विज्ञान

वैज्ञानिकों के लिए बड़ा सवाल, जिस ऐस्टरॉइड ने खत्म किए डायनोसॉर तो कैसे बच गए मगरमच्छ

Apurva Srivastav
25 March 2021 7:48 AM GMT
वैज्ञानिकों के लिए बड़ा सवाल, जिस ऐस्टरॉइड ने खत्म किए डायनोसॉर तो कैसे बच गए मगरमच्छ
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एक नई स्टडी के मुताबिक विकास के कारण मगरमच्छ जमीन पर और महासागरों में रहने लायक बन गए।

वैज्ञानिकों के सामने यह एक बड़ा सवाल रहा है कि जिस ऐस्टरॉइड ने डायनोसॉर्स को खत्म कर दिया, आखिर मगरमच्छ कैसे उससे बच गए? रिसर्चर्स का मानना है कि मगरमच्छों में हुए विकास के कारण ऐसा मुमकिन हुआ होगा। एक नई स्टडी के मुताबिक विकास के कारण मगरमच्छ जमीन पर और महासागरों में रहने लायक बन गए।

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के असोसिएट प्रफेसर ऑफ ऑर्गैनिज्मिक ऐंड एवलूशन बायॉलजी डॉ. स्टेफनी पियर्स के मुताबिक प्राचीन मगरमच्छ कई तरीके के थे। ये समय के साथ जमीन पर चलना, पानी में तैरना, मछली पकड़ना और पौधे खाना सीख गए।
विलुप्त हो चुके मगरमच्छ शामिल
उन्होंने बताया कि स्टडीज में पाया गया कि ये कई तरीके से विकसित हुए जिससे नई जगहों पर रहने लगे। स्टडी के दौरान रिसर्चर्स ने 23 करोड़ साल पहले तक से इकट्ठा किए गए 200 खोपड़ों और जबड़ों को स्टडी किया। इनमें ऐसे मगरमच्छ शामिल थे जो विलुप्त हो चुके हैं। टीम ने अनैलेसिस किया कि कैसे अलग-अलग प्रजातियों में खोपड़े और जबड़े अलग-अलग थे। यह भी स्टडी किया गया कि कैसे मगरमच्छ समय के साथ बदलने लगे थे।
स्टडी में पता लगा है कि विलुप्त हो चुकीं मगरमच्छ जैसी प्रजातियां कई साल में विकसित हुईं। कई बार ये स्तनपायी जैसी हो गईं। आज के मगरमच्छों, घड़ियालों को जिंदा अवशेष तक कहा जाता है। रिसर्चर्स का कहना है कि ये सभी जीव पिछले 8 करोड़ साल में विकसित हुए हैं। जैव-विविधता के बढ़ने और घटने को मगरमच्छों और उनके पूर्वजों के जरिए समझा जा सकता है। सैकड़ों ऐसे मगरमच्छों के अवशेष हैं जिनमें काफी विविधता है।
रहने के स्थान और खाने की वजह से विकास तेज होता है लेकिन मगरमच्छों में यह पहली बार देखा गया है। हालांकि, यह नहीं समझा गया है कि आधुनिक मगरमच्छों में ये बदलाव कैसे देखे गए। अवशेषों के आधार पर समझा गया है कि कई प्रजातियां महासागरों और जमीन पर रही होंगी। हो सकता है इस बदलाव के दौरान तापमान गर्म रहा होगा।
स्पाइनोसॉरस की खोज 1915 में की गई थी लेकिन उसके बाद से इसके व्यवहार और खासियतों के बारे में वैज्ञानिकों के लिए समझना मुश्किल रहा है। पहले की रिसर्च से यह पता चला है कि स्पाइनोसॉरस पानी में रहते थे और मछली पकड़ने के लिए अपनी विशाल पूंछ से पानी में तैरते थे। अब पाया गया है कि ये पानी में ठीक से नहीं रह पाते थे बल्कि ये नदी के तट के पास रहते थे और मछली को पानी से बाहर लेकर आते थे।


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