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लॉन्चिंग हुई फेल! इसरो प्रमुख का बड़ा बयान, SSLV रॉकेट को लेकर कही यह बात

jantaserishta.com
12 Aug 2022 6:03 AM GMT
लॉन्चिंग हुई फेल! इसरो प्रमुख का बड़ा बयान, SSLV रॉकेट को लेकर कही यह बात
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न्यूज़ क्रेडिट: आजतक

नई दिल्ली: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) 7 अगस्त 2022 को देश का नया रॉकेट स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (Small Satellite Launch Vehicle - SSLV) लॉन्च किया था. लेकिन रॉकेट पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया. उसने दोनों सैटेलाइट्स को गोलाकार कक्षा में डालने के बजाय अंडाकार कक्षा में डाल दिया था. इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ ने इसकी वजह बताई.

एस. सोमनाथ ने कहा कि रॉकेट एक्सेलेरोमीटर में दो सेकेंड के लिए कुछ गड़बड़ी आ गई थी. जिसकी वजह से रॉकेट ने दोनों सैटेलाइट्स EOS-2 और AzaadiSAT को 356 किलोमीटर की गोलाकार कक्षा के बजाय 356x76 किलोमीटर की अंडाकार कक्षा में डाल दिया था. अब ये सैटेलाइट्स किसी काम की नहीं बची. क्योंकि इनसे संपर्क नहीं हो पा रहा है. ये गड़बड़ी एक सेंसर के फेल होने की वजह से हुई. जिससे रॉकेट की दिशा अंतिम समय में बदल गई.
SSLV तीन स्टेज का रॉकेट जो पूरी तरह से सॉलिड प्रोपेलेंट पर चलता है. यह 500 किलोग्राम वजन तक के सैटेलाइट्स को कक्षा में तैनात करने के लिए बनाया गया है. इसरो चीफ ने कहा कि हम सभी वैज्ञानिक कई तरह की असफलताओं के लिए तैयार रहते हैं. किसी भी मिशन में सफलता और असफलता को एकसाथ एक बराबर देखा जाता है. एक्सेलेरोमीटर और उसके सेंसर्स रॉकेट की गति पर नजर रखते हैं. उसे नियंत्रित करते हैं.
एक्सेलेरोमीटर को अगर फेल होना होता तो वह लॉन्च के समय भी हो सकता था. लेकिन उसने रॉकेट को सही से काफी ऊपर तक पहुंचाया. लेकिन उसके बाद उसकी गणनाओं में कुछ बदलाव आ गया. तीन स्टेज के रॉकेट में तीसरे स्टेज पर सैटेलाइट होता है. दूसरे स्टेज से अलग होते ही इसमें वो गड़बड़ी दो सेकेंड के लिए दर्ज की गई. रॉकेट में लगे इंटर्नल कंप्यूटर को इसका अहसास हुआ. तो उसने साल्वेजिंग ऑपरेशन यानी उसने बचाव प्रक्रिया शुरू कर दी.
सोमनाथ ने फिर बताया कि बचाव प्रक्रिया में आंतरिक कंप्यूटर क्लोज्ड लूप गाइडेंस के बजाय ओपन लूप गाइडेंस शुरू कर देता है. कंप्यूटर को इसका भी प्रोसेस पहले से पता होता है. वह रॉकेट को अपने मार्ग से अलग नहीं होने देता. लेकिन एक बार ओपन लूप गाइडेंस शुरू हुआ तो सैटेलाइट्स के सही ऑर्बिट में पहुंचने की संभावना कम हो जाती है.
ऐसे में आंतरिक कंप्यूटर ये कमांड देता है कि अब हम तब तक आगे नहीं जा सकते, जब तक अगला स्टेज फायर नहीं होता. किसी तरह से सैटेलाइट को तीसरे स्टेज से अलग करना होगा. SSLV का तीसरा स्टेज लिक्विड स्टेज नहीं है. यह सॉलिड स्टेज है. इसे बीच रास्ते में रोकना संभव नहीं होता. रॉकेट में लगा कंप्यूटर इंतजार करता है कि दूसरे स्टेज में ये दिक्कत हुई है तो तीसरा स्टेज शुरू होने पर दिक्कत खत्म हो सकती है. वह तीसरे स्टेज की फायरिंग पूरी होने तक इंतजार करता है. जैसे ही तीसरे स्टेज की फायरिंग पूरी हुई, उसने रॉकेट्स को अंतरिक्ष में छोड़ दिया. SSLV ने वहीं किया.
