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वेंडी बर्गर्स और कैथरीन रियू दक्षिण अफ्रीका की यूनिवर्सिटी ऑफ केपटाउन में एक साथ काम करती हैं
पिछले साल नवंबर में जब ओमिक्रॉन (Omicron) वैरिएंट के बारे में पता चला, तब इम्यूनोलॉजिस्ट वेंडी बर्गर्स और कैथरीन रियू ने कुछ जरूरी सवालों के जवाब खोजने शुरू कर दिए थे. सबसे बड़ा सवाल ये था कि ओमिक्रॉन जीनोम दर्जनों म्यूटेशन कर चुका था. 30 से ज्यादा म्यूटेशन तो सिर्फ उसके स्पाइक प्रोटीन में. जिसके कोड्स का उपयोग कोविड-19 वैक्सीन बनाने के लिए किया जाता है. यानी पिछले कोरोना वैरिएंट्स के लिए बनी वैक्सीन बेकार साबित हो सकती है. लेकिन हमारे शरीर की किलर इम्यून सेल्स (Killer Immune Cells) ओमिक्रॉन के खिलाफ रक्षा कवच हैं, ये पहचान लेती है कोविड के नए वैरिएंट को और उस हिसाब से उससे संघर्ष करतीं.
वेंडी बर्गर्स और कैथरीन रियू दक्षिण अफ्रीका की यूनिवर्सिटी ऑफ केपटाउन में एक साथ काम करती हैं. इन्होंने देखा कि जैसे-जैसे कोरोना वायरस के नए वैरिएंट्स आ रहे हैं, वैसे-वैसे लोगों के शरीर की एंटीबॉडी कमजोर होती जा रही है. लेकिन शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कई स्तरों में है. दूसरे स्तर के खास कोशिकाएं जिन्हें हम किलर इम्यून सेल्स (Killer Immune Cells) या T-Cells कहते हैं, वो नए वैरिएंट को पहचान कर उनके हिसाब से काम करती हैं. सवाल ये था कि ओमिक्रॉन बाकी वैरिएंट्स की तुलना में ज्यादा म्यूटेट हुआ था, इसलिए यह शरीर पर किस तरह का असर डालेगा. इम्यूनिटी बचेगी या नहीं. या बेहद कमजोर हो जाएगी.
वेंडी बर्गर्स ने बताया कि इतने सवाल दिमाग में आ गए थे कि हम परेशान हो रहे थे. हमें इन सवालों के जवाब बहुत तेजी से खोजने थे. लेकिन कुछ ही समय में दुनिया भर की प्रयोगशालाओं से हर सवाल के जवाब आने शुरु हो गए थे. सबसे शानदार जवाब आया था मैसाच्युसेट्स स्थित हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के सेंटर फॉर वायरोलॉजी एंड वैक्सीन रिसर्च के निदेशक डैन बरोच की तरफ से. उन्होंने बताया कि ओमिक्रॉन कितना भी खतरनाक क्यों न हो, वह कितना भी म्यूटेशन क्यों न कर ले. लेकिन वह किलर इम्यून सेल्स (Killer Immune Cells) यानी T-Cells के आगे कमजोर है.
जब बात कोरोना वायरस की होती है, तो लाइमलाइट में एंटीबॉडीज आते हैं. कोई ये नहीं देखता कि शरीर में दूसरी शक्तियां भी हैं, जो इनसे बेहतर काम कर रही हैं. इन्हीं में से एक हैं किलर इम्यून सेल्स (Killer Immune Cells) यानी T-Cells. ये बात सही है कि न्यूट्रीलाइजिंग एंटीबॉडीज सीधे तौर पर वायरस से टकराती हैं. लेकिन ज्यादा एंटीबॉडी यानी शरीर में ज्यादा कोरोना संक्रमण. T-Cells की तुलना में एंटीबॉडी का अध्ययन करना ज्यादा आसान है. इसलिए ज्यादातर वैज्ञानिक उसकी स्टडी करते हैं. वैक्सीन ट्रायल्स में भी इसी की बात की गई.
हालांकि, जब कोरोना वायरस के वैरिएंट्स, मामले और मौतें बढ़ने लगे तब वैज्ञानिकों को लगा कि सिर्फ एंटीबॉडीज की बात करना बेमानी है. क्योंकि नए वैरिएंट्स उन्हें कमजोर करते जा रहे हैं. लगातार हो रहे म्यूटेशन से वैक्सीन द्वारा पैदा की गई एंटीबॉडी या संक्रमण से बनी एंटीबॉडी विफल हो रही है. तब वैज्ञानिकों का ध्यान किलर इम्यून सेल्स (Killer Immune Cells) यानी T-Cells की ओर ज्यादा गया.
