विज्ञान

आइए समझते हैं,कि भारत मिसाइल तकनीक के मामले में किस स्थान पर है,क्या है मिसाइल तकनीक का इतिहास

Kajal Dubey
20 Dec 2021 11:19 AM GMT
आइए समझते हैं,कि भारत मिसाइल तकनीक के मामले में किस स्थान पर है,क्या है मिसाइल तकनीक का इतिहास
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क्या है भारत में मिसाइल तकनीक का इतिहास

नई दिल्‍ली.चीन (China) ने बीते दिनों हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल के साथ हाइपरसोनिक मिसाइल (Hypersonic Missile) का सफल परीक्षण करके दुनियाभर को चौंका दिया था. हालांकि रिपोर्ट बताती हैं कि परीक्षण में पता चला कि इसने दुनिया का चक्कर तो लगाया, लेकिन कुछ ही किलोमीटर पर यह अपने लक्ष्य से चूक गया था. आइए समझते हैं कि भारत मिसाइल तकनीक (India Missile Power) के मामले में किस स्थान पर है. अगर दुनियाभर में मिसाइल तकनीक की बात करें तो भारत सर्वोच्च 5 देशों में स्थान रखता है. लेकिन अभी भी तकनीक के मामले में हम अमेरिका, रूस और चीन से काफी पीछे हैं.

