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जलवायु परिवर्तन Climate Change) के कारण ध्रुवों पर गर्मी (Heat on Poles) बढ़ रही है और उनकी बर्फ पिघल रही है. पिछले कुछ समय से और इसके आगे जाकर शोध किए जा रहे हैं. अब अवलोकित तापमान के नए विश्लेषण में पता चला है कि आर्कटिक ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) की दर से चार गुना ज्यादा तेजी से गर्म हो रहा है. और यह चलन पिछले 50 साल में दोगुनी गति से होने लगा है. विश्लेषण के ये नतीजे 39 जलवायु प्रतिमानों से केवल चार से ही मेल नहीं खा रहे हैं.
जियोफिजिकल रिसर्च लैटर्स में प्रकाशित इस अध्ययन के प्रमुख लेखक और लॉस अलामोस नेशनल लैबोरेटरी के भौतिकविद एवं जलवायु शोधकर्ता पीटर चिलिक ने बताया कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) को प्रदर्शित करने के लिए कम से कम 30 साल का समय लगता है. लेकिन उन्होंने अपने अध्ययन में इस अंतराल को 21 साल का रखा है. इस छोटे समय के पैमाने में, और पिछली पडतालों में बढ़ते हुए आर्कटिक एम्प्लिफिकेशन इंडेक्स (Arctic amplification index) के विपरीत, शोधकर्ताओं ने 1986 और 1999 के दो अलग पड़ावों का अवलोकन किया.
भविष्य में जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के प्रभावों को रोकने के लिए किए जाने वाले नियोजनों और नई नीतियां विकसित करने के लिए छोटे अंतरालों में जलवायु परिवर्तन के सटीक अनुमान का होना बहुत जरूरी है क्योंकि शोधकर्ताओं द्वारा दशक दर दशक के बदालवों के चलन वैश्विक जलवायु और महासागरों के जल स्तर (Ocean Sea levels) को प्रभावित करते हैं. आर्कटिक दुनिया के जलवायु और मौसमों को प्रभावित करता है और ग्रीनलैंड की बर्फ की चादरों (Greenland Ice Sheets) के पिघलने से महासागरों का जलस्तर बढ़ रह है जो समुद्री तटों पर पहने वाले बहुत से समुदायों के लिए खतरा बन रहा है.
इस अध्ययन में आर्कटिक एम्प्लिफिकेशन इंडेक्स (Arctic amplification index) आर्किटक के पिछले 21 सालों के तापमान चलन (Temperature Trends) और पूरे वैश्विक स्तर के 21 साल के तापमान चलन का अनुपात है. अध्ययन इस इंडेक्स की गणना में पाया गया कि यह 21वीं सदी के शुरुआती दशकों में 4 के भीतर था, और वैशविक औसत से चार गुना ज्यादा तेज था और पिछले प्रकाशित शोधों में जहां 30 से 40 साल के अंतराल (Interval) का उपयोग किया गया था, उसकी तुलना में और ज्यादा तेज था. इन पुराने अध्ययन में यह इंडेक्स 2 से 3 के बीच में था
कम अंतराल की जलवायु (Climate) विविधता को 30 साल से ज्यादा लंबे समय के पैमाने वाले जलवायु प्रतिमान (Climate Models) पहचान नहीं पाते हैं. यह अध्ययन तुलनात्मक तेजी का कारण तो पता नहीं लगा पाता, लेकिन शोधकर्ताओं का मानना है कि इसकी वजह आर्कटिक (Arctic) में समुद्री बर्फ और भाप के अलावा अन्य वायुमंडलीय और महासागरीय ऊष्मा गतिविधि थे. भविष्य में आर्कटिक एम्प्लिफिकेशन इंडेक्स (Arctic amplification index) कम होने की संभावना है क्योंकि तब आर्कटिक और कटिबंधय इलाकों में तापमान का अंतर कम होने लगेगा.
चिलिक का कहना है कि अब शोधकर्ता आगे भविष्य में आर्कटिक (Arctic) के जलवायु (Climate) अनुमान इन चार प्रतिमानों को उपयोग करते लगाएंगे जिनके नतीजे गर्मी के चलन के अवलोकन के साथ नजदीकी से मेल खा रहे थे. उन्होंने कहा कि चूंकि चार प्रतिमानों (Climate Models) से सही तरह से पहले चरण के नतीजे दिए इसलिए मान लिया गया कि भविष्य की जलवायु की तस्वीर भी बेहतर तरह से पेश करेंगे. लोग समान्यतः सभी प्रतिमानों का औसत मानते हैं ना कि विश्वसनीयता के लिए किसी एक प्रतिमान को मानकर चलते हैं. शोधकर्ताओं ने दर्शाया कि इस मामले में औसत काम नहीं कर रहा है.
शोधकर्ताओं ने सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आर्कटिक (Arcitc) के तापमान इंटरनेट से डाउनलोड किए और उनका उपयोग CMIP6 के संकलित जलवायु प्रतिमानों (Climate Models) के सिम्यूलेशन्स पर उनका उपयोग किया. चिलिक बताते हैं कि लोग ना केवल लंबे समय के जलवायु परिवर्तन में रुचि रखते हैं, बल्कि वे आगे के 10 साल, 20 साल और 30 साल में भी रुचि रखते हैं. शोध का यह अवलोकन कि आर्कटिक एम्प्लिफिकेशन इंडेक्स (Arctic amplification index) पिछले सालों में चरणबद्ध तरह से बदला है वाकई महत्वपूर्ण है. (फाइल फोटो)