धर्म-अध्यात्म

आप भी जानिए क्षीरसरोवर की उत्पत्ति के बारे में

Ritisha Jaiswal
21 Dec 2020 1:54 PM GMT
आप भी जानिए क्षीरसरोवर की उत्पत्ति के बारे में
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प्राचीन काल की बात है। भगवान श्री कृष्ण अपनी गोपांगनाओं से घिरे पुष्प वृन्दावन में विहार कर रहे थे

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | प्राचीन काल की बात है। भगवान श्री कृष्ण अपनी गोपांगनाओं से घिरे पुष्प वृन्दावन में विहार कर रहे थे। अचानक से प्रभु के मन दूध पीने की इच्छा जगी। फिर भगवान ने अपने वामपार्श्व से लीलापूर्वक सुरभी गौ को प्रकट किया। वह गौ दुग्धवती थी। उसके साथ एक बछड़ा भी था। फिर सुदामा ने एक रत्नमय पात्र लिया और उसमें दूध दुहा। वह स्वादिष्ट दूध श्री कृष्ण ने ग्रहण किया। उनके हाथ से यह पात्र सुदामा ने एक रत्नमय पात्र में उसका दूध दुहा। स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने उस स्वादिष्ट दूध को पिया। फिर उनके हाथ से वह पात्र गिर गया और धरती पर गिर पड़ा। सारा दूध धरती पर फैल गया। उस दूध के फैलने से वहां पर एक सरोवर बन गया। यह क्षीरसरोवर के नाम से प्रचलित हुआ।

प्रभु की इच्छा से वहां कई रत्नमय घाट बने। ठीक उसी समय वहां पर असंख्य कामधेनु प्रकट हुईं। जितनी वे गौयें थीं उतने ही बछड़े उस सुरभी के रोम कूप से निकल आए थे। इन सभी के पुत्र व पौत्र भी हुए। उस सुरभी से गौओं की सृष्टि कही गयी। पहले के समय पर देवी सुरभी की पूजा कृष्ण जी किया करते थे। इसके बाद देवी की पूजा का प्रचार त्रिलोकी में हो गया। श्री कृष्ण की आज्ञा से दीपावली के दूसरे दिन सुरभी की पूजा पूरी की गई
फिर एक बार ऐसा हुआ कि वाराह कल्प में सुरक्षी देवी ने दुध देना बंद कर दिया। इससे दूध का अभाव त्रिलोकी में हो गया। इंद्रदेव ने ब्रह्मा जी की आज्ञा ली और देवी सुरभी की स्तुति शुरू की। आराधना से प्रसन्न होकर देवी सुरभी ब्रह्मलोक में प्रकट हुईं।उन्होंने इन्द्र को मनोवांछित वर दिया और फिर से गोलोक चली गईं। इसके बाद एक बार फिर से समस्त विश्व दूध से परिपूर्ण हो गया।


Ritisha Jaiswal

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