किलर इम्यून सेल्स (Killer Immune Cells) यानी T-Cells ज्यादा ताकतवर, शांत और विभिन्न प्रकार की इम्यून एक्टिविटी को पूरा करते हैं. इन्हें किलर सेल इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये वायरस से संक्रमित कोशिकाओं को ही खत्म कर देते हैं. संक्रमित कोशिकाओं को मारते ही शरीर में संक्रमण का दर कम होने लगता है. इसकी वजह से अगर कोई इंसान गंभीर रूप से बीमार है तो वह जल्द ठीक होने लगता है. यानी कोरोना संक्रमित इंसान या ओमिक्रॉन से संक्रमित इंसान किलर कोशिकाओं की वजह से गंभीर हालत में नहीं जाता.
वेंडी बर्गर्स कहती हैं कि किलर इम्यून सेल्स (Killer Immune Cells) यानी T-Cells किसी भी संक्रमण के बाद एंटीबॉडीज की तरह जल्दी कमजोर या खत्म नहीं होतीं. ये बनी रहती हैं. शरीर पर हमला करने वाले वायरस और उसके तरीकों को याद रखती हैं. इसलिए वायरस से जुड़ा अगर कोई अन्य वैरिएंट कभी भी शरीर पर हमला करता है तो ये तेजी से रेस्पॉन्स करती हैं. ये वायरस के सगे-संबंधियों को पहचान कर उस हिसाब से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती हैं. ताकि शरीर नए हमले से बच सके या उससे संघर्ष कर सके.
वेंडी ने कहा कि जहां तक बात रही ओमिक्रॉन की तो कई रिसर्च समूहों ने यह पाया है कि SARS-CoV-2 जीनोम पर किलर इम्यून सेल्स (Killer Immune Cells) यानी T-Cells सीधे हमला करती हैं. ये ओमिक्रॉन की मौजूदगी पहचान लेती हैं. कई अन्य स्टडीज में यह बात भी सामने आई है कि टी-सेल्स उन लोगों के शरीर में भी उतनी ही क्षमता से काम करती हैं, जो पहले संक्रमित हो चुके हैं या फिर वैक्सीन लगवा चुके हैं.
रॉटरडैम स्थित इरेसमस मेडिकल सेंटर के क्लीनिकल वायरोलॉजिस्ट कोरीन गर्ट्स वैन केसल ने बताया कि ओमिक्रॉन का कितना भी भयानक संक्रमण हो लेकिन किलर इम्यून सेल्स (Killer Immune Cells) यानी T-Cells एकदम सुरक्षित रहती हैं. ये उससे संघर्ष करने के लिए किसी सैनिक की तरह हमेशा तैयार रहती हैं. यह बातें लोगों पर की गई क्लीनिकल स्टडीज में स्पष्ट हो चुकी हैं. फाइजर और जैनसेन की वैक्सीन ओमिक्रॉन इंफेक्शन से बचाने में कारगर हैं. क्योंकि उनका संबंध टी-सेल्स से भी है.
कोरीन गर्ट्स ने कहा कि कोई भी वैक्सीन ऐसी नहीं है जो ओमिक्रॉन को खत्म करने वाली एंटीबॉडीज को बढ़ाती हो. दक्षिण अफ्रीका से जो लोगों के रिकवर होने का डेटा आ रहा है, वो वैक्सीन से पैदा होने वाली एंटीबॉडी की वजह से नहीं है बल्कि किलर इम्यून सेल्स (Killer Immune Cells) यानी T-Cells की वजह से है. इसलिए वैज्ञानिकों को हर बार एंटीबॉडीज पर ही ध्यान नहीं देना चाहिए. यह भी जानना चाहिए कि इंसान के शरीर की किलर कोशिकाएं किस हालत में हैं. उनकी मात्रा ठीक है या नहीं.
सिएटल स्थित एडॉप्टिव बायोटेक्नोलॉजीस के चीफ साइंटिफिक ऑफिसर हरलान रॉबिन्स ने कहा कि पिछले महीने फाइजर और बायोएनटेक ने घोषणा की थी कि उनकी वैक्सीन दो से पांच साल के बच्चों में पर्याप्त एंटीबॉडी बनाने में फेल रही है. इसलिए अमेरिका में पांच साल से कम उम्र के बच्चों के लिए इस वैक्सीन को रोक दिया गया है. लेकिन किसी ने बच्चों के शरीर में क्या किलर इम्यून सेल्स (Killer Immune Cells) यानी T-Cells की जांच की.
हरलान रॉबिन्स ने कहा कि इंसानों पर किए गए शुरुआती ट्रायल्स के दौरान किसी भी वैज्ञानिक या शोधकर्ता ने यह नहीं देखा कि उनके शरीर में किलर इम्यून सेल्स (Killer Immune Cells) यानी T-Cells की प्रतिक्रिया कैसी है. अगर वो ये देख लेते तो शायद किसी भी वैरिएंट को हराना ज्यादा आसान हो जाता. आप पूरी दुनिया में तो वैक्सीन की स्टडी नहीं कर सकते. अगर किलर कोशिकाओं का अध्ययन सही तरीके से किया जाए तो कोरोना के किसी भी वैरिएंट को ठीक करने या खत्म करने का प्रयास आसान हो जाएगा.
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