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अंतरिक्ष यात्रियों के लिए खाना बनाने पर 1 मिलियन डॉलर का इनाम
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) ने अंतरिक्षयात्रियों के लिए पौष्टिक खाना बनाने पर 1 मिलियन डॉलर के इनाम का ऐलान किया है। बस शर्त यह है कि यह खाना अपने पौष्टिक गुणों के साथ लंबे समय तक टिका रहना चाहिए। नासा अपने डीप स्पेस मिशन पर जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के लिए भोजन की समस्या से जूझ रही है। अभी तक बनाए गए सभी पैक्ड फूड बहुत की कम दिनों में अपनी पौष्टिकता खो देते हैं। ऐसे में अगर लंबे समय तक टिका रहने वाला खाना मिल जाता है तो मंगल जैसे दूर स्थित ग्रहों तक अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने में सहूलियत मिलेगी। नासा ने इस प्रतियोगिता को पहले भी आयोजित किया था, लेकिन आपेक्षित परिणाम न मिलने के कारण इसे दोबारा शुरू किया गया है।
अब नासा और कनाडा की अंतरिक्ष एजेंसी एक साथ मिलकर कई वर्षों तक टिके रहने वाले भोजन को खोजने पर 1 मिलियन डॉलर के इनाम की घोषणा की है। भारतीय रुपये में यह धनराशि लगभग 7.5 करोड़ रुपये बनती है। नासा ने कहा कि डीप स्पेस फूड चैलेंज के प्रतिभागियों से अपेक्षा की जाती है कि वे फूड प्रॉडक्शन टेक्नोलॉजी और सिस्टम्स पर अपने नवीन विचारों को प्रस्तुत करेंगे। यह न केवल स्वादिष्ट, टिकाऊ होनी चाहिए, बल्कि इसको बनाने के लिए न्यूनतम संसाधनों की आवश्यकता होगी चाहिए। इस खाने का ज्यादातर हिस्सा शरीर में घुल जाना चाहिए।
चंद्रमा पर जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के लिए होगी सुविधा
नासा चंद्रमा पर अंतरिक्ष यात्रियों और आम लोगों को भेजने की योजना बना रही है। इसके लिए प्रारंभिक तौर पर अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष मिशन में इस्तेमाल होने वाले खाने का ही उपयोग किया जाएगा। लेकिन समय के साथ चंद्रमा पर ऐसे खाने की बार-बार आपूर्ति करने की जरूरतें बढ़ेगी। इसके लिए कोई ऐसी खाद्य समाग्री चाहिए, जो एक बार बनाने के बाद लंबे समय तक अंतरिक्ष यात्रियों का पेट भर सके। ऐसे में धरती से बार-बार रॉकेट से सामान भेजने की आवश्यक्ता नहीं होगी। नासा के अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी मिशन निदेशालय के सहयोगी प्रशासक जिम रेउटर ने कहा कि खाद्य प्रौद्योगिकी की सीमाओं को आगे बढ़ाने से भविष्य के खोजकर्ता स्वस्थ रहेंगे और यहां तक कि घर पर लोगों को खिलाने में भी मदद मिल सकती है।
मंगल पर जाने में लगते हैं सात महीने
नासा 2035 तक मंगल ग्रह पर इंसानों को भेजने की तैयारियों में जुटी है। धरती से लगभग 23 करोड़ किलोमीटर दूर स्थित मंगल तक इंसानों को पहुंचाना नासा के लिए अब भी चुनौती बना हुआ है। इसलिए नासा अब परमाणु शक्ति से चलने वाला रॉकेट बनाने की योजना पर काम करने वाला है। यह रॉकेट इंसानों को तीन महीने में ही मंगल पर पहुंचा देगा। अगर ऐसा रॉकेट बन जाता है तो भविष्य के भी अंतरिक्ष मिशन में नासा को बड़ी सफलता मिल सकती है। दरअसल मंगल तक इंसानों को पहुंचाने में नासा के सामने सबसे बड़ी समस्या रॉकेट की आ रही है। क्योंकि, वर्तमान में जितने भी रॉकेट मौजूद हैं वे मंगल तक पहुंचने में कम से कम 7 महीने का समय लेते हैं। अगर इंसानों को इतनी दूरी तक भेजा जाता है तो मंगल तक पहुंचते-पहुंचते खाने और ऑक्सीजन की कमी हो सकती है।
