विज्ञान

अजब-गजब: नीले रंग का खून, जानकर आप हैरान हो जाएंगे

jantaserishta.com
7 April 2022 9:35 AM GMT
अजब-गजब: नीले रंग का खून, जानकर आप हैरान हो जाएंगे
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नई दिल्ली: ब्लू ब्लड (Blue Blood) यानी नीले खून शब्द का पहला उपयोग 1811 के आसपास शुरु हुआ था. यह शाही परिवारों और उनकी कुलीनता को दर्शाने के लिए किया जाता था. यह वह समय था जब उच्च सामाजिक स्तर वाले लोगों को गोरी त्वचा के आधार पर विभाजित किया जाता था. उन्हें काम करने वाले लोगों, मध्यम वर्गीय, किसानों और मजदूरों से अलग रखने के लिए इस तरह के शब्द को जन्म दिया गया था.

सूरज की रोशनी से दूर रहने वालों का रंग चमकदार हो जाता था. जबकि, धूप में काम करने वाले गहरे रंग के होते थे. लेकिन क्या हो अगर सच में किसी का खून नीला हो जाए? कई समुद्री जीव ऐसे हैं, जिनका रंग नीला होता है. जैसे- केकड़े, लॉब्स्टर्स, मकड़ी और ऑक्टोपस. खून नीला होने का मतलब उसका रंग पूरी तरह से नीला नहीं होता. इसके पीछे भी वैज्ञानिक वजह है. जिसे जानकर आप हैरान हो जाएंगे.
इन जीवों की नसों में नीला खून नहीं बहता. वह नीले रंग की हल्का सा असर लेकर होता है. नीला रंग इसलिए दिखता है क्योंकि त्वचा पर पड़ने वाली रोशनी उसे ऐसा दिखाती है. वेन्स (Veins) में बहने वाले खून में कम ऑक्सीजन होता है. जबकि, आर्टरीज (Arteries) में ज्यादा. अगर सच में किसी का खून नीला हो जाए तो उसे एक बेहद दुर्लभ बीमारियां हो सकती हैं.
खून नीला होने पर जो बीमारी सबसे पहले होगी उसका नाम है मीथैमोग्लोबिनेमिया (Methaemoglobinaemia). ऐसी कई और बीमारियां हैं, जो इंसानों को परेशान कर सकती हैं. सामान्य परिस्थितियों में लाल रक्त कणिकाओं (Red Blood Cells) में मौजूद हीमोग्लोबिन प्रोटीन ऑक्सीजन को लेकर आपके शरीर में हर तरफ सप्लाई करता है. इंसानी हीमोग्लोबिन को लाल रंग देने वाला पदार्थ होता है आयरन (Iron). यह शरीर के अंदर फेरिक (Fe3+) स्टेट में होता है. जैसे ही आयरन हीमोग्लोबिन के साथ बहने वाले ऑक्सीजन से मिलता है, वह लाल हो जाता है.
हीमोग्लोबिन का एक वैरिएंट है, जिसका नाम है मीथैमोग्लोबिन (Methaemoglobin). आयरन इसमें भी होता है लेकिन उसका स्टेट होता है फेरस (Fe2+). यह हीमोग्लोबिन के साथ बह रहे ऑक्सीजन के साथ जुड़ नहीं पाता. फिर वह मीथैमोग्लोबिनेमिया (Methaemoglobinaemia) बीमारी पैदा कर देता है. जेनेटिक गड़बड़ियों की वजह शरीर में मीथैमोग्लोबिन की मात्रा ज्यादा हो जाती है. इसमें खून का रंग नीला दिखता है. लाल नहीं.
क्या खून नीला होने पर सच में दिक्कत हो सकती है. असल में ये बीमारी धरती पर मौजूद है. लोगों को थी भी. हीमोग्लोबिन के जेनेटिक वैरिएंट मीथैमोग्लोबिन की मात्रा ज्यादा होने की वजह से मीथैमोग्लोबिनेमिया (Methaemoglobinaemia) से पीड़ित लोग थे. फुगेट फैमिली (Fugate Family) या केंटकी के नीले लोग (Blue People of Kentucky) इसका बेहतरीन उदाहरण हैं.
नीले लोगों के कहानी तब लोगों के सामने आई जब मार्टिन फुगेट नाम का फ्रांसीसी अनाथ व्यक्ति केंटकी के ट्रबलसम क्रीक में जाकर रहने लगा. सालों बाद उसने अमेरिकी महिला एलिजाबेथ स्मिथ से शादी की. परिवार की शुरुआत की. मार्टिन और एलिजाबेथ दोनों में ही दुर्लभ रेसेसिव जीन्स थे. उनके शरीर में मीथैमोग्लोबिन की मात्रा ज्यादा थी. दोनों की सात संतानें हुईं. जिनमें से चार के शरीर में भी यही समस्या आई. इसलिए उनकी त्वचा और होंठ नीले दिखते थे.
इनका परिवार बढ़ता रहा. ये अपने रिश्तेदारों में ही शादियां करते रहे. नतीजा ये हुआ कि मीथैमोग्लोबिन की ज्यादा मात्रा वाले लोगों की संख्या बढ़ती रही. अब यह नीले खून वाला जीन्स पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता जा रहा है. ऐसा नहीं है कि सिर्फ जेनेटिक कमियों से ऐसा होता है. कई बार दवाओं के साइड इफेक्ट से भी हो सकता है. न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में एक 25 वर्षीय महिला का केस दर्ज किया गया था. जिसमें बताया गया कि महिला को दांत में दर्द था. उसने Benzocaine दवा ले ली. जिससे उसे मीथैमोग्लोबिनेमिया (Methaemoglobinaemia) हो गया. इस फोटो में पॉल कारासन हैं, जिन्होंने कोलाइडल सिल्वर के उपयोग से अपना रंग नीला करवा लिया था.
जहां तक बात रही केकड़ों, मकड़ियों, लॉब्स्टर्स, ऑक्टोपस का खून नीला इसलिए होता है क्योंकि उनके खून में आयरन के बजाय तांबे की मात्रा ज्यादा होती है. इसके अलावा अर्थवर्म और स्किंक में हरा खून (Green Blood), लैंप शेल्स में पर्पल ब्लड (Purple Blood), बर्फीली मछली में पारदर्शी खून होता है. ये सभी हीमोग्लोबिन के अलग-अलग वैरिएंट्स हैं. इनके पीछे रेस्पिरेटरी पिगमेंट्स का भी योगदान होता है.


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