धर्म-अध्यात्म

बरसाना की होली के पीछे का इतिहास जानकर होगी हैरानी

Apurva Srivastav
26 Jun 2023 10:55 AM GMT
बरसाना की होली के पीछे का इतिहास जानकर होगी हैरानी
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विविधताओं के देश भारत में हर त्यौहार को मनाने का तरीका भी अलग अलग है। अब बात होली की ही कर लीजिये, कहने को तो यह रंगों का त्यौहार है लेकिन उत्तर भारत के कई हिस्सों में इसे रंगों के अलावा अन्य तरीकों से भी मनाया जाता है। मथुरा के बरसाना में होली से कई दिनों पहले से ही इसका जश्न आरम्भ हो जाता है। बसंत पंचमी के साथ यहां होली के मेले लगना शुरू हो जाते हैं और उत्सव के रूप में होली वाले दिन तक इसे मनाया जाता है। आज हम बात करेंगे बरसाना की लट्ठमार होली की।
बरसाना की लट्ठमार होली
होली, जिसे रंगों का त्यौहार कहा जाता है, उसे बरसाना में लट्ठ यानी डंडों के साथ खेला जाता है। यहां एक दूसरे पर रंग लगाने की बजाय लट्ठों की बरसात की जाती है। लेकिन इस तरह की होली क्यूं खली जाती है, इसके पीछे का इतिहास क्या है, ऐसी प्रथा क्यूं शुरू की गई और इसे खेलता कौन है, चलिए जानते हैं रोचक बातें।
क्या है लट्ठमार होली?
रंगों का त्यौहार होली भगवान कृष्ण और उनकी साथी राधा के साथ काफी जोड़ा जाता है। यही कारण है कि मथुरा-वृन्दावन में होली को धूमधाम से मनाया जाता है। मथुरा के बरसाना में फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को लट्ठमार होली खेली जाती है। इस खास तरह की होली में केवल महिलाएं, पुरुषों पर लट्ठों की बरसात करती हुई दिखती हैं।
राधा कृष्ण से जुड़ा इतिहास
दरअसल इसके पीछे भी एक कहानी है। कहते हैं कि द्वापर युग में भगवान कृष्ण होली के समय पर अपने सखाओं के साथ नन्द नगरी से राधा रानी की नगरी जाते थे। सभी का उद्देश्य होता था राधा रानी और उनकी सखियों के साथ होली खेलना, हंसी ठिठोली करना। जब सभी वहां पहुंचते तो खुद को बचाने के लिए राधा रानी और उनकी सखियां डंडे मारती थीं। लट्ठों की मार से बचने के लिए ग्वाले भी ढालों का प्रयोग करते थे। आगे चलकर यह होली की प्रथा बन गई जिसे मथुरा के बरसाने में एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
ऐसे मनाते हैं लट्ठमार होली
बरसाना की लट्ठमार होली के अवसर पर नंदगांव के ग्वाल (केवल पुरुष) राधा रानी के गांव मथुरा जाते हैं और बरसाना के पुरुष नंदगांव जाते हैं। इन पुरूषों को यहां ‘होरियारे’ कहकर पुकारा जाता है। इन पुरुषों का स्वागत गांव की महिलाओं द्वारा होता है जो उनपर लाठों से पीटना शुरू कर देती हैं। लेकिन यह सभी हंसी खेल में ही होता है। महिलाएं अपने गांव के पुरुषों को नहीं मारती हैं। इसके अलावा आसपास लोग रंगों से भी खेलते हुए दिखाई देते हैं।
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