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शोध में हुआ खुलासा- पहले कहीं और पर सूर्य का चक्कर लगाते थे गुरू और शनि
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| सौरमंडल (Solar System) के ग्रहों की उत्पत्ति (Origin of Planets) के बारे में जानकारी वैज्ञानिकों को कई सवालों के जवाब दे सकती है. वैसे तो वैज्ञानिकों की दिलचस्पी पृथ्वी (Earth) के बारे में जानकारी लेने में ज्यादा है, लेकिन दूसरे खगोलीय पिंडों की जानकारी से भी उन्हें काफी उम्मीदें रहती हैं. ताजा अध्ययन में शोधकर्ताओं को शनि (Saturn) और गुरू (Jupiter) ग्रहों की उत्पत्ति के बारे में पता चला है जिससे उन्हें सौरमंडल के बारे में और भी अहम जानकारी मिल सकती है.
मूल स्थितियों के बारे जानकारी
इस अध्ययन से शनि और गुरू ग्रहों की संभावित मूल स्थितियों के बारे में पता चला है. कारनेगी के मैट क्लैमेन्ट की अगुआई में हुए इस शोध की पड़ताल से उन कारकों के बारे में जानकारी मिलेगी जो हमारे सौरमंडल की संचरचना में निर्णायक सिद्ध हुए थे. इसमें शनि और यूरेनस के बीच एक ग्रह बनना भी शामिल है.
और क्या पता चला
शोधकर्ताओं की पड़ताल में यह भी पता चला कि शनि-गुरू के बीच हुई इस घटना ने यह सुनिश्चित किया कि पृथ्वी की तरह छोटे पथरीले ग्रह केवल गुरू ग्रह के अंदर ही बने रहे होंगे. अपनी युवा अवस्था में सूर्य गैस और धूल वाली एक घूमती हुई डिस्क से घिरा था जिससे हमारे ग्रहों का निर्माण हुआ था.
ग्रहों की कक्षा में बदलाव
माना जाता है कि शुरू जब ग्रह बने थे तो उनकी कक्षा काफी पास-पास और वृत्ताकार थी. लेकिन बड़े पिंडों के बीच गुरूत्वाकर्षण की अंतरक्रिया ने इस व्यवस्था में विकृति ला दी. इससे ग्रहों की स्थितियों में तेजी से बदलाव हुआ और आज की स्तिथियों का निर्माण हुआ.
कैसे किया अध्ययन
क्लैमेंट ने बताया, "हम अब जानते हैं कि हमारी गैलेक्सी ही में हजारों सौरमंडल है लेकिन हमारे ही सौरमंडल की संरचना बहुत ही अनोखी है. इसलिए हमने ऐसे मॉडल्स का उपयोग किया जिससे उसके निर्माण प्रक्रिया के बारे में पता चल सके. यह बिलकुल वैसा ही है जैसे यह पता लगाना कि किसी कार दुर्घटना में क्या हुआ था जब हमें पता हो कि कार कितनी तेजी से किस दिशा में जा रही थी, वगैरह, वगैरह.
हमारी गैलेक्सी में ही होंगे 30 करोड़ जीवन की अनुकूलता के योग्य ग्रह
छह हजार सिम्युलेशन
कारनेगी के जॉन चेंबर्स के साथ बोरडॉक्स, राइस और ओकलाहोमा यूनिवर्सिटी, एवं साउथवेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने हमारे सौरमंडल के उद्भव (Evolution) के लिए छह हजार सिम्यूलेशन्स किए. इस अध्ययन से शोधकर्ताओं को शुरुआती दौर में गुरू और शनि ग्रह के अप्रत्याशित संबंधों के बारे में पता चला.
कक्षाओं के अनुपात का अनुमान
माना जाता था कि शुरू में गुरू शनि के सूर्य दो चक्करों में तीन चक्कर पूरे कर लेता था. लेकिन यह व्यवस्था आज के विशाल ग्रहों के स्थितियों की व्याख्या करने के लिए काफी नहीं थी. टीम के मॉडल ने दर्शाया कि गुरू की कक्षा के दो चक्कर और शनि की कक्षा का एक चक्कर के अनुपातन ने आज की स्थितियों के ज्यादा अनुकूल नतीजे दिए
सौरमंडल हमेशा नहीं था ऐसा
शोधकर्ताओं ने पाया कि आज के सौरमंडल की स्थिति हमेशा ही ऐसी नहीं थी. उनके मॉडल की कारगरता स्थापित होने से अब उससे हमारी पृथ्वी सहित अन्य ग्रहों के निर्माण के बारे में पता लगाया जा सकता है. इससे उन बाह्यग्रहों के सौरमडंल की जानकारी भी हासिल की जा सकती है जिनमें जीवन की संभावना हो.
इस मॉडल ने यह भी दर्शाया कि यूरेनस और नेप्च्यून की स्थतियों में क्यूपियर बेल्ट का अहम योगदान था. क्यूपियर बेल्ट सौरमंल में वह बर्फीला इलाका है जो सौरमंडल के किनारे पर छोटे ग्रहों का समूह है जिसमें प्लूटो सबसे बड़ा ग्रह है. दोनों ग्रहों की स्थितियों में एक बड़े बर्फीले ग्रह का भी योगदान था जो शुरुआत में ही सौरमंडल से बाहर फेंक दिया गया था