विज्ञान

आखिर क्यों खास है दो तारों का सिस्टम जो बनाने वाला है Supuernova

Gulabi
16 July 2021 3:53 PM GMT
आखिर क्यों खास है दो तारों का सिस्टम जो बनाने वाला है Supuernova
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दो तारों का सिस्टम जो बनाने वाला है Supuernova

वैज्ञानिकों ने दो तारों के सिस्टम (Binary System) की खोज की है जो सुपरनोवा (Supernova) बनाने वाले हैं. दोनों ही तारे (Stars) एक दूसरे से 1500 प्रकाशवर्ष दूर स्थित रहकर एक दूसरे का चक्कर लगा रहे हैं. रोचक बात यह कि वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि ये तारे अगले 7 करोड़ सालों से पहले सुपरनोवा में नहीं बदलेंगे लेकिन उन्हें विश्वास है कि उस समय के बाद वे सुपरनोवा जरूर बनाएंगे. वैज्ञानिकों का कहना है कि ये उन चुनिंदा हालात में से एक में पहुंचेंगे जिनमें सुपरनोवा बनते हैं.

दो तारों के इस सिस्टम (Binary System) में एक गर्म उपबौना (Sub Dwarf) HD265435 पहले यूनिवर्सिटी ऑफ वर्वरिक के विशेषज्ञों की अगुआई में TESS सैटेलाइट के जरिए खोजा गया था . इसके बाद विशाल सफेद बौने की खोज उप बौने की आकार में बदलाव के जरिए हुई जब वह अपने साथी तारे के लिए पदार्थ गंवा रहा था. मृत सफेद बौना अंत में फिर से सुलगेगा और एक सुपरनोवा (Supernova) में फूट पड़ेगा. उस समय तक ये दोनों एक दूसरे का चक्कर लगाते रहेंगे और हर चक्कर 100 मिनट में पूरा पूरा होगा जब तक कि सफेद बौना उपबौने को खा नहीं जाता. HD265435 इस लिहाज से खास है क्योंकि यह केवल उन चंद खोजे गए बाइनरी सिस्टम (Binary System) में से एक है जो सुपरनोवा (Supernova) बनने की कगार पर हैं. इसके अलावा इस अध्ययन के नतीजे हमारी इस समझ को बढ़ाएंगे कि सुपरनोवा कैसे बनते हैं. इससे वैज्ञानिकों में ब्रह्माण्ड के विस्तार (Expansion of Universe) के अध्ययनों में फायदा मिलने की उम्मीद है. यूनिवर्सिटी ऑफ वार्वरिक के खगोलविद और इस अध्ययन के लेखक इनग्रिड पेलिसोली का कहना है, "हम नहीं जानते कि ये सुपरनोवा कैसे विस्फोटित होते हैं. लेकिन हम जानते हैं कि ये विस्फोटित होते हैं क्योंकि हमने इन्हें ब्रह्माण्ड में दूसरी जगह विस्फोटित होते देखा है.
पेलिसोली का कहना है कि एक संभावना यह है कि जब दोनों तारे (Stars) पास आएंगे तब सफेद बौना (White Dwarf) गर्म उपबौने से इतनी मात्रा में पदार्थ अवशोषित करेगा की गर्म उप बौने से चीजें टूट कर सफेद बौने में गिरने लगेंगी. इसके बाद यह सुपरनोवा (Supernova) में बदल जाएगा. यह गर्म उप बौने की खोज नासा के ट्रांजिटिंग एक्जोप्लैनेट सर्वे सैटेलाइट (TESS) के आंकड़ों से हुई थी.
शोधकर्ताओं ने सफेद बौने (White Dwarf) को सीधे तौर पर नहीं पकड़ा. बलकि वे इसकी मौजूदगी की पता उपबौने (Subdwarf) की चमक में बदलाव के आधार पर पता लगा सके, जिससे तारे (Star) के किसी बड़े पिंड से ढकने का आभास हो रहा था. पालोमार वेधशाला और डब्ल्यू एम केक वेधशाला से किए गए रेडियल वेग और घूर्णन वेग के मापन का उपयोग कर और विशाल पिंड के उप बौने पर हुए प्रभाव की मॉडलिंग कर खगोलविद छिपे हुए सफेद बौने की उपस्थिति की पुष्टि कर सके.
नेचर एस्ट्रोनॉमी में प्रकाशित इस अध्ययन में इन दो तारों (Stars) के शुरुताती सर्पिल अवस्था में होने की पुष्टि की गई है जिनका अंत एक खास प्रकार के सुपरनोवा (Supernova) में होगी जिसके अध्ययन से खगोलविदों को ब्रह्माण्ड के विस्तार (Expansion of Universe) को समझने में मदद मिलेगी. ये ईया प्रकार के सुपरनोवा आमतौर पर तब बनते हैं जब सफेद बौने की क्रोड़ सुलगती है और एक उष्मानाभिकीय विस्फोट होता है. ये तब होता है जब या तो सफेद बौना तारा हमारे सूर्य से 1.4 गुना भार हासिल करले (जिसे चंद्रशेखर लिमिट कहा जाता है) या फिर उसके पास ऐसा तारा जो मिल कर उसे इस सीमा के भार के पार करा दे. यह दूसरे किस्म का मामला है.
केवल कुछ ही ऐसे तारे (Stars) हैं जो इस स्थिति में पहुंच पाते हैं और ईया सुपरनोवा (Supernova) बन पाते हैं. ये सुपरनोवा कॉस्मोलॉजी में मानक मोमबत्ती कहलाते हैं. इनकी चमक स्थिर रहती है इनकी जो चमक दिख रही है और जो होनी चाहिए इससे खगोलविद इनकी पृथ्वी से दूरी का पता लगाते हैं. इसी तरह से दूसरी गैलेक्सी के सुपरनोवा से वैज्ञानिक यह पता लगा सकते हैं कि गैसेक्सी हमसे कितनी तेजी से दूर जा रही है और इस तरह ब्रह्माण्ड के विस्तार (Expansion of Universe) की भी गणना की जा सकती है.
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