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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की गुरुवार को जारी रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना संक्रमण की चपेट में आकर 2020 और 2021 में दुनियाभर में करीब 1.49 करोड़ लोगों की मौत हो गई।
डब्ल्यूएचओ का कहना है कि एक्सेस डेथ यानी सभी कारणों की वजह से हुई मौत के दर्ज मामलों और पिछले रूझान के आधार पर अनुमानित मौतों की संख्या के बीच के अंतर के आधार पर कोरोना सक्रमण के कारण होने वाली मौत की संख्या निर्धारित की गई है।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, दुनिया के बस दस देशों में एक्सेस डेथ के 68 प्रतिशत मामले हैं। दक्षिण पूर्व एशिया, यूरोप और अमेरिका में कुल मिलाकर एक्सेस डेथ के 84 प्रतिशत मामले हैं।
स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि बीते 24 माह के दौरान कोरोना संक्रमण के कारण होने वाली कुल मौतों में से 81 प्रतिशत मामले मध्यम आयवर्ग वाले देशों के हैं। कम आयवर्ग वाले देशों में मौत के मामलों का आंकड़ा 53 प्रतिशत और उच्च तथा मध्यम आयवर्ग वाले देशों में मौत के मामले 28 फीसदी हैं।
उच्च आयवर्ग वाले देशों में कोरोना संक्रमण के कारण हुई मौत का प्रतिशत 15 और निम्न आयवर्ग वाले देशों में चार प्रतिशत हैं।
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक एदनम गेब्रसियस ने कहा कि ये आंकड़े सिर्फ कोरोना महामारी के प्रभाव को ही नहीं बताते बल्कि ये अधिक प्रभावी स्वास्थ्य प्रणाली में निवेश करने की जरूरत को भी बताते हैं।
सभी देशों को ऐसी स्वास्थ्य प्रणाली विकसित करने की जरूरत है, जो संकट के दौरान मजबूत स्वास्थ्य सूचना प्रणाली के साथ जरूरी स्वास्थ्य सेवायें मुहैया करा सके।
डब्ल्यूएचओ के आंकड़े बताते हैं कि कोरोना संक्रमण के कारण जान गंवाने वालों में पुरूष अधिक थे। कोरोना संक्रमण के कारण दम तोड़ने वालों में 57 प्रतिशत पुरूष और 43 प्रतिशत महिलायें थीं। बुजुर्गो की मौत का आंकड़ा भी अधिक है।
द लांसे में मार्च में प्रकाशित विश्लेषण में कहा गया था कि कोरोना संक्रमण के कारण होने वाली मौत के वास्तविक आंकड़े दर्ज मामलों से तीन गुना अधिक हो सकते हैं।
आधिकारिक आंकडों के मुताबिक एक जनवरी 2020 से 31 दिसंबर 2021 के बीच 0.59 करोड़ कोरोना संक्रमितों ने दम तोड़ा। नये अध्ययन में लेकिन बताया गया है कि समान अवधि में एक्सेस डेथ के अनुमानित मामले 1.82 करोड़ हैँ, जिनमें से 22 प्रतिशत मामले अकेले भारत के हैं।
डब्ल्यूएचओ प्रमुख ने कहा कि कोरोना महामारी के प्रभाव को समझने के लिये एक्सेस डेथ को मापना बहुत ही जरूरी है। मौत के मामलों के रूझान में आये बदलाव से नीति निर्माताओं को जरूरी सूचनायें मिलती हैं, जिससे वे मृत्युदर को कम करने के लिये जरूरी नीतियां बना सकते हैं। उन्हें इससे भविष्य के संकटों से समुचित तरीके से निपटने में भी मदद मिलेगी।
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