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ब्लैक ब्यूटी! खोजा गया 450 करोड़ साल पुराना उल्कापिंड, जानें सब कुछ
jantaserishta.com
13 July 2022 9:44 AM GMT
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न्यूज़ क्रेडिट: आजतक
नई दिल्ली: बहुत साल पहले धरती पर एक उल्कापिंड गिरा. जांच-पड़ताल में पता चला कि यह मंगल ग्रह से आया है. इसकी उम्र करीब 450 करोड़ साल है. लेकिन अब वैज्ञानिकों मंगल ग्रह पर उस उल्कापिंड की उत्पत्ति की सही जगह का पता लगा लिया है. इस उल्कापिंड का नाम है ब्लैक ब्यूटी (Black Beauty Meteorite). अब वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस खुलासे के बाद धरती, मंगल और सौर मंडल के अन्य ग्रहों की उत्पत्ति के राज खुल सकते हैं.
ब्लैक ब्यूटी उल्कापिंड (Black Beauty Meteorite) का वजन 320 ग्राम है. वैसे इसे NWA 7034 बुलाया जाता है. इसकी खोज 11 साल पहले साल 2011 में मोरक्को में हुई थी. इसके साथ 300 और पत्थर आसमान से जमीन पर गिरे थे. लेकिन यह इकलौता था जो मंगल ग्रह से धरती पर आया था. यह मंगल ग्रह पर किसी अंतरिक्षीय टक्कर की वजह से अलग हुआ था.
इससे पहले जो रिसर्च हुए थे उनके मुताबिक ब्लैक ब्यूटी (Black Beauty Meteorite) धरती पर मौजूद सबसे पुराना मंगल ग्रह से आया हुआ उल्कापिंड है. यह धरती पर मंगल की मिट्टी का उत्कृष्ट सैंपल भी है. इसके अंदर एंगुलर फ्रैगमेंट्स हैं. यानी इस पत्थर के अंदर कई अन्य प्रकार के धातुओं, खनिजों और पत्थरों का समावेश है. जबकि आमतौर पर मंगल ग्रह के पत्थरों की खासियत ये होती है कि वो एक ही खनिज के बने होते हैं.
जब वैज्ञानिकों ने गड्ढों के आकार और लोकेशन की स्टडी की तो पता चला कि बड़े गड्ढों के चारों तरफ छोटे गड्ढे भी मौजूद हैं. इनमें से कुछ बड़े गड्ढे 3 किलोमीटर व्यास के हैं. इनकी उम्र 1 करोड़ साल पुराने हैं. इनसे पता चलता है कि छोटे गड्ढे बड़े गड्ढों के बनने के समय वहां से निकले पत्थरों की वापस होने वाली टक्कर का नतीजा थे. ब्लैक ब्यूटी मंगल ग्रह के 40 किलोमीटर व्यास वाले खुजर्ट क्रेटर (Khujirt Crater) से निकला पत्थर है. यह मंगल ग्रह के दक्षिणी गोलार्ध में स्थित है.
ऑस्ट्रेलिया के पर्थ स्थित कर्टिन यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट और इस स्टडी के प्रमुख लेखक एंथनी लगाइन ने कहा कि अब तक किसी वैज्ञानिक को यह नहीं पता था कि यह मंगल ग्रह के किस स्थान से उत्पन्न हुआ है. सुपरकंप्यूटर्स से विश्लेषण करने के बाद पता चला कि मैंने और मेरी टीम ने मंगल ग्रह के गड्ढों यानी क्रेटर डिटेक्शन एल्गोरिदम का उपयोग किया. हमने 100 मीटर व्यास वाले गड्ढों को भी मापा. करीब 9.4 करोड़ तस्वीरें जमा हो गईं.
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