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हर वर्ष खरमास लगता है तो मांगलिक कार्यों पर पाबंदी लग जाती है. इस वर्ष धनु संक्रांति 16 दिसंबर से शुरु हो रही है
हर वर्ष खरमास लगता है तो मांगलिक कार्यों पर पाबंदी लग जाती है. इस वर्ष धनु संक्रांति (Dhanu Sankranti) 16 दिसंबर से शुरु हो रही है, इसके साथ ही खरमास भी एक माह के लिए लग जाएगा. खरमास में सूर्य देव (Surya Dev) की गति धीमी हो जाएगी, जिससे उनका प्रभाव भी कम हो जाता है. आज आपको बताते हैं कि खरमास का नामकरण कैसे हुआ? इसे खर मास ही क्यों कहते हैं? इससे जुड़ी सूर्य देव की एक पौराणिक कथा है, जिसमें इसका वर्णन मिलता है.
खरमास की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, सूर्य देव सदैव गतिमान रहते हैं. उनके गतिशील रहने से ही पूरी सृष्टि भी गतिशील रहती है. उनकी ऊर्जा से सभी जीवों को ऊर्जा मिलती है, पेड़ पौधों को जीवन मिलता है. यदि वे गतिहीन हो गए यानी कि वे कहीं भी ठहर गए तो, बड़ी समस्या हो जाएगी. इस कारण से सूर्य देव हमेशा अपने सात घोड़ों वाले रथ पर सवार होकर परिक्रमा करते रहते हैं.
सूर्य देव के रथ के घोड़े लगातार चलने के कारण थक जाते हैं. यह देखकर सूर्य देव को दया आ गई. उन्होंने एक तालाब के किनारे अपने रथ को रोक दिया और घोड़ों को पानी पीने के लिए छोड़ दिया. सातों घोड़े पानी पीने लगे और विश्राम करने लगे. लेकिन समस्या यह थी कि सूर्य देव एक स्थान पर रूक नहीं सकते थे.तभी संयोग से उस तालाब के किनारे दो खर यानी गधे मिल जाते हैं. सूर्य देव अपने रथ में उन दो गधों को जोड़ देते हैं और उनको लेकर परिक्रमा करने निकल पड़ते हैं. अब गधों की रफ्तार घोड़ों की तरह नहीं हो सकती है. इस कारण से सूर्य देव की गति धीमी हो जाती है. सूर्य देव पूरे एक मास तक गधों वाले रथ पर सवार रहते हैं, इस वजह से इसे खर मास कहा जाता है.
सूर्य देव जब धनु संक्रांति से मकर संक्रांति में आते हैं तो उनके रथ से खर यानी गधे निकाल दिए जाते हैं और उसमें सातों घोड़ों को जोड़ दिया जाता है. ऐसे में फिर से सूर्य देव की चाल तेज हो जाती है, उनका प्रभाव बढ़ जाता है. इस प्रकार से खर मास लगता है.

Ritisha Jaiswal
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