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नई दिल्ली: ये बात है 9 अक्टूबर 2009 की. एक दो टन वजनी रॉकेट चांद की सतह से 9000 किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से टकराया. इतनी आग निकली की चांद की सतह सैकड़ों डिग्री सेल्सियस गर्म हो गई. थोड़ी देर के लिए ही सही... पर एक काले गहरे क्रेटर यानी गड्डे से ढेर सारी सफेद रोशनी निकलती दिखाई दी. इस क्रेटर का नाम है कैबियस (Cabeus Crater).
रॉकेट का क्रैश होना कोई हादसा नहीं था. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) लूनर क्रेटर ऑब्जरवेशन एंड सेंसिंग सैटेलाइट (LCROSS) मिशन को जान बूझकर चांद की सतह से टकराया था. ताकि यह पता कर सकें कि चांद के अंधेरे वाले हिस्से में रॉकेट टकाराता है तो वहां से क्या निकलता है? किस तरह की धूल या धुआं बाहर निकलता है.
नासा का ही एक दूसरा अंतरिक्षयान रॉकेट का पीछ कर रहा था, ताकि टक्कर के समय की तस्वीरें ले सके. इसके अलावा नासा का लूनर रीकॉनसेंस ऑर्बिटर दूर से सारे नजारे का जायजा ले रहा था. जब वैज्ञानिकों ने दोनों ही अंतरिक्षयानों की तस्वीरों को देखा तो हैरान रह गए... उन्हें चांद की सतह पर रॉकेट की टक्कर से उठी धूल में 155 किलोग्राम पानी का भाप दिखाई दिया.
वो पहली बार था जब चांद पर पानी मिला था. नासा के अमेस रिसर्च सेंटर में LCROSS के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर एंथनी कोलाप्रेट ने कहा कि यह एक हैरतअंगेज नजारा था. हमने सभी तस्वीरों को कई बार जांच किया. हर बार वहीं नतीजा था. एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के प्लैनेटरी साइंटिस्ट मार्क रॉबिन्सन कहते हैं कि ये बात सच है कि चांद पर पानी का कोई स्रोत या खजाना नहीं है.
मार्क रॉबिन्सन ने कहा कि वहां वायुमंडल नहीं है. पर्यावरण बेहद एक्सट्रीम है. कहीं से भी पानी के बनने और टिकने की उम्मीद ज्यादा नहीं रहती. हालांकि 25 साल पहले जब एक अंतरिक्षयान ने चांद के ध्रुवों पर हाइड्रोजन की खोज की थी, तब यह भी संभावना जताई गई थी कि वहां बर्फ जमी हो सकती है. LCROSS ने इस थ्योरी को प्रमाणित कर दिया.
जर्मनी स्थित मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट ऑफ सोलर सिस्टम रिसर्च के साइंटिस्ट वैलेंटीन बिकेल ने कहा कि पूरी जांच-पड़ताल के बाद पता चला कि चांद पर 6 लाख करोड़ किलोग्राम पानी मौजूद है. इनमें से ज्यादातर हिस्सा चांद के दोनों ध्रुवों पर उस हिस्से में है, जो हमेशा अंधेरे में रहता है. जिसे पर्मानेंटली शैडोड रीजन्स (PSRs) कहते हैं. वहां पर कैबियस जैसे क्रेटर्स हैं, जहां पर सूरज की रोशनी कभी नहीं पहुंचती. वो हमेशा अंधेरे में रहते हैं.
जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के एप्लाइड फिजिक्स लेबोरेटरी की प्लैनेटरी साइंटिस्ट पार्वती प्रेम ने कहा कि कुछ PSRs तो प्लूटो से भी ठंडे हैं. इसका मतलब ये है कि वहां पर बर्फ जरूर होगी. ये जिस इलाके में हैं, वहां पर इनके पिघलने की संभावना भी बेहद कम है. ये भी हो सकता है कि इनके अंदर जो बर्फ मौजूद है, वह करोड़ों सालों से वैसी की वैसी ही पड़ी हो. हो सकता है यहीं से धरती पर पानी के बनने और उत्पत्ति का कोई कनेक्शन हो. यह भविष्य में इंसानों के सुदूर लंबे अंतरिक्ष मिशन के दौरान काम आ सकता है.
अगले साल यानी साल 2023 में नासा चांद के इन PSRs की जांच करने के लिए रोबोट भेजने की तैयारी में है. ये रोबोटिक व्हीकल इन क्रेटर्स में जाकर वहां की जांच करेंगे. पता करेंगे कि क्या सच में वहां इतनी बर्फ है. इसके बाद इस दशक के अंत तक नासा इंसानों को चांद पर भेजने की तैयारी में जुटा है. क्योंकि चांद के अंधेरे हिस्से में क्या है, ये किसी को नहीं पता. यह एक बड़ा रहस्य है. जिसका खुलासा करने के लिए वैज्ञानिक एकजुट हो रहे हैं.
एरिजोना यूनिवर्सिटी के ग्रैजुएट स्टूडेंट पैट्रिक ओब्रायन कहते हैं कि चांद के अंधेरे वाले हिस्से में परछाइयों में परछाइयां मौजूद हैं. यहां इतना अंधेरा है कि वहां प्राचीन बर्फ मिल सकती है. तापमान माइनस 250 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है. इसलिए उस इलाके का पता लगाना बहुत जरूरी है कि क्या कभी वहां के स्रोतों का उपयोग इंसान अपने किसी मिशन में कर सकता है या नहीं.
jantaserishta.com
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