विज्ञान

सूरज में हुआ बड़ा विस्फोट, NASA ने जारी की ये तस्वीर

jantaserishta.com
29 Oct 2021 6:05 AM GMT
सूरज में हुआ बड़ा विस्फोट, NASA ने जारी की ये तस्वीर
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नई दिल्ली: 28 अक्टूबर 2021 को धरती की तरफ वाले सूरज के हिस्से में एक बड़ा विस्फोट देखा गया है. वहां से सौर तूफान यानी कोरोनल मास निकला. जिसकी वजह से दक्षिण अमेरिका में कुछ समय के लिए रेडियो ब्लैकआउट हो गया. वैज्ञानिकों को अंदेशा है कि आज यानी 29 और 31 अक्टूबर 2021 को दुनिया के कुछ और कोनों में रेडियो फ्रिक्वेंसी बाधित हो सकती है. यह सौर तूफान X1 कैटेगरी है, यानी इससे नुकसान होने की आशंका है. इस तूफान को सिर्फ अमेरिका ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों के वैज्ञानिक संस्थाओं ने दर्ज किया है.

NASA के सोलर डायनेमिक्स ऑब्जरवेटरी ने कहा कि ये एक ताकतवर सौर तूफान है. यह अमेरिका में एक लहर भेज चुका है. दुनिया के अन्य हिस्सों में इस वीकेंड पर सूरज से निकलने वाली आवेशित कणों (Charged Particles) की लहरें आ सकती हैं. इससे ज्यादा दिक्कत उन देशों या संस्थाओं को होगी जिनके सैटेलाइट्स उत्तरी गोलार्ध का चक्कर लगा रहे हैं. या फिर उनकी संचार प्रणाली धरती के उत्तरी गोलार्ध में स्थित हैं.
सूरज कई सालों से शांत था. साल 2019 के दिसंबर महीने में ये फिर से सक्रिय हुआ है. इसकी नई सोलर साइकिल शुरु हुई है. जिसे सोलर साइकिल 25 कहा जा रहा है. एक साइकिल 11 साल तक चलती है. सौर तूफान यानी सूरज से निकलने वाला कोरोनल मास. यह बेहद खतरनाक और नुकसानदेह होता है. वैज्ञानिकों ने हाल ही में चेतावनी दी है कि भविष्य में एक ऐसा भयावह सौर तूफान आएगा, जिससे धरती पर इंटरनेट प्रलय आ सकता है. यानी पूरी दुनिया का इंटरनेट बंद हो सकता है या फिर कई दिनों तक बाधित हो सकता है.


