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सांस लेना इंसान के लिए ही नहीं अधिकांश जानवरों (Animals) के लिए अहम प्रक्रिया है. फेफड़े (Lungs) के बिना वे जीवित नहीं रह सकते. लेकिन ऐसा लगता है कि कुछ असामान्य उभयचर (Amphibians) जानवर ऐसे हैं जिन्हें इस बात से फर्क ही नहीं पड़ता कि उनमें फेफड़े हैं भी या नहीं. इसकी वजह है क्योंकि वैज्ञानिकों ने बिना फेफड़े वालों ऐसे जानवरों की खोज की है जिनमें पहले तो ये सांस लेने वाले अंग विकसित होते हैं और बाद में शरीर के विकास के साथ ये धीरे धीरे खत्म भी हो जाते हैं. प्लेथोडोंटिड सैलेमैंडर (Plethodontid Salamanders) नाम के ये जीव फेफड़े विहीन रहते हुए भी सांस लेते हैं.
प्लेथोडोंटिड सैलेमैंडर (Plethodontid Salamanders) की विशेषता यह होती है कि वे मलूतः फेफड़ेविहीन (Lungless) होते हैं. सांस लेने के लिए अपने चिकनी चमड़ी और मुंह के ऊतकों का उपयोग कम से कम 2.5 करोड़ सालों से कर रहे हैं. वे एक चिकने पदार्थ का उपयोग करते हैं जो उनके शरीर पर एक आवरण या केंचुली की तरह रहता है. यानि वे अपनी त्वचा से तभी सांस ले पाते हैं यानी ऑक्सीजन (Oxygen) ले पाते हैं, जब उनकी चमड़ी नमी से भरपूर रहती है.
फेफड़े विहीन प्लेथोडोंटिड (Plethodontid, Salamanders) वास्तव में सैलेमैंडर के समूह के सबसे बड़े जीव होते हैं जिनकी करीब 478 प्रजातियां होती हैं. ये मुख्यतः अमेरिका (USA) में पाए जाते हैं, लेकिन इनमें से कुछ यूरोप और दक्षिण कोरिया में भी पाए जाते हैं. इस बारे में काफी कम जानकारी थी कि ये उभयचर (Amphibians) फेफड़े विहीन कैसे हो गए. इसलिए हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ते इवॉल्यूशनरी जीवविज्ञानी जाकरी लुईस और उनके साथियों ने इन ठंडे खून वाले जीवों का अध्ययन करने का फैसला किया.
साइंस एडवांसेस में प्रकाशित इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने लिखा है कि सैलेमैंडर (Salamanders) की कई प्रजातियों के भ्रूणों में फेफड़ों (Lungs) के होने की पुष्टि हुई है. उनकी आकृतियां एक फेफड़े वाले एमबेस्टोमा मेकिसकनम ( Ambystoma mexicanum) नाम के सैलेमैंडर के फेफड़ों से मिलती जुलती है. इस तरह की भ्रूण फेफड़े पी सिनेरियस नाम की प्रजाति में करीब तीन महीने में निकल जाती है. लेकिन अंडे में से आने से पहले फेफड़ों की ये कोशिकाएं अपोपटोसिस नाम की प्रक्रिया से गुजरती हैं जिसमें उनकी मौत हो जाती है.
शोधकर्ताओं को लगता है कि सैलेमैंडर (Salamanders) के भ्रूणों में फेफड़ों का विकास (Lung Development) इसलिए रुक जाता है क्योंकि कोशिकाओं को बहुगुणित होने के लिए जरूरी नियामक संकेत नहीं मिलते हैं जो कि अन्य रीढ़धारी जीवों (Vertebrates) में विकसित होते फेफड़ों के ऊतकों के आसपास मिलते हैं जिन्हें मेसनकाइम कहते हैं. शोधकर्ताओं ने इस धारणा का परीक्षण करने का फैसला किया. उन्होंने इस पदार्थ को फेफड़ेविहीन सैलेमैन्डर के भ्रूण पर रखा और पायाकि उन उनमें फेफड़ों जैसी संरचना का विकास हो रहा है. इससे साबित हुआ कि इनमें फेफड़े विकसित करने की क्षमता कायम है. वहीं एक व्यस्क रूप म्यूकस की परत वाले इन जानवरों में फेफड़े को होने के कोई संकेत नहीं मिलते हैं.
जहां म्यूकस की परत वाले व्यस्क जानवरो (Animals) में फेफड़ों के कोई संकेत नहीं मिले हैं. उनमें इसके लिए अब भी इनके जीन्स और फेफड़े विकसित करने की प्रक्रियाएं मौजूद रहती हैं. जिससे जरूरत पर पड़ने पर उनका विकास हो सके. लेकिन ऐसा लगता है इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए मेसेनकाइम (mesenchyme) जैसे कुछ जरूरी संकेत गायब हो गए हैं. लेकिन जब ये फेफड़ों का उपयोग ही करोड़ों साल तक नहीं हुआ तो उसे विकसित करने की प्रक्रियाएं और क्षमता क्यों कायम है. शोधकर्ताओं का अनुमान है कि ये प्रक्रिया फेफड़े के आसपास के दिल जैसे अंगों का पुनर्निर्माण करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. बल्कि सोनिक हेगेहोग नाम की जीन का उपयोग फेफड़े और अन्य अंगों के विकास के लिए उपयोग में लाया जाता है.