विज्ञान

जैविक हथियार बनाने वाले वैज्ञानिकों ने लिया नमूना, हजारों साल पुराने जानवरों के जीवाश्‍म से निकाला वायरस

Gulabi
17 Feb 2021 7:00 AM GMT
जैविक हथियार बनाने वाले वैज्ञानिकों ने लिया नमूना, हजारों साल पुराने जानवरों के जीवाश्‍म से निकाला वायरस
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कोरोना वायरस महासंकट के बीच रूस ने एक ऐसा कदम उठाया है जिससे दुनियाभर के वैज्ञानिकों की टेंशन बढ़ गई है

कोरोना वायरस महासंकट के बीच रूस ने एक ऐसा कदम उठाया है जिससे दुनियाभर के वैज्ञानिकों की टेंशन बढ़ गई है। दरअसल, रूस 50 हजार साल पुराने पशुओं के जीवाश्‍म से उस समय के वायरस निकाल रहा है जो अब मौजूद नहीं हैं। पशुओं के ये जीवाश्‍म साइबेरिया के बर्फ से ढंके इलाके में पाए गए हैं और अब रूस के जैविक हथियार बनाने वाले रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिक उनके जैविक मैटिरियल निकाल रहे हैं। ये जीवाश्‍म वहां पर हजारों साल से बर्फ के नीचे दबे हुए थे। रूसी वैज्ञानिक प्राचीन वूली हाथी और गैंडे के जीवाश्‍म तथा प्राग ऐतिहासिक काल के कुत्‍ते, घोड़े, चूहे और खरगोश के अवशेष निकाल रहे हैं। आइए जानते हैं क्‍या है पूरा मामला और क्‍यों डर रहे हैं वैज्ञानिक.....

जैविक हथियार बनाने वाले वैज्ञानिकों ने लिया नमूना

खबर के मुताबिक सबसे पुराना जीवाश्‍म करीब 50 हजार साल पुराना है जो एक लेमिंग (चूहे जैसा जीव) का है। इस पूरे रिसर्च को वेक्‍टर स्‍टेट रिसर्च सेंटर ऑफ वॉरोलॉजी एंड बॉयोटेक्‍नालॉजी देख रही है। इस सेंटर की स्‍थापना कोल्‍ड वार के समय में सोवियत संघ के नेता लिओनिड ब्रेझनेव ने किया था। इस सेंटर का उद्देश्‍य उस समय जैविक हथियार बनाने के लिए शोध करना था। साइबेरिया के नोवोसिबिरक्‍स के पास स्थित यह रिसर्च सेंटर ही स्‍पूतनिक वी से टक्‍कर लेने के लिए दूसरी कोरोना वायरस वैक्‍सीन बना रहा है। रूसी वैज्ञानिकों ने दुनिया के सबसे ठंडे शहर याकुतस्‍क के मैमथ म्‍यूजियम से प्राचीन जीवाश्‍मों से 50 नमूने लिए हैं और इतना ही फिर लेने का अनुमान है। रूसी वैज्ञानिकों का यह शोध अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर चल रहे प्राचीन जीवों के क्‍लोन तैयार करने के अभियान से इतर है। सभी फोटो साभार साइबेरियन टाइम्‍स