SSLV ने ऑर्बिट में सैटेलाइट्स को छोड़ा तो लेकिन इस प्रक्रिया में छोटी सी कमी रह गई. क्योंकि गति कम हो गई थी. सैटेलाइट्स को अगर कक्षा में स्थापित करने की गति 7.3 किलोमीटर प्रतिसेकेंड होनी चाहिए. रॉकेट ने 7.2 किलोमीटर प्रति सेकेंड की गति हासिल कर ली थी. अब यह 40, 50 या 60 मीटर प्रति सेकेंड की दर से कमी महसूस कर रहा था. हमें इसे सर्कुलर ऑर्बिट में डालना था लेकिन गति में आई इस कमी की वजह से पेरिजी 76 किलोमीटर हो गई.
सोमनाथ ने बताया कि अगर सैटेलाइट सर्कुलर के बजाय अंडाकार ऑर्बिट में चली जाती है, तो उसमें एक ड्रैग आता है. यानी एक वायुमंडलीय ड्रैग होता है. इससे सैटेलाइट बहुत तेजी से नीचे आता है. 20 मिनट के आसपास सैटेलाइट अपनी कक्षा छोड़ देता है. यही हुआ SSLV द्वारा छोड़े गए सैटेलाइट्स के साथ. ये नहीं कह सकते मिशन पूरी तरह से फेल रहा. लेकिन हां असफलता तो मिली.
सोमनाथ ने बताया कि रॉकेट ने सही काम किया. उसके सभी स्टेज ठीक काम कर रहे थे. प्रोपल्शन सिस्टम सही काम कर रहा था. जब रॉकेट का एक्सेलेरोमीटर गड़बड़ हुआ तो रॉकेट के कंप्यूटर ने सोचा कि मैं इस रॉकेट को बचाता हूं. इसने बचाव प्रक्रिया शुरू भी की. जिसकी वजह से सैटेलाइट गलत ऑर्बिट में चले गए. इसका मतलब ये है कि एक्सेलेरोमीटर में कोई गड़बड़ नहीं थी, क्योंकि उन्होंने उसके बाद भी रॉकेट को आगे बढ़ाया. कंप्यूटर को एक्सेलेरोमीटर में छोड़ी सी गड़बड़ी मिली है, जो फिलहाल हमारी समझ के बाहर है. या फिर सेंसर के साथ कोई दिक्कत है. रॉकेट कंप्यूटर ने बताया कि एक्सेलेरोमीटर में दो सेकेंड की गड़बड़ी आई थी. इसके बाद वह ठीक हो गया था. लेकिन कंप्यूटर ने इसी दो सेकेंड को दोषी बनाया.
PSLV यानी पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल 44 मीटर लंबा और 2.8 मीटर वाले व्यास का रॉकेट हैं. जबकि, SSLV की लंबाई 34 मीटर है. इसका व्यास 2 मीटर है. पीएसएलवी में चार स्टेज हैं. जबकि एसएसएलवी में तीन ही स्टेज है. पीएसएलवी का वजन 320 टन है, जबकि एसएसएलवी का 120 टन है. पीएसएलवी 1750 किलोग्राम वजन के पेलोड को 600 किलोमीटर तक पहुंचा सकता है. एसएसएलवी 10 से 500 किलो के पेलोड्स को 500 किलोमीटर तक पहुंचा सकता है. पीएसएलवी 60 दिन में तैयार होता है. एसएसएलवी सिर्फ 72 घंटे में तैयार हो जाता है.
फिलहाल SSLV को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्च पैड एक से छोड़ा जाएगा. लेकिन कुछ समय बाद यहां पर इस रॉकेट की लॉन्चिंग के लिए अलग से स्मॉल सैटेलाइल लॉन्च कॉम्प्लेक्स (SSLC) बना दिया जाएगा. इसके बाद तमिलनाडु के कुलाशेखरापट्नम में नया स्पेस पोर्ट बन रहा है. फिर वहां से एसएसएलवी की लॉन्चिंग होगी.
SSLV की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि छोटे-छोटे सैटेलाइट्स को लॉन्च करने के लिए इंतजार करना पड़ता था. उन्हें बड़े सैटेलाइट्स के साथ असेंबल करके एक स्पेसबस तैयार करके उसमें भेजना होता था. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छोटे सैटेलाइट्स काफी ज्यादा मात्रा में आ रहे हैं. उनकी लॉन्चिंग का बाजार बढ़ रहा है. स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल रॉकेट के एक यूनिट पर 30 करोड़ रुपये का खर्च आएगा. जबकि PSLV पर 130 से 200 करोड़ रुपये आता है. यानी जितने में एक पीएसएलवी रॉकेट जाता था.
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