दरअसल मंगल तक इंसानों को पहुंचाने में नासा के सामने सबसे बड़ी समस्या रॉकेट की आ रही है। क्योंकि, वर्तमान में जितने भी रॉकेट मौजूद हैं वे मंगल तक पहुंचने में कम से कम 7 महीने का समय लेते हैं। अगर इंसानों को इतनी दूरी तक भेजा जाता है तो मंगल तक पहुंचते पहुंचते ऑक्सीजन की कमी हो सकती है। दूसरी चिंता की बात यह है कि मंगल का वातावरण इंसानों के रहने के अनुकूल नहीं है। वहां का तापमान अंटार्कटिका से भी ज्यादा ठंडा है। ऐसे बेरहम मौसम में कम ऑक्सीजन के साथ पहुंचना खतरनाक हो सकता है।
नासा के स्पेस टेक्नोलॉजी मिशन डायरेक्ट्रेट की चीफ इंजिनियर जेफ शेही ने कहा कि वर्तमान में संचालित अधिकांश रॉकेट में केमिकल इंजन लगे हुए हैं। ये आपको मंगल ग्रह तक ले जा सकते हैं, लेकिन इस लंबी यात्रा की धरती से टेकऑफ करने और वापस लौटने में कम से कम तीन साल का समय लग सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि बाहरी अंतरिक्ष में चालक दल को कम से कम समय बिताने के लिए नासा जल्द से जल्द मंगल तक पहुंचना चाहता है। इससे अंतरिक्ष विकिरण के संपर्क में कमी आएगी। जिस कारण रेडिएशन, कैंसर और नर्वस सिस्टम पर भी असर पड़ता है।
इस कारण ही नासा के वैज्ञानिक यात्रा के समय को कम करने के तरीके खोज रहे हैं। सिएटल स्थित कंपनी अल्ट्रा सेफ न्यूक्लियर टेक्नोलॉजीज (USNC-Tech) ने नासा को एक परमाणु थर्मल प्रोपल्शन (NTP) इंजन बनाने का प्रस्ताव दिया है। यह रॉकेट धरती से इंसानों को मंगल ग्रह तक केवल तीन महीने में पहुंचा सकता है। वर्तमान में मंगल पर भेजे जाने वाले मानवरहित अंतरिक्ष यान कम से कम सात महीने का समय लेते हैं। वहीं, इंसानों वाले मिशन को वर्तमान के रॉकेट से मंगल तक पहुंचने में कम से कम नौ महीने लगने की उम्मीद है।
परमाणु रॉकेट इंजन को बनाने का विचार नया नहीं है। इसकी परिकल्पना सबसे पहले 1940 में की गई थी। लेकिन, तब तकनीकी के अभाव के कारण यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई। अब फिर अंतरिक्ष में लंबे समय तक यात्रा करने के लिए परमाणु शक्ति से चलने वारे रॉकेट को एक समाधान के रूप में देखा जा रहा है। USNC-Tech में इंजीनियरिंग के निदेशक माइकल ईड्स ने सीएनएन से कहा कि परमाणु ऊर्जा से चलने वाले रॉकेट आज के समय में इस्तेमाल किए जाने वाले रासायनिक इंजनों की तुलना में अधिक शक्तिशाली और दोगुने कुशल होंगे।परमाणु रॉकेट इंजन की निर्माण की तकनीकी काफी जटिल है। इंजन के निर्माण के लिए मुख्य चुनौतियों में से एक यूरेनियम ईंधन है। यह यूरेनियम परमाणु थर्मल इंजन के अंदर चरम तापमान को पैदा करेगा। वहीं, USNC-Tech दावा किा है कि इस समस्या को हल करके एक ईंधन विकसित किया जा सकता है जो 2,700 डिग्री केल्विन (4,400 डिग्री फ़ारेनहाइट) तक के तापमान में काम कर सकता है। इस ईंधन में सिलिकॉन कार्बाइड होता जो टैंक के कवच में भी सुरक्षा के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इससे इंजन से रेडिएशन बाहर नहीं निकलेगा, जिससे सभी अंतरिक्षयात्री सुरक्षित रहेंगे।
कैसा खाना खाते हैं अंतरिक्ष यात्री
पुराने समय में अंतरिक्षयात्री बेबी फूड या सॉफ्ट फूड खाया करते थे। ये खाना टूथपेस्ट जैसे ट्यूब्स में रखा जाता था। लेकिन बाद में फूड प्रोसेसिंग की नई-नई तकनीकों के ईजाद होने से अंतरिक्ष यात्रियों के भोजन में भी बदलाव आया। वर्तमान में लगभग हर खाना अंतरिक्ष में भेजा जा सकता है। वैज्ञानिकों ने लंबे समय तक टिकने वाले पिज्जा तक बना लिए हैं। अंतरिक्ष यात्रियों के लिए बनाया जाने वाला हर खाना ग्रेविटी को ध्यान में रखकर तैयार और पैक किया जाता है।
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