रूस में प्राचीन वायरस के अध्‍ययन की होगी शुरुआत


रूसी रिसर्च सेंटर की वैज्ञानिक डॉक्‍टर ओलेस्‍या ओखलोपकोवा ने कहा कि हम palaeo-viruses निकालने का प्रयास कर रहे हैं ताकि रूस में अब palaeo वॉयरोलॉजी की शुरुआत की जा सके। हमारा उद्देश्‍य वायरस के विकास का अध्‍ययन करना है लेकिन विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इस तरह के प्राचीन वायरस पर शोध करने से रहस्‍यमय बीमारियों के संक्रमण का खतरा रहेगा। डॉक्‍टर ओलेस्‍या पशुओं के नरम ऊतकों के नमूने ले रही हैं। रूसी वैज्ञानिक ने कहा कि वह पूरे जिनोम सिक्‍वेंसिंग का पता लगाने का प्रयास करेंगी। इससे वैज्ञानिकों को सूक्ष्‍मजीवियों की विव‍िधता के बारे में पता चलेगा। उन्‍होंने कहा, 'अगर न्‍यूक्लिक एसिड खराब नहीं हुआ होगा तो हम उनकी संरचना का डेटा हासिल कर सकेंगे और यह पता लगा सकेंगे कि कैसे यह बदला। रूसी वैज्ञानिकों को उम्‍मीद है कि प्राग ऐतिहासिक जीवों के इस आंकड़े से उन्‍हें वर्तमान संक्रामक बीमारियों को समझने में मदद मिलेगी।

रहस्‍यमय रूसी लैब तैयार कर रही है जैविक हथियार!

प्राग ऐतिहास‍िक काल में साइबेरिया में ऐसे घोड़े पाए जाते थे जो माइनस 50 डिग्री सेल्सियस में भी जिंदा रहते थे। रूसी म्‍यूजियम के वैज्ञानिक डॉक्‍टर सर्गेई फेदोरोव ने कहा कि मैमथ म्‍यूजियम का लंबे समय से वेक्‍टर शोध संस्‍थान से संबंध रहा है। उन्‍होंने कहा, 'हम आशा करते हैं कि palaeo वायरस का पता चलेगा और वायरस की दुनिया में कई रहस्‍य अभी सामने आने का इंतजार कर रहे हैं।' रूस के वेक्‍टर इंस्‍टीट्यूट ने एक समय में बड़े पैमाने पर चेचक के वायरस को बनाया था और उसके पास अभी भी इसका स्‍टॉक मौजूद है। वेक्‍टर संस्‍थान कथित रूप से Marburg को भी हथियार के रूप में बदल रहा है। यह संस्‍थान हाल के दिनों में प्‍लेग, इबोला, हेपटाइटिस बी, एचआईवी, सार्स और कैंसर की दवाओं को लेकर चल रहे प्रयासों में शामिल रहा है। इसी संस्‍थान ने रूस की दूसरी कोरोना वायरस वैक्‍सीन इपिवैककोरोना का निर्माण किया है।

​दुनिया के सबसे ठंडे स्‍थान से मिला 40 हजार साल पुराना गैंडा
पिछले दिनों दुनिया के रहने योग्‍य सबसे ठंडे स्‍थानों में शुमार रूस के साइबेरिया इलाके से बर्फ के बीच वूली गैंडे का विशाल अवशेष मिला था। वूली गैंडे का यह अवशेष याकूतिआन इलाके में पाया गया है जो हमेशा बर्फ से ढंका रहता है। गैंडे का यह अवशेष करीब 40 हजार साल पुराना है। साइबेरियन टाइम्‍स की रिपोर्ट के मुताबिक रूसी वैज्ञानिकों ने इस वूली गैंडे के अवशेष को मीडिया के सामने पेश किया। करीब 40 हजार साल बीत जाने के बाद भी इस वूली गैंडे का 80 फीसदी ऑर्गैनिक मटिरियल अभी भी बना हुआ है। इसमें गैंडे के बाल, दांत, सींग और फैट अभी भी बने हुए हैं। इस गैंडे की खोज पिछले साल अगस्‍त महीने में याकूतिआन के निर्जन इलाके में बर्फ के पिघलने के दौरान हुई थी। याकूतिआ अकादम ऑफ साइंसेज के डॉक्‍टर गेन्‍नाडी बोइस्‍कोरोव ने कहा, 'यह किशोर वूली गैंडा करीब 236 सेंटीमीटर का है जो एक वयस्‍क गैंडे से करीब एक मीटर कम है।' वैज्ञानिकों का मानना है कि यह किशोर वूली गैंडा इंसानी शिकारियों से बचने के लिए भाग रहा था और इसी दौरान वह दलदल में फंस गया।


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