विज्ञान

क्या अब भी छिपे हैं 50 साल पहले चंद्रमा से आए नमूने में कुछ राज

Tulsi Rao
5 May 2022 9:59 AM GMT
क्या अब भी छिपे हैं 50 साल पहले चंद्रमा से आए नमूने में कुछ राज
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। क्या नासा (NASA) 50 साल पहले चंद्रमा से लाए गए चट्टान के नमूने (Last Apollo Sample from Moon) का अध्ययन फिर से कर रहा है. तो इसका जवाब हां है. अपोलो-17 अभियान, जो 1972 में चंद्रमा पर गया था और पिछले सदी का अंतिम मानव चंद्र अभियान साबित हुआ था, से पृथ्वी की प्राकृतिक उपग्रह से लाया गया इन अभियानों का आखिरी नमूने का अध्ययन किया जा रहा है. इस नए अध्ययन से चंद्रमा की आकृति और भूगर्भीय जानकारी मिलने की संभावना है जो पिछले अध्ययन में नहीं मिल सकी थी. यह अध्ययन नासा के आगामी आर्टिमिस अभियान के लिए कर रहा है.

ऐसा क्यों कर रहा है नासा
रोचक बात यह है कि आखिर नासा को 50 साल बाद इस नमूनों के अध्ययन की क्यों सूझी. इसका जवाब यही है कि नासा अपने महत्वाकांक्षी आर्टिमिस अभियान के लिए कई ऐसे सवालों के जवाब चाहता है जो शायद अभी तक इस तरह के नमूनों के अध्ययन के दौरान खोजे नहीं गए थे. आर्टिमिस अभियान में लंबे समय तक चंद्रमा पर अगले पुरुष और पहली महिला को भेजने की तैयारी है.
नासा के खास कार्यक्रम का हिस्सा
यह नमूना 1072 से ही नासा के होस्टन स्थित जॉनसन स्पेस सेंटर के फ्रीजर में सुरक्षित रखे हुए हैं. नासा ने अपने बयान में बताया कि यह शोध अपोलो नेक्स्ट जरनेशन सैम्पल ऐनालिसिस प्रोग्राम ANGSA का हिस्सा है जिसे नासा के चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर जाने वाले आर्टिमिस अभायन से पहले किया जा रहा है.
2018 से ही शुरू हो गया था इस पर काम
इस नमूने के अध्ययन की प्रक्रिया चार पहले ही शुरू हो गई थी. नासा के जूली मिशेल और उनकी आर्टिमिस क्यूरेशन टीम इस नमूने के अध्ययन की तैयारियां कर रही हैं. मिशेल ने बताया कि उनकी टीम 2018 के शुरू में इस पर काम शुरू किया था जिसके बाद उन्हें कई तरह की तकनीकी चुनौतियों का सामना करना पड़ा.
कहां होगा अध्ययन
नमूने के अध्ययन के लिए मिशेल और उनकी टीम के द्वारा तैयार की जा रही जगह भविष्य में भी चंद्रमा और अन्य जगहों से आने वाले नमूनों के अध्ययन के लिए उपयोगी होगी खुद मिशेल के शब्दों यह एक तरह से भावी ठंडे नमूनों की प्रक्रियाओं के लिए एक अभ्यास है. इसी जगह पर आर्टिमिस से आए नमूनों का अध्ययन होगा. नमूने ठंडे जमे रहें यह सुनिश्चित करने के लिए टीम ने एक बड़ा -20 डिग्री सेल्सियस तापमान वाला कमरा डिजाइन किया है.
छोटे वाष्पशील जैविक पदार्थ
अपोलो अभियन के सैम्पल क्यूरेटर रेयान जिगलर ने एक बयान में बताया कि यह आर्टिमिसके लिए जरूरी सबक है, क्योंकि नमूनों की प्रक्रिया ठंडे में पूरी कर पाना अपोलो अभियान से ज्यादा जरूरी है. वर्तमान टीमें भी वाष्पशील जैविक यौगिकों के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करना चाहती हैं क्योंकि पिछले शोधों ने दर्शाया है कि कुछ नमूनों में अमीनों एसिड भी पाए गए हैं जो पृथ्वी पर जीवन के आवश्यक तत्व हैं.
सौरमंडल की उत्पत्ति से संबंध
एस्ट्रोबायोलॉजी एनालिटिकल लैबोटरी में रिसर्च साइंटेस्ट जेमी एल्सीला भी सौरमंडल की उत्पत्ति और वितरण का अध्ययन करना चाहती हैं. उनका कहना है कि कुछ अमीनों एसिड चंद्रमा की मिट्टी पर छोटे लेकिन और वाष्पशील पदार्थों, जैसे फॉर्मलडीहाइड या हाइड्रोजन साइनाइड से बने होंगे. एल्सीला की तरह और भी वैज्ञानिक कई कारणों से चंद्रमा के नमूनों का अध्ययन करना चाहते हैं.
वैज्ञानिकों का मानना है कि इन नमूनों के अध्ययन से काफी कुछ पता चल सकता है. इससे ना केवल चंद्रमा का इतिहास पता चलेगा, बल्कि वहां पर एमीनो ऐसिड और ऐसे ही अन्य जैविक पदार्थ कैसे आए, यह जानकारी सौरमंडल के इतिहास के बारे में भी काफी कुछ बता सकेगी. शोधकर्ता पुराने नमूने पर नई तकनीकों से अध्ययन कर रहे हैं जो इससे पहले उपयोग में नहीं लाई गई थीं. यह अध्ययन आर्टिमिस अभीयान से लाए गए नमूनों के अध्ययन कि दिशा तय कर सकता है


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