यह है कि ऑक्सीजन ज्यादा अप्राकृतिक दर से कम हो रहा है। साल 2021 में पूरी दुनिया के समुद्रों में ऑक्सीजन गंभीर स्तर पर चला गया था।
समुद्रों में गैस के रूप में ऑक्सीजन घुली रहती है। जिस प्रकार से जमीन पर जानवरों को सांस लेने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ती है, उसी तरह समुद्री जीवों के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। हालांकि जलवायु परिवर्तन की वजह से समुद्र गर्म होता जा रहा है जिससे पानी में घुली हुई ऑक्सीजन लगातार कम हो रही है। कई सालों से वैज्ञानिक समुद्र में कम होते जा रहे ऑक्सीजन को ट्रैक कर रहे हैं।
नई स्टडी में क्लाइमेट मॉडल्स के माध्यम से बताया है कि समुद्रों में ऑक्सीजन धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी। इस प्रक्रिया को डीऑक्सीजेनेशन (Deoxygenation) कहा जाता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे पूरी दुनिया के समुद्र प्रभावित होंगे। सिर्फ ये हो सकता है कि कहीं ज्यादा हो, कहीं कम हो।
नई रिसर्च में खुलासा हुआ है कि समुद्रों में घुली ऑक्सीजन खत्म हो जाती है या कम हो जाती है, तो बेहद मुश्किल होगा उसे दोबारा बना पाना। समुद्र के बीच के लेवल को डीऑक्सीजेनेशन अधिक प्रभावित कर रहा है। अब यह इलाका मछलियों के लिए सुरक्षित नहीं है। साल 2021 में बेहद डरावना डेटा मिला है।
इस स्टडी में कहा गया है कि दुनिया के समुद्रों में साल 2080 तक डीऑक्सीजेनेशन की प्रकिया बहुत तेज दर से हो जाएगी। समुद्र के बीच के लेवल से 70 प्रतिशत घुली ऑक्सीजन कम हो सकती है। AGU जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में यह रिसर्च प्रकाशित की गई है। इसमें साफ-साफ कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से ऑक्सीजन का स्तर जमीन, पानी और वायुमंडल पर असर डाल रहा है।
समुद्र में 200 मीटर से 1000 मीटर की गहराई को मेसोपिलैजिक जोन (Mesopelagic Zone) कहा जाता है जो बीच का लेवल होता है। जलवायु परिवर्तन की वजह से पहले जोन में ऑक्सीजन बहुत तेजी से खत्म हो रहा है। मेसोपिलेजिक जोन में ही व्यापार से जुड़ी मछलियां मिलती हैं जिनकी सप्लाई पूरी दुनिया में होती है। वह खाने के लिए हो या किसी तरह के उत्पाद बनाने के लिए।
व्यवसायिक मछलियों के खत्म होने पर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी। इसके साथ ही समुद्री पर्यावरण पर ज्यादा प्रभाव दिखेगा। लगातार बढ़ रहे तापमान की वजह से समुद्र गर्म हो रहा है। गर्म पानी में घुली ऑक्सीजन की मात्रा समाप्त होती जा रही है।
डीऑक्सीजेनेशन को लेकर समुद्र के बीच का स्तर काफी अधिक संवेदनशील होता है। इस हिस्से में न तो वे पोधे पाए जाते हैं जो फोटोसिंथेसिस करते हैं या शैवाल। यहां पर पूरी तरह से सूरज की रोशनी नहीं जा पाती है। यहां एल्गी जरूर मिलती हैं जिनकी वजह से ऑक्सीजन ज्यादा खर्च होती है। इन्हीं को खाने के लिए मछलियां यहां रहती हैं। अगर यह खत्म हो गया तो मछलियां भी खत्म हो जाएंगी। इससे मछली के व्यवसाय पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।
शंघाई जियाओ तोंग यूनिवर्सिटी की ओशिएनोग्राफर यूंताओ झोउ का कहना है कि समुद्र के बीच वाले जोन की बहुत जरूरत है। यहीं पर व्यवसाय वाली मछलियां ज्यादा पाई जाती हैं। डीऑक्सीजेनेशन के चलते समुद्री स्रोतों पर अधिक असर होगा। अगर मछलियां कम हो गईं, तो दुनिया में आर्थिक और भोजन के स्तर पर बड़ा असर होगा।
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