हाल ही में ऐसी ही एक स्टडी आई थी, जिसमें कहा गया था कि सौर तूफान से धरती पर कभी भी इंटरनेट प्रलय आ सकता है. यह स्टडी की है यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया की शोधकर्ता संगीता अब्दू ज्योति ने. उन्होंने हाल ही में हुए सिगकॉम 2021 डेटा कम्यूनिकेशन कॉन्फ्रेंस में अपनी स्टडी वैज्ञानिकों को दिखाई थी. इस स्टडी के अनुसार स्थानीय स्तर के इंटरनेट प्रणाली पर कम असर होगा क्योंकि वो ज्यादातर फाइबर ऑप्टिक्स पर चलते हैं. फाइबर ऑप्टिक्स पर जियोमैग्नेटिक करेंट (Geomagnetic Current) का सीधा असर नहीं होता. लेकिन दुनिया भर के समुद्रों में फैली इंटरनेट केबल पर इसका असर पड़ सकता है. ये केबल दुनिया के अलग-अलग देशों को आपस में जोड़ते हैं. कई देश इन केबल को अपने फाइबर ऑप्टिक्स से जोड़ते हैं, यानी सौर तूफान आने पर समुद्री इंटरनेट केबल के जरिए फाइबर ऑप्टिक्स पर भी असर पड़ेगा.
इसकी सबसे बड़ी वजह है सौर तूफान को लेकर हमारी जानकारी की कमी और पर्याप्त डेटा का न होना. सौर तूफान जब आते हैं तब वो इलेक्ट्रिकल ग्रिड्स को नुकसान पहुंचा देते हैं. जिसकी वजह से बड़े इलाकों में अंधेरा हो जाता है. लेकिन इनका असर इंटरनेट प्रणाली पर भी पड़ता है. अगर इस प्रणाली को सौर तूफान की वजह से चोट पहुंचती है तो दुनिया भर में इंटरनेट बंद हो सकता है या फिर कई दिनों तक बाधित भी हो सकता है. समुद्री इंटरनेट केबल में करेंट के बहाव को बनाए रखने के लिए रिपीटर्स (Repeaters) लगे होते हैं, जो सौर तूफान के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं. यानी सौर तूफान आने पर इन रिपीटर्स की हालत खराब हो सकती है. ये फेल भी हो सकते हैं. यानी केबल में बहाव खत्म होते ही इंटरनेट की सप्लाई दुनियाभर में रुक जाएगी. इंटरनेट नेटवर्क ऑफलाइन हो जाएगा.
अगर इंटरनेट बंद होता है तो कई ऐसे देश हैं जिनकी पूरी की पूरी अर्थव्यवस्था, संचार प्रणाली, डिफेंस आदि सेक्टर थम सकते हैं. संगीता ने कहा कि हम इसके बारे में इसलिए ज्यादा गंभीर हैं क्योंकि हम कोरोना महामारी के लिए तैयार नहीं थे. उसने पूरी दुनिया को खस्ताहाल कर दिया. ठीक इसी तरह हम सौर तूफान और उससे पड़ने वाले असर को लेकर तैयार नहीं हैं. साथ ही हमें उसके असर की कोई जानकारी भी नहीं है.
अगर बड़े भयावह स्तर का सौर तूफान आता है तो उसके लिए एकदम तैयार नहीं है. जिस दिन पूरी दुनिया का इंटरनेट या कुछ देशों का इंटरनेट भी बंद हुआ तो उससे पूरी दुनिया पर असर पड़ेगा. हम वो झटका बर्दाश्त ही नहीं कर पाएंगे. कई देशों की इकोनॉमी मुंह के बल नीचे गिर पड़ेगी. इससे होने वाले नुकसान का अंदाजा लगाना भी मुश्किल है. संगीता बताती हैं कि सबसे बड़ा डर ये है कि हमारे पास सौर तूफान और उससे पड़ने वाले असर को लेकर डेटा बहुत कम है. इसलिए हम ये अंदाजा नहीं लगा सकते कि नुकसान कितना बड़ा होगा. दुनिया में सबसे भयावह सौर तूफान 1859, 1921 और 1989 में आए थे. इनकी वजह से कई देशों में बिजली सप्लाई बाधित हुई थी. ग्रिड्स फेल हो गए थे. कई राज्य घंटों तक अंधेरे में थे.
1859 में इलेक्ट्रिकल ग्रिड्स नहीं थे, इसलिए उनपर असर नहीं हुआ लेकिन कम्पास का नीडल लगातार कई घंटों तक घूमता रहा था. जिसकी वजह से समुद्री यातायात बाधित हो गई थी. उत्तरी ध्रुव पर दिखने वाली नॉर्दन लाइट्स यानी अरोरा बोरियेलिस (Aurora Borealis) को इक्वेटर लाइन पर मौजूद कोलंबिया के आसमान में बनते देखा गया था. नॉर्दन लाइट्स हमेशा ध्रुवों पर ही बनता है.
1989 में आए सौर तूफान की वजह से उत्तर-पूर्व कनाडा के क्यूबेक में स्थित हाइड्रो पावर ग्रिड फेल हो गया था. आधे देश में 9 घंटे तक अंधेरा कायम था. कहीं बिजली नहीं थी. पिछले दो दशकों से सौर तूफान नहीं आया है. सूरज की गतिविधि काफी कमजोर है. इसका मतलब ये नहीं है कि सौर तूफान आ नहीं सकता. ऐसा लगता है कि सूरज की शांति किसी बड़े सौर तूफान से पहले का सन्नाटा है.


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