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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। 2020 में, दुनिया में तीन में से एक व्यक्ति के पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं था. एक ही साल में ऐसे करीब 32 करोड़ लोग और बढ़ गए. खाने की चीजों के बढ़ते दामों और रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से गेहूं, जौ और मक्का का आयात-निर्यात न होने से यह संख्या और भी बढ़ सकती है. क्लाइमेट चेंज की वजह से आने वाली बाढ़, आग और आकस्मिक भयावह आपदाएं, इंसानी संघर्ष और महामारी ने न सिर्फ भोजन के अधिकार को प्रभावित किया है बल्कि, इस संकट को और बढ़ा दिया है.
बहुत से लोगों को लगता है कि दुनिया में भूख इसलिए है कि 'लोग बहुत हैं और खाना कम है.' यह सोच 18वीं शताब्दी से जारी है. उसी समय के अर्थशास्त्री थॉमस माल्थस ने कहा था कि मानव आबादी एक समय में पृथ्वी की क्षमता से ज़्यादा हो जाएगी. इसी सोच की वजह से हम भूख और कुपोषण के असल कारण से दूर हो गए. ये सच है कि असमानता और सशस्त्र संघर्ष इसमें एक बड़ी भूमिका निभाते हैं.
दुनिया के भूखे लोग अनुपातहीन तरीके से अफ्रीका और एशिया के संघर्ष वाले इलाकों में रहते हैं.
The True Reason For So Much Hunger in The World Is Probably Not What You Think https://t.co/lRgHGQ5EgZ
— ScienceAlert (@ScienceAlert) April 13, 2022
मूल कारणों को जानना ही भूख और कुपोषण से निपटने का एकमात्र तरीका है. इसके लिए हमें भूमि, पानी और आय को ज़्यादा समान वितरण के साथ-साथ, स्थायी आहार और शांति-निर्माण पर ध्यान देना होगा.
इस दुनिया में इतना खाना है कि दुनिया के हर महिला, पुरुष और बच्चे को हर दिन 2,300 किलो से ज्यादा कैलोरी मिल सकती है, जो पर्याप्त से कहीं ज़्यादा है. हालांकि, वर्ग, लिंग, नस्ल और उपनिवेशवाद से जन्मी गरीबी और असमानता की वजह से भोजन पर हर किसी का बराबर अधिकार नहीं है.
वैश्विक फसल उत्पादन के आधे हिस्से में गन्ना, मक्का, गेहूं और चावल शामिल हैं- जिनमें से ज्यादातर को मीठे और अन्य उच्च कैलोरी वाले, कम पोषक तत्वों के उत्पादों के लिए औद्योगिक रूप से उत्पादित मांस, जैव ईंधन और वनस्पति तेल के लिए फ़ीड के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
वैश्विक खाद्य प्रणाली को कुछ अंतरराष्ट्रीय निगम नियंत्रित करते हैं. जो प्रोसेस्ड फूड का उत्पादन करते हैं, जिसमें चीनी, नमक, फैट और आर्टिफिशियल रंग या प्रिज़रवेटिव्स होते हैं. ऐसे खाने की ज़्यादा खपत दुनिया भर में लोगों की जान ले रही है. पोषण विशेषज्ञों का कहना है कि हमें शुगर, सैचुरेटेड और ट्रांस फैट, तेल और कार्बोहाइड्रेट को सीमित करना चाहिए. साथ ही, प्लेट में एक चौथाई हिस्सा प्रोटीन और डेयरी का होना चाहिए जिसके साथ फल और सब्जियां खानी चाहिए.
दुनिया को प्रोसेस्ड फूड से दूर रखने से भूमि, पानी पर उनका नकारात्मक असर कम होगा, साथ ही ऊर्जा की खपत भी कम होगी. 1960 के दशक से वैश्विक कृषि उत्पादन, जनसंख्या वृद्धि से आगे निकल गया है. फिर भी माल्थुसियन सिद्धांत पृथ्वी की वहन क्षमता से ज्यादा, जनसंख्या वृद्धि के जोखिम पर फोकस करता है, भले ही वैश्विक जनसंख्या चरम पर हो.
1943 में आई बंगाल की भुखमरी की स्टडी करने वाले नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने माल्थस की थ्योरी को चुनौती दी कि लाखों लोग भूख से मरे क्योंकि उनके पास भोजन खरीदने के लिए पैसे नहीं थे, वो भोजन की कमी से नहीं मरे थे. 1970 में डेनमार्क की अर्थशास्त्री एस्टर बोसरुप ने भी माल्थस की धारणाओं पर सवाल उठाया था. उन्होंने तर्क दिया कि बढ़ती आय, महिलाओं की समानता और शहरीकरण आखिरकार जनसंख्या वृद्धि को रोक देगा.
भोजन भी पानी की तरह एक अधिकार है. पब्लिक पॉलिसी इससे ही बननी चाहिए. अफसोस है कि भूमि और आय को बहुत असमान तरीके से बांटा गया है, जिसकी वजह से अमीर देशों में भी खाद्य असुरक्षा है. सशस्त्र संघर्ष हो तो भूख बढ़ती है. वे देश जिनमें खाद्य असुरक्षा सबसे ज्यादा थी, जैसे सोमालिया, वे देश युद्ध की वजह से तबाह हो गए. आधे से ज्यादा लोग जो कुपोषित हैं और करीब 80 प्रतिशत अविकसित बच्चे किसी न किसी तरह के संघर्ष या हिंसा वाले देशों में रहते हैं.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने चेतावनी दी है कि यूक्रेन में युद्ध ने 45 अफ्रीकी और सबसे कम विकसित देशों को 'भूख के तूफान' की तरफ धकेल दिया है, क्योंकि इन दोशों में गेहूं का कम से कम एक तिहाई हिस्सा यूक्रेन या रूस से आता है. न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, खाने-पीने की चीजों की ज़्यादा कीमतों की वजह से World Food Program को करीब 40 लाख लोगों के राशन में कटौती करने के लिए मजबूर होना पड़ा है.
क्लाइमेट चेंज और खराब पर्यावरण प्रबंधन से मिट्टी, पानी जैसी खाद्य उत्पादन की मूलभूत चीजें संकट में आ गई हैं. पिछले 30 सालों में कई शोध यह चेतावनी दे चुके हैं कि कीटनाशकों, घटती जैव विविधता और लुप्त हो रहे परागणकों (Pollinators) से उत्पादन की खाने की क्वालिटी और क्वांटिटी दोनों को और प्रभावित कर सकता है.
भोजन को अधिकार के तौर पर ही देखा जाना चाहिए, न कि जनसंख्या वृद्धि या कम खाद्य उत्पादन के तौर पर. गरीबी और प्रणालीगत असमानताएं खाद्य असुरक्षा ( Food Insecurity) के मूल कारण हैं. हमें ऐसी चीजें चाहिए जो विश्व स्तर पर भूमि, पानी और आय के समान वितरण को सक्षम कर सकें. हमें ऐसी नीतियां चाहिए जो अधिकार-आधारित खाद्य संप्रभुता प्रणाली (Food Sovereignty Systems) जैसी पहल के माध्यम से खाद्य असुरक्षा पर ध्यान दे सके.
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