क्या है भारत में मिसाइल तकनीक का इतिहास
आजादी से पहले भारत में बहुत सारे साम्राज्य मौजूद थे जो युद्ध तकनीक में रॉकेट का इस्तेमाल किया करते थे. मैसूर के राजा हैदर अली ने 18वीं सदी के मध्य में अपनी सेना को लोहे के कवच वाले रॉकेट से परिचित कराया था. हैदर के बेटे टीपू सुल्तान की मौत होने तक उनकी सेना की हर टुकड़ी के साथ एक रॉकेट चलाने वाला जुड़ा हुआ था. एक अनुमान के मुताबिक उनके दल में करीब 5000 रॉकेट चलाने वाले मौजूद थे.
आजादी के वक्त भारत में स्वदेशी स्तर पर मिसाइल क्षमता नहीं थी. भारत सरकार ने 1958 में विशेष शस्त्र विभाग का निर्माण किया. यही आगे चलकर डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट लैबोरेटरी (डीआरडीएल) यानी रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला बना,जिसे 1962 में दिल्ली से हैदराबाद में स्थानांतरित किया गया.
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक डीआरडीओ की प्रयोगशाला के आधिकारिक रिकॉर्ड बताते हैं कि 1972 में सतह से सतह पर हमला करने वाली मध्यम रेंज की मिसाइल के विकास की शुरुआत प्रोजेक्ट डेविल के नाम से की गई. इस दौरान बड़ी संख्या में परीक्षण सुविधा और बुनियादी ढांचे का निर्माण हुआ. 1982 आते आते डीआरडीएल, इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (आईडीएमडीपी) यानी एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम के तहत कई मिसाइल तकनीकों पर काम कर रहा था.
भारत के पास किस तरह की मिसाइल
जहां तक स्वदेशी स्तर पर मिसाइल डिजाइन और विकसित करने की बात है, भारत सर्वोच्च पांच देशों में शुमार है. हालांकि रेंज के मामले में भारत, अमेरिका, चीन और रूस से काफी पीछे है. सतह से लॉन्च की जाने वाली मिसाइलों में- एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल नाग पहले से ही सेना में शामिल है. इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर के मुताबिक नाग एकमात्र फायर एंड फॉरगेट यानी दागो और भूल जाओ वाला एटीजीएम है जो अपनी रेंज (20 किमी) में सभी मौसमों में काम करती है. हाल ही में हेली नाग का परीक्षण किया गया जिसे हेलीकॉप्टर से चलाया जा सकेगा. इसके 2022 तक सेना में शामिल होने का अनुमान है. एक स्टैंड ऑफ एंटी टैंक (सैंट) मिसाइल भी है जिसकी रेंज 10 किमी से ज्यादा है. 11 दिसंबर को भारतीय वायु सेना के हेलीकॉप्टर से इसका परीक्षण किया गया था. इसमें मिलीमीटर वेव सीकर होता है जो किसी भी तरह के मौसम में लक्ष्य को खोज लेने की काबिलियत को बढ़ाता है.
सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल- छोटी रेंड वाला सैम सिस्टम आकाश पहले ही वायु और थल सेना में शामिल किया जा चुका है. आकाश 1 के लिए सेना को पहले ही सरकार से ज़रूरी स्वीकृति मिल चुकी है. आकाश ( नई जेनरेशन) का पहला परीक्षण इसी साल जुलाई में किया गया था. इसके कुछ और परीक्षण होने अभी बाकी हैं.
मध्यम रेंड सैम- जलसेना के लिए मध्यम रेंज का सैम यानि सरफेस टू एयर मिसाइल का ऑर्डर दिया जा चुका है. जैसलमेर में तैनात वायु सेना की 2204 स्कॉड्रन पहली यूनिट है जिसे इस साल सितंबर में मध्यम रेंज सैम प्राप्त हुआ है. थल सेना के लिए इसकी तकनीक पर अच्छे से काम हो रहा है और जल्दी इसका परीक्षण किया जाएगा.
छोटी रेंज वाला सैम- जलसेना के लिए पहला फ्लाइट परीक्षण सफलतापूर्वक संचालित किया जा चुका है.
हवा से हवा में मार करने वाला – अस्त्र, भारत का बियॉन्ड विजुअल रेंज एयर टू एयर मिसाइल (बीवीआरएएएम) यानि ऐसी मिसाइल जो नजर में नहीं आने वाले लक्ष्य को साधता है उसका परीक्षण पूरा हो चुका है और यह सेना में शामिल किये जाने की प्रक्रिया में है. इसकी रेंज करीब 100 किमी है. डीआरडीओ इसे वायु सेना के मंच से परिचित कराने का प्रयास कर रहा है. जिसे स्वदेशी स्तर पर विकसित किया गया लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट तेजस भी शामिल है. लंबी दूरी वाले अस्त्र को भी विकसित किया जा रहा है,जिसके शुरुआती परीक्षण संचालित किए जा चुके हैं. इस मिसाइल में सॉलिड फ्यूल रामजेट तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है जिससे इसकी गति और बढ़ जाती है.
हवा से ज़मीन पर मार करने वाला – रुद्रम एक नई जेनरेशन की एंटी-रेडिएशन मिसाइल (एनजीआरएएम) है, जिसके शुरुआती परीक्षण पूरे किये जा चुके हैं. और जल्दी ही कुछ और परीक्षण किए जाएंगे. इसकी अधिकतम रेंज करीब 200 किमी तक होगी. यह मिसाइल मुख्यतौर पर दुश्मन के संचार, रडार और निगरानी तंत्र को लक्षित करता है. पिछले साल सुखोई-30 एमकेआई फाइटर जेट से इसका परीक्षण किया गया था. वहीं रूस के साथ संयुक्त तौर पर विकसित किया गया ब्रह्मोस पहले से संचालित किया जा रहा है. इसकी 300 से 500 किमी की रेंज है. और यह एक कम दूरी वाली, रैमजेट पर चलने वाली, सिंगल वॉरहेड, सुपरसोनिक एंटी शिप और ज़मीन पर हमला करने वाली क्रूज मिसाइल है. बीते दिनों एक सुपरसोनिक मिसाइल समर्थित तारपीडो सिस्टम लान्च किया गया था. यह तारपीडो को लेकर गया और लंबी दूरी पर इसे पहुंचाया. इससे 400 किमी रेंज के साथ जलसेना की एंटी सबमरीन की क्षमता बढ़ेगी
भारत का कौन सा मिसाइल सिस्टम सबसे अहम
भारत के सबसे अहम दो मिसाइल तंत्र हैं, अग्नि और पृथ्वी. दोनों ही स्ट्रेटेजिक फोर्सेस कमांड इस्तेमाल कर रही है. अग्नि (5000 किमी रेंज) भारत की ओर से एकमात्र इंटर-कांटिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल यानी अंतर महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल दावेदार है, जो फिलहाल कुछ ही देशों के पास मौजूद है. पृथ्वी वैसे तो एक कम दूरी वाली सतह से सतह पर मार करने वाली 350 रेंज की मिसाइल है. भारत एक एंटी सेटेलाइट सिस्टम का भी अप्रैल 2019 में परीक्षण कर चुका है. पृथ्वी डिफेंस व्हीकल एमके 2 नाम से सुधार की गई एंटी बैलिस्टिक मिसाइल का इस्तेमाल निचली कक्षा में स्थित सेटेलाइट को मार करने के लिए उपयोग में लाया जाता रहा है. इससे भारत मिसाइल के मामले में बस अमेरिका,चीन और रूस से पीछे रह जाता है.
हाइपरसोनिक तकनीक क्या है
भारत कुछ सालों से इस तकनीक पर काम कर रहा है, डीआरडीओ ने सितंबर 2020 को सफलतापूर्वक हाइपरसोनिक तकनीक डिमोन्स्ट्रेटेड व्हीकल (एचएसटीडीवी) का परीक्षण किया था. और इसकी हाइपरसोनिक एयर-ब्रीदिंग स्क्रामजेट तकनीक का प्रदर्शन किया था. सूत्रों की माने तो अब तक केवल रूस ही अपनी हाइपरसोनिक क्षमता का प्रदर्शन कर पाया है. वहीं चीन ने अपनी एचजीवी क्षमता को प्रस्तुत किया है. भारत को उम्मीद है कि अगले चार सालों में उसके पास मध्यम से लंबी दूरी क्षमता वाले हाइपरसोनिक हथियार तंत्र होंगे.
भारत की तुलना में चीन और पाकिस्तान
रिपोर्ट के मुताबिक, पेंटागन में 2020 में आई एक रिपोर्ट बताती है कि चीन जमीन आधारित पारंपरिक बैलिस्टिक औऱ क्रूज मिसाइल क्षमता के मामले में या तो अमेरिका के बराबर है या उससे आगे निकल गया है. चीन की मिसाइल क्षमता हमारे लिए चिंता की वजह बन सकती है. लेकिन ऐसा नहीं है कि भारत इस पर काम नहीं कर रहा है, या भारत के पास काबिलियत नहीं है, बल्कि बीते दिनों हुए परीक्षण बताते हैं कि भारत जल्दी ही विकास करेगा. उधर चीन अपनी तकनीक पाकिस्तान के साथ साझा कर रहा है, लेकिन किसी तकनीक को हासिल करना और उस पर काम करके उसे विकसित करना बिल्कुल ही अलग बात होती है.


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