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यही वो दिन है जब दुनिया की सबसे पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट पर इंसानी फतह हुई थी.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| आज यानी 29 मई का दिन देश के इतिहास में काफी मायने रखता है. यही वो दिन है जब दुनिया की सबसे पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट पर इंसानी फतह हुई थी. साल 1953 में इी रोज शेरपा तेनजिंग नॉर्गे और एडमंड हिलरी एवरेस्ट पर (Sherpa Tenzing Norgay and Edmund Hillary scaled Everest) पहुंचे. लगभग 29,029 फीट ऊंचे एवरेस्ट पर पहुंचने की उनकी जीत की याद में हर साल आज इंटरनेशनल एवरेस्ट दिवस (International Everest Day) मनाते हैं.
साल 2008 में इस दिन को मनाने की शुरुआत हुई थी, जिसका फैसला नेपाल ने लिया था. इस साल ही एडमंड हिलरी की मृत्यु हुई थी. तेनजिंग नॉर्गे की अगले दो सालों में छपी किताब में उन्होंने कई घटनाओं के बारे में बताया था, जो चढ़ाई के दौरान घटीं. इसी में उन्होंने लिखा था कि वे 29 मई को सुबह 11.30 पर सबसे ऊंची चोटी पर पहुंचे और वहां लगभग 15 मिनट तक रहे.
ये एक रिकॉर्ड था. इससे पहले बहुतेरों ने एवरेस्ट पर फतह की कोशिश की और मारे गए थे. बता दें कि नेपाली में सगरमाथा कही जाने वाली यह चोटी दुनिया की सबसे ऊंची चोटी है. साल 1955 में भारत ने इसके सर्वे में पाया कि ये 8,848 मीटर ऊंचा है. बाद में एवरेस्ट की ऊंचाई बढ़कर लगभग 8848.86 मीटर हो गई. नेपाल और चीन ने साल 2019 के अंत में इसकी संयुक्त रूप से घोषणा की थी.
वैसे माउंट एवरेस्ट दुनिया की अकेली दुर्गम चोटी नहीं, बल्कि कई पर्वत हैं, जहां जाना काफी मुश्किल है. पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में कंचनजंघा 2 है. इसे के-2 भी कहते हैं. ये दूसरी सबसे ऊंची चोटी कहलाती है, जिसकी ऊंचाई लगभग 8,611 मीटर है.
तीसरे नंबर पर है कंचनजंघा, जो सिक्किम के उत्तर पश्चिम भाग में नेपाल की सीमा पर है. इसकी ऊंचाई 8,586 मीटर है. नेपाल में इसे कुंभकरन लंगूर पर्वत कहते हैं, जबकी सिक्किम में ये तिब्ब्ती मूल के शब्दों से मिलकर बना है- कांग-छेन-दजों-ंगा. इसका अर्थ विशाल हिम की निधियां है. स्थानीय लोग इसे धार्मिक महत्व की नजर से भी देखते हैं.
ल्होत्से दुनिया की सबसे ऊंची चौथी चोटी है, जो एवरेस्ट के ही दक्षिणी हिस्से से जुड़ी है. ये चोटी 8,516 मीटर ऊंची है. इस पर्वत का नाम तिब्बती शब्द के आधार पर पड़ा, जिसका मतलब है दक्षिणी चोटी. इसे ई-1 भी कहते हैं. नेपाल और तिब्बत के बीच पड़ने वाले इस पर्वत पर तापमान सालभर -13 डिग्री सेल्सियस रहता है और तूफानी हवाएं चलती रहती हैं.
मकालू पर्वत दुनिया के सबसे ऊंचे पहाड़ों में पांचवे स्थान पर है, जिसकी ऊंचाई 8,463 मीटर है. इसकी खोज जो एवरेस्ट पर चढ़ने के दौरान ही हो चुकी थी लेकिन काफी खड़ी और मुश्किल चढ़ाई के कारण इसे फतह करना मुमकिन नहीं हो सका. 15 मई साल 1955 को फ्रांसीसी पर्वतारोही इसपर सबसे पहले पहुंचे, इसके बाद लगातार लोग पहुंचने लगे.
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