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जनता से रिश्ता वेबडेस्क | खून पीने वाले कीड़े यानी Bloodworms को ब्रिसल वर्म्स (bristle worms) भी कहा जाता है. इन्हें देखने से भले ही लगे कि ये नुकसान नहीं पहुंचाएंगे, लेकिन ये सिर्फ धोखा है. ब्लडवर्म कार्निवोरस (carnivorous) यानी मांसाहारी होते हैं, जो समुद्र के किनारे कीचड़ में गहराई में होते हैं. अपने जिन डरावने जबड़ों से ये शिकार को पकड़ते हैं, वे आंशिक रूप से तांबे के बने होते हैं और उनमें जहर भी होता है जिससे लगवा हो सकता है.
कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी के बायोकेमिस्ट हर्बर्ट वाइट (Herbert Waite) का कहना है कि इन कीड़ों का स्वाभाव खराब होता है और ये आसानी से उत्तेजित हो जाते हैं. जब उनका सामना किसी दूसरे कीड़े से होता है, तो वे अपने तांबे के जबड़े को हथियार की तरह इस्तेमाल करके लड़ते हैं.
एक नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने जांच की कि कैसे ब्लडवर्म की प्रजाति ग्लाइसेरा डिब्रांचियाटा (Glycera Dibranchiata) अपने जबड़े के लिए तांबा इकट्ठा करती है. इस प्रजाति के ब्लडवर्म का के जबड़े का करीब 10 प्रतिशत हिस्सा तांबे का बना होता है, बाकी हिस्से में प्रोटीन और मेलेनिन होता है.
यह पहले भी बताया गया है कि ब्लडवर्म जबड़े में तांबे और मेलेनिन के मिलने से नुकीले दांतों में घर्षण प्रतिरोध होता है, जो इस जानवर के जीवनकाल तक चलता है. ब्लडवर्म का जीवनकाल करीब पांच साल का होता है.
नए शोध में, टीम ने ब्लडवर्म को विच्छेदित (dissection) किया, जबड़े के ऊतकों का विश्लेषण किया और इन विट्रो में कल्चर्ड सेल का अध्ययन किया. शोधकर्ताओं ने स्ट्रक्चरल प्रोटीन की पहचान की जो इन अलग-अलग रासायनिक घटकों को एक साथ लाने में मदद करता है.
इस प्रोटीन को मल्टी-टास्किंग प्रोटीन (एमटीपी) कहते हैं. शोधकर्ताओं के अनुसार, एमटीपी जबड़े के बनने की प्रक्रिया में कई रासायनिक भूमिकाएं निभाती है. जिससे तांबा, मिलेनिन और प्रोटीन एक साथ आते हैं और ब्लडवर्म का मजबूत जबड़ा बनता है.
शोधकर्ताओं ने अपने पेपर में लिखा है कि यह सोचकर आश्चर्य होता है कि यह सारा संयोजन एक ब्लडवर्म के मुंह के अंदर हआ है. शायद वे इतने बुरे भी नहीं हैं. हर्बर्ट वाइट का कहना है कि यह ऐसा छोटा कीड़ा है जो जबड़ा बना रहा है. ये जबड़ा तांबे की तरह सख्त है.
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