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धड़कनों का घटना-बढ़ना सीधे तौर पर दिल पर असर डालता है
धड़कनों का घटना-बढ़ना सीधे तौर पर दिल पर असर डालता है। वैज्ञानिक भाषा में इसे एट्रियल फिब्रिलेशन कहते हैं। लम्बे समय तक इस पर ध्यान न देने पर स्ट्रोक, ब्लड क्लॉटिंग या सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। इससे निपटने के लिए वैज्ञानिकों ने अंगूर के आकार के बैलून को तैयार किया है। यह डिवाइस दिल की अनियमित धड़कनों को नियमित करने का काम करेगा।
ब्रिटेन की स्वास्थ्य एजेंसी एनएचएस से इसे अप्रूवल मिल चुका है। जल्द ही बैलून डिवाइस से हार्ट के मरीजों का इलाज किया जा सकेगा। ब्रिटेन में 14 लाख लोग अनियमित धड़कनों की समस्या से जूझ रहे हैं। नई बैलून डिवाइस मरीजों के इलाज में एक बड़ा बदलाव ला सकती है।
धड़कनें अनियमित होती क्यों हैं, इसे समझें
इसके मामले किसी भी उम्र में दिख सकते हैं। हालांकि, सबसे ज्यादा 65 साल या इससे अधिक उम्र के मरीजों में एट्रियल फिब्रिलेशन के मामले देखे जाते हैं। इसकी कई वजह हैं। जैसे- आर्टरी से जुड़ी बीमारी, हाई ब्लड प्रेशर, फेफड़े की बीमारी, वायरस का संक्रमण, नींद न आना, कैफीन-तम्बाकू या शराब का अधिक सेवन।
कैसे काम करता है बैलून
यह बैलून 10 तरह के इलेक्ट्रोड से लैस है। मरीज को लोकल एनेस्थीसिया देने के बाद सर्जरी की जाती है। सर्जरी के दौरान इस बैलून को धमनी के जरिए हार्ट तक पहुंचाया जाता है। यह हार्ट और डैमेज हुई नर्व तक ऑक्सीजनयुक्त ब्लड लेकर जाता है।
इस बैलून में लगे सेंसर हार्ट के इलेक्ट्रिकल सिग्नल पर नजर रखते हैं। बैलून के जरिए उस हिस्से तक गर्माहट पहुंचाई जाती है जिसकी वजह से धड़कनें अनियमित हो गई हैं। वैज्ञानिकों का दावा है कि इस तकनीक की मदद से मात्र 10 सेकंड में हार्टबीट को रेग्युलर किया जा सकता है।
बैलून में लगे टेम्प्रेचर सेंसर और इलेक्ट्रोड धड़कनों को नियमित करने में मदद करते हैं।
बैलून में लगे टेम्प्रेचर सेंसर और इलेक्ट्रोड धड़कनों को नियमित करने में मदद करते हैं।
इसलिए भी असरदार है यह तकनीक
लंदन स्थित बार्ट्स हार्ट सेंटर के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. मैलकॉम फिनले का कहना है, मरीज की सर्जरी लोकल एनेस्थीसिया देने के बाद ही की जाती है। इससे मरीजों में कॉम्प्लिकेशंस का खतरा कम होता है। इसके अलावा मरीज तेजी से रिकवर होता है और एक दिन के अंदर हॉस्पिटल से डिस्चार्ज भी किया जा सकता है। यह तकनीक इलाज करने के लिहाज से भी काफी सटीक है।
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