विज्ञान

दृष्टिहीन महिला अब देखी दुनिया, वैज्ञानिकों ने किया ये कमाल

jantaserishta.com
25 Oct 2021 2:24 PM GMT
दृष्टिहीन महिला अब देखी दुनिया, वैज्ञानिकों ने किया ये कमाल
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जानिए कैसे?

स्पेन के वैज्ञानिकों ने दृष्टिहीन लोगों को देखने के लिए नई तकनीक ईजाद की है. इस तकनीक में मरीज के दिमाग में खास तरह का इम्प्लांट लगाया जाता है, जिससे वो बिना दृष्टि के ही देख सकता है. वैज्ञानिक इस तकनीक के जरिए दिमाग के विजुअल कॉरटेक्स को सक्रिय कर देते हैं. जिससे उसके दिमाग में सामने दिखने वाली चीजें स्पष्ट तौर पर तस्वीर बनने लगती है. स्पेन के वैज्ञानिकों ने एक चश्मा बनाया, जिसके बीच में आर्टिफिशियल रेटिना (Artificial Retina) लगा है. यह रेटिना दिमाग में लगे इम्प्लांट से जुड़ा होता है. जैसे ही रोशनी इस रेटिना पर पड़ती है वह इलेक्ट्रिक्ल सिग्नल इम्प्लांट पर भेजता है. यह इम्प्लांट उस रोशनी का एनालिसिस करके दिमाग के विजुअल कॉरटेक्स में रेटिना के सामने दिख रही चीजों की तस्वीर बना देता है.

शोधकर्ताओं ने इस चश्मे और इम्प्लांट का परीक्षण 57 वर्षीय महिला पर किया, जो पिछले 16 सालों से कुछ भी नहीं देख पा रही थी. वह पूरी तरह से दृष्टिहीन थीं. ब्रेन में इम्प्लांट लगने के बाद जैसे ही महिला ने आर्टिफिशियल रेटिना वाले चश्में को आंखों पर लगाया, उनके सामने दिखने वाली चीजों की इमेज उनके दिमाग में बनने लगी. उन्होंने यह भी बताया कि उनके सामने किस तरह की चीजें रखी हैं. द जर्नल ऑफ क्लीनिकल इन्वेस्टिगेशन में प्रकाशित इस स्टडी में वैज्ञानिकों ने बताया है कि इस तकनीक की मदद से हम दिमाग के उन न्यूरॉन्स को सक्रिय कर देते हैं, जिनसे दिमाग में आर्टिफिशियल रेटिना के सामने दिख रही चीजों की बाहरी आकृति दिखने लगती है. यानी आकार स्पष्ट हो जाता है.

दिमाग में लगाया गया इम्प्लांट सिर्फ 4 मिलीमीटर चौड़ा था. इसके अंदर लगे माइक्रोइलेक्ट्रोड 1.5 मिलीमीटर लंबे थे. यह दिमाग में इस तरह से लगाए जाते हैं कि यह विजुअल कॉरटेक्स में होने वाले इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी को सक्रिय कर सकें. साथ ही उस हिस्से में हो रहे इलेक्ट्रिकल बहाव की निगरानी भी कर सकें. महिला पर परीक्षण से पहले करीब 1000 इलेक्ट्रोड वर्जन का बंदरों पर ट्रायल किया गया. उन बंदरों को भी इसमें शामिल किया गया जो दृष्टिहीन नहीं थे. स्पेन में यह परीक्षण मिगुएल हरनैंडेज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने किया है. यह इम्प्लांट दिमाग के ठीक ऊपर एक पतली परत की तरह लगाया जाता है. हो सकता है कि कुछ लोग अपने दिमाग में माइक्रोइलेक्ट्रोड (Microelectrode) से लैस इम्प्लांट लगवाने से हिचके लेकिन अगर इस तरीके से दृष्टिहीन लोग देख सकते हैं, तो इसमें कोई बुराई नहीं है. हालांकि वैज्ञानिकों ने इस इम्प्लांट और चश्में की लागत का खुलासा नहीं किया है. लेकिन वैज्ञानिकों ने यह दावा किया है कि इससे मरीज के दिमाग पर कोई उलटा असर नहीं पड़ेगा।

आर्टिफिशियल रेटिना (Artificial Retina) और ब्रेन इम्प्लांट दिमाग के विजुअल कॉरटेक्स वाले हिस्से को ही सक्रिय करता है. इससे बाकी के हिस्सों के न्यूरॉन्स पर कोई असर नहीं पड़ता. इसलिए यह इम्प्लांट बेहद सुरक्षित है. हालांकि, वैज्ञानिकों ने इस महिला के दिमाग से 6 महीने बाद इम्प्लांट निकाल लिया. वैज्ञानिकों का कहना है कि महिला के दिमाग से इम्प्लांट निकालने का फैसला इसलिए किया गया ताकि उसमें और सुधार किया जा सके. उसे और भी अत्याधुनिक बनाया जा सके. इसे बड़े पैमाने पर उत्पादन करने के लिए जरूरी है कि यह इम्प्लांट और ज्यादा बेहतर हो. भविष्य में उम्मीद है कि ब्रेन इम्प्लांट और जीन-एडिटिंग तकनीकों के जरिए विभिन्न प्रकार की दृष्टिहीनता को खत्म किया जा सकता है.

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