विज्ञान

8 साल में 88 हजार अध्ययनों की जांच के बाद वैज्ञानिकों का दावा- ग्लोबल वार्मिंग के लिए 99.9% इंसान ही जिम्मेदार

Rani Sahu
19 Oct 2021 6:03 PM GMT
8 साल में 88 हजार अध्ययनों की जांच के बाद वैज्ञानिकों का दावा- ग्लोबल वार्मिंग के लिए 99.9% इंसान ही जिम्मेदार
x
ग्लोबल वार्मिंग के लिए 99.9 फीसदी इंसान ही जिम्मेदार है। पिछले 8 सालों में हुए 88,125 अध्ययनों के परिणाम इसकी पुष्टि भी करते हैं

ग्लोबल वार्मिंग के लिए 99.9 फीसदी इंसान ही जिम्मेदार है। पिछले 8 सालों में हुए 88,125 अध्ययनों के परिणाम इसकी पुष्टि भी करते हैं। रिसर्च करने वाली न्यूयॉर्क की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक मार्क लाइनस कहते हैं, 2012 से लेकर 2020 तक अलग-अलग जर्नल्स में पब्लिश हुए 88 हजार से अधिक अध्ययनों को पढ़ा और समझा गया। परिणाम में पुष्टि हुई कि ग्लोबल वार्मिंग के लिए इंसान ही जिम्मेदार है।

रिसर्च के परिणाम तब समय आए हैं जब यूके में क्लाइमेट चेंज पर एक बड़ी कॉन्फ्रेंस होने जा रही है, जिसमें दुनिया के कई बड़े और दिग्गज नेता शामिल हो रहे हैं। कॉन्फ्रेंस का लक्ष्य है दुनियाभर में बढ़ते तापमान को कैसे कंट्रोल करें, इस पर चर्चा करना है। बढ़ते तापमान को कंट्रोल करने के लिए 2015 में पेरिस जलवायु समझौता हुआ था, लेकिन वर्ल्ड लीडर्स के लिए ग्लोबल वार्मिंग को रोकना बड़ी चुनौती साबित हो रहा है।
क्या है पेरिस जलवायु समझौता
2015 में 30 नवम्बर से 11 दिसम्बर तक 195 देशों की सरकारें फ्रांस के पेरिस में इकट्ठा हुईं। सरकारों ने दुनियाभर में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने का लक्ष्य तय किया ताकि तापमान को 2 डिग्री तक कम किया जा सके।
अब ग्लोबल वार्मिंग के खतरों को समझिए
पहला खतरा: बर्फ पिछलेगी, समुद्रजल का स्तर बढ़ेगा
वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन (WMO) ने अपनी हालिया रिपोर्ट में दावा किया है कि 2021 से 2025 के बीच एक साल ऐसा होगा जो सबसे अधिक रिकॉर्ड गर्मी वाला होगा। 40 फीसदी तक 1.5 डिग्री तापमान बढ़ने का खतरा है। वो साल 2016 में पड़ी गर्मी को पीछे छोड़ देगा।
WMO के महासचिव प्रो. पेटेरी तालास के मुताबिक, बढ़ते तापमान से बर्फ पिछलेगी और समुद्र के जल का स्तर बढ़ेगा। इससे मौसम बिगड़ेगा। नतीजा, खाना, सेहत, पर्यावरण और विकास पर असर पड़ेगा। रिपोर्ट बताती है कि यह समय सतर्क होने का है। दुनियाभर में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन घटाने के लिए तेजी से काम करने की जरूरत है।
दूसरा खतरा: इंसानों की लम्बाई व दिमाग का आकार घट सकता है
कैम्ब्रिज और टबिजेन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का कहना है, जलवायु परिवर्तन इंसान की लम्बाई और दिमाग को छोटा कर सकता है। पिछले लाखों सालों में इसका असर इंसान की लम्बाई-चौड़ाई पर पड़ा है। इसका सीधा कनेक्शन तापमान से है। जिस तरह से साल-दर-साल तापमान में इजाफा हो रहा है और गर्मी बढ़ रही है, उस पर वैज्ञानिकों की यह रिसर्च अलर्ट करने वाली है।
तीसरा खतरा: 40% शार्क और रे मछलियां विलुप्ति की कगार पर
अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दुनिया में मौजूद 40 फीसदी तक शार्क और रे मछलियां विलुप्ति की कगार पर हैं। इसकी वजह है जलवायु परिवर्तन, जरूरत से ज्यादा मछलियों का शिकार। मछलियों पर 8 साल तक हुई रिसर्च में सामने आया कि 2014 के इनकी विलुप्ति का खतरा 24 फीसदी था जो अब बढ़कर दोगुना हो गया है।
शोधकर्ताओं का कहना है, जलवायु परिवर्तन ऐसे मछलियों के लिए समस्या बढ़ा रहा है। इससे न सिर्फ उनके मनमुताबिक आवास के लिए माहौल में कमी आने के साथ समुद्र का तापमान में भी बढ़ोतरी हो रही है।
चौथा खतरा: दक्षिण एशिया के लिए बढ़ेगा खतरा
अमेरिका, चीन समेत दुनियाभर के 10 देशों के वैज्ञानिकों ने वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट में दावा किया है कि दुनिया की करीब एक चौथाई आबादी दक्षिण एशिया में रहती है। यह क्षेत्र पहले से ही सबसे ज्यादा गर्मी की मार झेलता है। ऐसे में बढ़ता तापमान यहां के लिए बड़ा खतरा है। इस क्षेत्र के करीब 60 फीसदी लोग खेती-किसानी करते हैं। उन्हें खुले मैदान में काम करना पड़ता है, ऐसे उन पर लू का जोखिम बढ़ेगा।


Next Story