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- आपको भी सत्संग में...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | एक बार संत नामदेव जी के सत्संग में गृहस्थ श्यामनाथ अपने पुत्र तात्या को लेकर आए। श्यामनाथ पक्के धार्मिक और सत्संगी थे, जबकि उनका पुत्र धर्म-कर्म और साधु-संतों की संगत से दूर भागता था। श्यामनाथ ने नामदेव को शीश नवाते हुए कहा, ‘‘महाराज, यह मेरा पुत्र तात्या है। सारा दिन कामचोरी और आवारागर्दी में व्यतीत करता है। सत्संग के नाम से भी बिदकता है। कृपया इसका मार्गदर्शन कीजिए।’यह सुनकर संत नामदेव उन दोनों को मंदिर के पीछे लम्बे-चौड़े दलान में ले गए। वहां एक कोने में एक लालटेन जल रही थी, लेकिन संत उन दोनों को लालटेन से दूर दूसरे अंधेरे कोने में ले गए तो तात्या बोल पड़ा, ‘‘महाराज, यहां अंधेरे कोने में क्यों ? वहां लालटेन के पास चलिए न। वहां हमें लालटेन का उचित प्रकाश भी मिलेगा और हम एक-दूसरे को देख भी सकेंगे।’
यह सुनकर नामदेव मुस्कुराते हुए बोले, ‘‘पुत्र, तुम्हारे पिता भी तुम्हें दिन-रात यही समझाने में लगे रहते हैं। हमें प्रकाश तो लालटेन के पास जाने से ही मिलता है लेकिन हम अंधकार में ही हाथ-पैर मारते रह जाते हैं। ठीक इसी प्रकार हमें आध्यात्मिक और व्यावहारिक ज्ञान भी संतों की संगति में ही मिलता है। सत्संग हमारे कोरे और मलिन हृदयों को चाहिए। संत ही हमारे पथ के दीपक होते हैं।’’
संत नामदेव के सटीक व सहज भाव से दिए गए ज्ञान ने तात्या की आत्मा को भी प्रकाशवान बना दिया।